बंजर दिन
बंजर रात
सूनी आँखे
सूनी बरसात
कोरे कागज़
कोरी किस्मत
मौन अधर
कैसे हो बात
शब्द अधूरे
सन्दर्भ अधूरे
छितरे रिश्ते
बिखरे ख्वाब
मौन घाव
मुखर वेदना
कठिन घडी
कैसे हो पार
बंजर रात
सूनी आँखे
सूनी बरसात
कोरे कागज़
कोरी किस्मत
मौन अधर
कैसे हो बात
शब्द अधूरे
सन्दर्भ अधूरे
छितरे रिश्ते
बिखरे ख्वाब
मौन घाव
मुखर वेदना
कठिन घडी
कैसे हो पार
एक लहर पर दूजी लहर
ReplyDeleteफेन फेन हैं सारे ख्वाब
किसको कैसे रोकूँ मैं
लौट जाती है हर लहर
छोड निराशा
ReplyDeleteपतवार घुमा
काट के धारा
पार लगा.......
सुन्दर!!!!!!
अनु
भावों का अनुपम संयोजन
ReplyDeleteबहुत खूब ... छोटे छोटे शब्दों से सागर मैथ दिया ... भावप्रधान रचना ... लाजवाब ...
ReplyDeleteहो जायेगी ये घडी भी पार ..जो आज है कल नहीं था, न कल होगा.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति.
प्रभावी रचना...स्पष्ट थाप...
ReplyDeleteबेहद सशक्त भाव ...
ReplyDeletepehli baar aapki rachna se gujra hoon,iss achchhi rachna ke liye badhai.
ReplyDeleteअच्छी कविता |
ReplyDeleteपंक्तियाँ सूक्ष्म ,
ReplyDeleteभाव वृहद |
कल 24/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
छोटे-छोटे शब्दों में कह डाला जीवन का सार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteगागर में सागर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबेहतरीन:-)
गागर में सागर ..
ReplyDeleteक्या बात है जी !
ReplyDeleteमैंने आपका ब्लॉग देखा ... शब्दों का समागम काफी बढ़िया है ...बस ऐसे ही लिखते रहें और कभी फुर्सत मिले तो http://pankajkrsah.blogspot.com पे पधारें आपका स्वागत है ..
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