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Thursday, December 5, 2013

बहुत काम है मुझको



बहुत काम है मुझको
लाल सूरज उगाना है
नया सा राग गाना है  
सितारे बाँध रख छोड़े
ओस बिंदु उठाना है
संवरने की कहाँ फुर्सत
अभी दिन भी सजाना है
जुगनू को सुलाना है
कलियों को जगाना है
भोर से रूठ छिप बैठी
उसे अब खींच लाना है
तुम्हारे जागने से पहले
दुनिया को सजाना है

11 comments:

  1. यह तो एक परी कथा ही हुई !
    बहुत सुन्दर !

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  2. और यह बताना तो भूल ही गई आप कि यह रोज़ का सिलसिला है ... केवल किसी एक दिन का नहीं |

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  3. खिला सा मन तो खिल उठे जीवन ....

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  4. वाह...इतने सारे सुन्दर सुन्दर काम......
    जगते ही दीवाना बना दोगी उसको ????
    :-)

    अनु

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  5. बहुत सुंदर भाव.
    यहाँ भी पधारिए
    http://iwillrocknow.blogspot.in/

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  6. खुद को भी जागा ही दीजिये :)

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  7. इतना सब कुछ - वाह वाह

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  8. So... Nal.. Bhavon ke.. one sonal. always great

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  9. भाव मय ... करने की ठान लो तो जरूर पूरी होती है ...

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