मुझे उम्मीद है तुमसे
के मेरा दिल दुखाओगे
मैं जितना पास आउंगी
तुम उतना जुल्म ढाओगे
मेरे सपने मेरी बातें
तुम्हे फ़िज़ूल लगते है
बिछा दूं फूल जितने भी
तुम्हें बबूल लगते है
मिलता है सुकूं तुमको
बहे जो दर्द आँखों से
सदियों से हुआ गायब
रूमानी चाँद रातों से
बचे जो आस के तारे
फूंककर उन्हें बुझाओगे
मेरे लिखे वो महके ख़त
अपने हांथों से जलाओगे
मैं जितना पास आउंगी
तुम उतना ज़ुल्म ढाओगे
के मेरा दिल दुखाओगे
मैं जितना पास आउंगी
तुम उतना जुल्म ढाओगे
मेरे सपने मेरी बातें
तुम्हे फ़िज़ूल लगते है
बिछा दूं फूल जितने भी
तुम्हें बबूल लगते है
मिलता है सुकूं तुमको
बहे जो दर्द आँखों से
सदियों से हुआ गायब
रूमानी चाँद रातों से
बचे जो आस के तारे
फूंककर उन्हें बुझाओगे
मेरे लिखे वो महके ख़त
अपने हांथों से जलाओगे
मैं जितना पास आउंगी
तुम उतना ज़ुल्म ढाओगे
अरे हुल्म की भी उम्मीद करना पड़ता थोड़ी है जिसे देखो वही जुल्म किये जा रहा है.... इतना सस्ता है जुल्म भी ना मेरी तो मनमोहन सिंह से गुजारिश है की जरा जुल्म को भी महंगा कर दें ... जुल्म करने वाले थोड़े कम हो जायेंगे....
ReplyDeleteतभी कहते हैं न कि दूर रहने से प्यार - मुहब्बत बनी रहती है ...
ReplyDeleteएहसास को सुन्दर शब्द दिए हैं
mere sapne tumhen fizul lagte hain... tumne sapne nahin dekhe to julm hi karoge
ReplyDeleteओह!करारा प्रहार किया है प्रीत पर और अहसासो को जीकर शब्दो मे ढाला है…………मन को छू गयी आपकी रचना।
ReplyDeleteभावुक कर गयी, बहुधा यही होता है।
ReplyDeleteबचे जो आस के तारे
ReplyDeleteफूंककर उन्हें बुझाओगे
in do line me puri kavita ya aapke ahsas ka sar chupa hai.
ओह हो हो ..क्या गज़ब का प्रावाह है..और क्या दर्द .बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं सोनल.
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (26.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
door rahne mein hi bhalayee hai.. jo kaanta chubhe use ukhad fenkene mein hi bhalayee hai..................................................!!!!!!!!!!!!!??????????
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअमां(गुहार) नहीं है ये
ReplyDeleteदिल की सदा है
वफा की अदा है ये
सजा भी मजा है
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआज तो बस "उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ!!!!!!!!!" ही कह पाएँगे!!
ReplyDeleteमैं जितना पास आऊँगी तुम उतना जुल्म ढाओगे.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना है आपकी.
दर्द की तर्जुमानी बहुत अच्छी लगी.
सलाम.
ek behtreen lay badhdhh kavita
ReplyDeleteek ek shabd dard se labrez
subhkamnaye
priy se itna ulaahna
ReplyDeletetauba :)
kya andaaj hai rachna ka
bahut khoob
मेरे सपने मेरी बातें
ReplyDeleteतुम्हे फ़िज़ूल लगते है
बिछा दूं फूल जितने भी
तुम्हें बबूल लगते है
बहुत बढ़िया अंदाज़ में शिकवा-गिला किया है आपने...........
मैं जितना पास आउंगी तुम उतना जुल्म ढाओगे...
ReplyDeleteदूर से तो सब अच्छे ही लगते हैं ...
impressed....lajwab...kahne me samarth hai kavita jo kahna chahti hai ye.
ReplyDeleteमुझे उम्मीद है तुमसे
ReplyDeleteके मेरा दिल दुखाओगे
मैं जितना पास आउंगी
तुम उतना जुल्म ढाओगे
बहुत सुन्दर विचार युक्त कविता है |
मुझे उम्मीद है तुमसे
ReplyDeleteके मेरा दिल दुखाओगे
मैं जितना पास आउंगी
तुम उतना जुल्म ढाओगे.......
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
बहुत सुंदर कविता है,
ReplyDeleteभावों को शब्दों का सुंदर रुप दिया है आपने।
आभार
मैं जितना पास आऊँगी तुम उतना जुल्म ढाओगे.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना है आपकी.... आभार*****
वाह!..... वाह!
ReplyDeleteइतनी निराशा भी ठीक नहीं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता है|धन्यवाद|
ReplyDeleteअक्सर ऐसा ही होता है , करीब आने पर कद्र घटती जाती है औए व्यक्ति for granted लेने लगता है । इसलिए एक निश्चित दूरी से ही दुआ सलाम बेहतर है । सार्थक रचना के लिए बधाई ।
ReplyDeleteमेरे सपने मेरी बातें
ReplyDeleteतुम्हे फ़िज़ूल लगते है
बिछा दूं फूल जितने भी
तुम्हें बबूल लगते है
शिकायत करने का अंदाज अच्छा लगा , बहुत सुंदर .बधाई...
waah....kya style mein likhi hai yaara.....kamaal ki nazm hai.....lajawaab !
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01-03 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
बहुत भावपूर्ण...वाह!
ReplyDeleteरचना का आरम्भ बहुत अच्छा लगा परन्तु बीच में लय और और गहराई कम हो गई अन्त में फ़िर बेहतर हुई. इस रचना को यदि थोडा और मांजा जाता तो एक अत्यन्त सशक्त रचना के रूप में उभरती... लिखती रहिये... और लिख कर तुरन्त पोस्ट करने के लोभ से बचें... कुछ समय पास रख कर उसे संवारे और फ़िर पोस्ट करे... यह मेरे विचार मात्र हैं... इसे अन्यथा न लें
ReplyDeleteReally this is very heart touching feeling exploring here....thanks a lot 4 being with us in this way !!!!
ReplyDeleteवाह सोनल जी.. भावपूर्ण और गंभीर अर्थ से भरी यह कविता छू गयी मन को..
ReplyDeleteसुन्दर भाव अभिव्यक्ति
ReplyDeleteshaandar he ,
ReplyDeleteमेरे सपने मेरी बातें
ReplyDeleteतुम्हे फ़िज़ूल लगते है
बिछा दूं फूल जितने भी
तुम्हें बबूल लगते है
क्या अदा है उलाहने की। जय हो जी जय हो!!