बुझा दो चांदनी को तुम
के मेरा जिस्म जलता है
हवा के सर्द झोकों से
आँख में दर्द तिरता है
सुलग उठे जो तारे भी
पिघल के छुप गए बादल
छुपा दो नर्म फूलो को
झलक से नील पड़ता है
लगा दो पाबंदी हसने पे
औ curfew गीत गाने पे
कोई कोयल जो गर कूके
कानो में सीसा पिघलता है
तुम्हारे प्यार के किस्से
तुम्हारी चाशनी बातें
चले जाओ यहाँ से तुम
के मेरा दम भी घुटता है
............
ReplyDeleteआप की रचना चोरी हो गयी है ...... यहाँ पर देख लीजिये
http://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post_3643.html
अब ब्लॉगजगत में ये भी देखना पड़ेगा ..आपने चोरी की इसका मतलब मेरी ये कविता चुराने लायक है ..
ReplyDeleteअच्छा तो नहीं लगा पर ..कोई बात नहीं,पेड़ पर लगा फूल इश्वर के चरणों में चढ़े या नारी के बालों में अंतत: रहता है उस पेड़ का ही है ,आप कविता चुरा सकते है पर प्रतिभा नहीं
ghazab hai rachna ....phoolon se neel padta hai ...hmmm...bhai aisi berukhi kisi ko kisi se na ho ....shaandar hai nazm ...flow bahut umda hai
ReplyDeleteवाह वाह वाह ...
ReplyDeleteमार डालिए तो बेहतर,
ReplyDeleteकी मौत में भी एक मज़ा है,
हो गर ऐसी कमबख्त शायरी,
तो मर मिटना तो बनता है ..
बहुत उम्दा.. लिखते रहिये ...
चोरी और ऊपर से सीना जोरी का इस से बड़ा एक्साम्पल नहीं देखा मैंने..
ReplyDeleteलिखा अच्छा है.. पर बचाया जाना भी ज़रूरी है
shandaar kavita sonal ji,
ReplyDeleteu shud be thankful to banti-chor sahab ji,
ki unhe laga ki is kavita ko churana chahiye
hahahahahaha
बुझा दो चांदनी को तुम
ReplyDeleteके मेरा जिस्म जलता है
हवा के सर्द झोकों से
आँख में दर्द तिरता है
vaah....bahut badhiya kavita....badhai. sachmuch kavita churaane laayek hai.
यह कैसी वेदना है ???????? पढ़ कर बस आह ही कर पाए ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबुझा दो चांदनी को तुम
ReplyDeleteके मेरा जिस्म जलता है
चले जाओ यहां से नुम
के मेरा दम भी घुटता है
भवनाओं को शब्दों में ढालने की उत्तम क्षमता आपमें है ...बधाई।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteगहरापन भावों का।
ReplyDeleteबुझा दो चांदनी को तुम
ReplyDeleteके मेरा जिस्म जलता है
हवा के सर्द झोकों से
आँख में दर्द तिरता है
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं...बधाई !
गहरापन भावों का................
ReplyDeleteतुम्हारे प्यार के किस्से
ReplyDeleteतुम्हारी चाशनी बातें
चले जाओ यहाँ से तुम
के मेरा दम भी घुटता है
bahut kuch hai isme
गहरे भाव। दिल को छू गयी अभिव्यक्ति। शुभकामनायें
ReplyDeletesaundar prastuti.
ReplyDeleteदर्द भरे जलते हुए भावों को सुंदरता से सजाया है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर........ दिल को छू गयी!!!
ReplyDeleteदिल को छू गयी अभिव्यक्ति। शुभकामनायें
ReplyDeletetotally awesome.....aap bohot hi kamaal ki imagination rakhti hai....great to read u
ReplyDeleteतुम्हारे प्यार के किस्से
ReplyDeleteतुम्हारी चाशनी बातें
चले जाओ यहाँ से तुम
के मेरा दम भी घुटता है
कमाल कर गयी यह पंक्तियाँ...
एक अच्छी रचना के लिए बधाई.
बुझा दो चांदनी को तुम
ReplyDeleteके मेरा जिस्म जलता है
चले जाओ यहां से नुम
के मेरा दम भी घुटता है ...
दर्द उभर कर आ रहा है ... प्रेम में अक्सर ऐसा होता है ... पर मौसम ज़रूर बदलता है ...
बहुत गहन अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeletemaza aa gaya ek baar fir..chalte raho...
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