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Thursday, February 4, 2010

लोग सवाल पूछेंगे


हम इस डर से लोगों का हाल नहीं पूछते

लोग फिर हमसे सवाल पूछेंगे
हम तो पूछेंगे कैसा है तबियत पानी
वो हमारे जख्मों का हाल पूछेंगे

गर वो हाल पूछे तो कोई बुराई नहीं
पर वो जख्मों को नाखून से कुरेदते है
हम मरहम की उम्मीद रखते है
वो सवालों से कलेजा बींध देते है

इसी लिए ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली हमने
बस मुस्कुरा कर सर झुकाते हैं
करीब जायेंगे तो वही हाल होगा
इसलिए हर रिश्ता दूर से निभाते हैं

9 comments:

  1. मैं क्या कहूँ अब? आपने तो निःशब्द कर दिया...

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  2. इसी लिए ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली हमने
    बस मुस्कुरा कर सर झुकाते हैं
    करीब जायेंगे तो वही हाल होगा
    इसलिए हर रिश्ता दूर से निभाते हैं

    सच है रिश्ते दर्द देते हैं .......... पर कभी कभी दावा का काम भी करते हैं .......... अच्छी रचना है ..........

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  3. इसी लिए ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली हमने
    बस मुस्कुरा कर सर झुकाते हैं
    करीब जायेंगे तो वही हाल होगा
    इसलिए हर रिश्ता दूर से निभाते हैं
    आज कल यही तरीका सही लगता है । कौन किसी का दर्द बाँटता है सभी कुरेदने ही आते हैं। सुन्दर रचना शुभकामनायें

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  4. वाह !
    खूबसूरत रचना । आभार ।

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  5. रिश्ते दूर से नहीं निभते। जो निभते है वो रिश्ते नहीं होते। औपचारिकता दिलों की बात नहीं। और दिमाग हर जगह ठीक नहीं।

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  6. लोगों के मन की कुटिलता से उपजा अकेलापन झलकता है, कविता सिमटी हुई ज़िन्दगी के सबब परखती हुई सी है.

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  7. sonal ji plz vist


    http://yuvatimes.blogspot.com/2010/03/blog-post_30.html

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  8. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

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