मैं क्या सोचती हूँ ..दुनिया को कैसे देखती हूँ ..जब कुछ दिल को खुश करता है या ठेस पहुंचाता है बस लिख डालती हूँ ..मेरा ब्लॉग मेरी डायरी है ..जहाँ मैं अपने दिल की बात खुलकर रख पाती हूँ
Thursday, February 4, 2010
लोग सवाल पूछेंगे
हम इस डर से लोगों का हाल नहीं पूछते
लोग फिर हमसे सवाल पूछेंगे
हम तो पूछेंगे कैसा है तबियत पानी
वो हमारे जख्मों का हाल पूछेंगे
गर वो हाल पूछे तो कोई बुराई नहीं
पर वो जख्मों को नाखून से कुरेदते है
हम मरहम की उम्मीद रखते है
वो सवालों से कलेजा बींध देते है
इसी लिए ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली हमने
बस मुस्कुरा कर सर झुकाते हैं
करीब जायेंगे तो वही हाल होगा
इसलिए हर रिश्ता दूर से निभाते हैं
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rishte
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मैं क्या कहूँ अब? आपने तो निःशब्द कर दिया...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteइसी लिए ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली हमने
ReplyDeleteबस मुस्कुरा कर सर झुकाते हैं
करीब जायेंगे तो वही हाल होगा
इसलिए हर रिश्ता दूर से निभाते हैं
सच है रिश्ते दर्द देते हैं .......... पर कभी कभी दावा का काम भी करते हैं .......... अच्छी रचना है ..........
इसी लिए ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली हमने
ReplyDeleteबस मुस्कुरा कर सर झुकाते हैं
करीब जायेंगे तो वही हाल होगा
इसलिए हर रिश्ता दूर से निभाते हैं
आज कल यही तरीका सही लगता है । कौन किसी का दर्द बाँटता है सभी कुरेदने ही आते हैं। सुन्दर रचना शुभकामनायें
वाह !
ReplyDeleteखूबसूरत रचना । आभार ।
रिश्ते दूर से नहीं निभते। जो निभते है वो रिश्ते नहीं होते। औपचारिकता दिलों की बात नहीं। और दिमाग हर जगह ठीक नहीं।
ReplyDeleteलोगों के मन की कुटिलता से उपजा अकेलापन झलकता है, कविता सिमटी हुई ज़िन्दगी के सबब परखती हुई सी है.
ReplyDeletesonal ji plz vist
ReplyDeletehttp://yuvatimes.blogspot.com/2010/03/blog-post_30.html
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
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