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Friday, September 13, 2013

राम ढूंढना रावण में

बैलट बुलेट की छावन में
मेला लगेगा गांवन में
राह हमारी जो पाहुन भूले
नित पधारेंगे आँगन में
भोपू जोर जोर  बजेंगे
हांथी के दूजे दांत दिखेंगे
बरसाती मेढक निकलेंगे
बिन बारिश इस सावन में
भोरे भोरे आन घुसेंगे
देहरी देहरी नाक घिसेंगे
मिश्री वाले बोल बोलकर
आन गिरेंगे पाँवन में
नोट उड़ेंगे वोट बिकेंगे
जात पात पर खूब बकेंगे
नहीं जो संभले डूब गिरेंगे
कागज़ की इन नावन में  
खूब परखना जांच के रखना
सुनना सबकी मनकी करना
बड़ा कठिन है काज भैया
राम ढूंढना रावण में

7 comments:

  1. बहुत दमदार अभिव्यक्ति

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  2. बहुत बढ़िया .... सटीक .... धारदार

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  3. लाजवाब ... इस दुर्गम काम को यदि एक बार सभी देशवासी मिल के कर लें तो शायद कुछ समस्या तो हल हो जाएगी ... धमाकेदार रचना ...

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  4. शब्द कि इस मर्म को .... मैं यूँ समझ कर आ गया …
    अल्फाज पढ़ के यूँ लगा .... खुद से ही मिल के आ गया ....

    बहुत खूब ....

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