बैलट बुलेट की छावन
में
मेला लगेगा गांवन
में
राह हमारी जो पाहुन
भूले
नित पधारेंगे आँगन में
भोपू जोर जोर बजेंगे
हांथी के दूजे दांत
दिखेंगे
बरसाती मेढक
निकलेंगे
बिन बारिश इस सावन में
भोरे भोरे आन
घुसेंगे
देहरी देहरी नाक
घिसेंगे
मिश्री वाले बोल बोलकर
आन गिरेंगे पाँवन
में
नोट उड़ेंगे वोट
बिकेंगे
जात पात पर खूब
बकेंगे
नहीं जो संभले डूब
गिरेंगे
कागज़ की इन नावन में
खूब परखना जांच के
रखना
सुनना सबकी मनकी
करना
बड़ा कठिन है काज
भैया
राम ढूंढना रावण में
बहुत दमदार अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया .... सटीक .... धारदार
ReplyDeleteअति सुन्दर.
ReplyDeleteलाजवाब ... इस दुर्गम काम को यदि एक बार सभी देशवासी मिल के कर लें तो शायद कुछ समस्या तो हल हो जाएगी ... धमाकेदार रचना ...
ReplyDeletebahut shandaar,sateek..........
ReplyDeleteबहुत खूब …
ReplyDeleteशब्द कि इस मर्म को .... मैं यूँ समझ कर आ गया …
ReplyDeleteअल्फाज पढ़ के यूँ लगा .... खुद से ही मिल के आ गया ....
बहुत खूब ....