इन आफतों को भुला दो यार
इस हालत में मुस्कुरा दो यार
दुनिया चाहती है मायूस देखना
तुम ज़रा खिलखिला दो यार
सर पर सवार है फतूर बनके
हिलाकर गर्दन गिरा दो यार
अकड़ है आसमान सी जिनकी
धूल उनको चटा दो यार
कमज़ोर कहा करते है अक्सर
कुर्सियां उनकी हिला दो यार
निबट लेंगे जुल्म-ज़माने से
एक ज़रा हौसला बढ़ा लो यार
मूड क्रांतिकारी है :) :)
ReplyDeleteबढ़िया अनुरोध-
ReplyDeleteशुभकामनायें आदरणीया -
प्रेरणा देती रचना , शुभकामनाये
ReplyDeleteबहुत खूब ... होंसला बढ़ जाए तो सब कुछ हिला देंगे आज के नौजवान ...
ReplyDeleteउमंग लिए .. जोश लिए ...
निबट लेंगे जुल्म-ज़माने से
ReplyDeleteएक ज़रा हौसला बढ़ा लो यार
...बहुत खूब! यह ज़ज्बा बना रहे...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन काँच की बरनी और दो कप चाय - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, उत्साह बढ़ाती हुयी रचना।
ReplyDeleteइनमे से कई का हम यारों से नहीं करवाना चाहेंगे !
ReplyDeleteलिखते रहिये :)
वो हैं ज़रा खफा खफा नैन यूँ चुराये हैं
ReplyDeleteपहाड़ टूटे बह गए वे बिजलियाँ गिराए हैं
निबट लेंगे जुल्म-ज़माने से
ReplyDeleteएक ज़रा हौसला बढ़ा लो यार
बहुत खूब! बहुत सुन्दर रचना।
Amazing...!!!
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