सावन में नैहर की यादें
पाँव में जैसे पायल बांधे
झूले सखियाँ हंसी ठिठोली
मेहँदी राखी चन्दन रोली
देह धरी है पिया के घर में
मन मैके की देहरी फांदे
नभ से बरसे शोर मचाकर
नयनन रोके ज़ोर लगाकर
आंसू हुए खारे से सादे
घेवर फेनी खीर बताशे
तीज का मेला खेल तमाशे
पैरो में क्यों बेडी सी बांधे
सावन में नैहर की यादें
सच्ची....सावन में माँ का घर कितना याद आता है...
ReplyDeleteसुन्दर सी रचना ने भिगो दिया....
अनु
hame bhi apna naihra bole to hometown yaad aata hai:-D
ReplyDeleteबहुत याद आती है सच में..
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से आप सभी को रक्षाबंधन के इस पावन अवसर पर बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाये | आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है, एक आध्यात्मिक बंधन :- रक्षाबंधन - ब्लॉग बुलेटिन, के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
ReplyDeleteवाह .. सावन की तरह ही अंदर तक भिगो गई आपकी रचना ...
ReplyDeleteबहुत ही अनुपम भाव ...
यह गीत अमूल्य है ..
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