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Wednesday, August 1, 2012

सावन में नैहर की यादें



सावन में नैहर की यादें
पाँव में  जैसे पायल बांधे
झूले सखियाँ हंसी ठिठोली
मेहँदी राखी चन्दन रोली
देह धरी है पिया के घर में
मन मैके की देहरी फांदे
नभ से बरसे शोर मचाकर 
नयनन रोके ज़ोर लगाकर 
आंसू हुए खारे से सादे
घेवर फेनी खीर बताशे
तीज का मेला खेल तमाशे
पैरो में क्यों बेडी सी  बांधे 
सावन में नैहर की यादें

6 comments:

  1. सच्ची....सावन में माँ का घर कितना याद आता है...
    सुन्दर सी रचना ने भिगो दिया....

    अनु

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  2. बहुत याद आती है सच में..

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  3. वाह .. सावन की तरह ही अंदर तक भिगो गई आपकी रचना ...
    बहुत ही अनुपम भाव ...

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  4. यह गीत अमूल्य है ..

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