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Wednesday, June 8, 2011

कुछ पल यूँही

(१)
किसी का खरीदूं
अपना बेच दूं
ज़मीर का सौदा
इतना आसान है क्या
(२)
सारे बड़े सम्मानित
उद्योगपति नेता अभिनेता
पहले आइये पहले पाइए
नया पता "तिहाड़"
(३)
भगवा हो या सफ़ेद हो
भ्रष्ट हो या नेक हो
खून पसीना तो
हमारा ही बहाते है
पाँव रखते है
हमारे शीश पर
स्वयं शिखर पर
चढ़ जाते है
(४)
हे स्विस बैंक
अकाउंट धारी
सौ तालो में बंद
सम्पति तुम्हारी
नीद भूख प्यास
सब तुमने हारी
(५)
हाय धरती पुत्र
कैसे चैन से सोते हो
खुले आकाश के नीचे
छोड़कर अपनी सारी सम्पति
जो तुमने कमाई है
हड्डियां जलाकर अपनी

38 comments:

  1. वाह वाह एक से बड़ कर एक ... जय हो सोनल जी ... लगी रहिये !!

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  2. तीसरा पैरा बहुत प्रभावपूर्ण है.

    सादर

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  3. waah waah sab ek se badh kar ek hain sach likha hai bahut khub behtreen

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  4. सारी क्षणिकाएं बिलकुल सामयिक और सटीक हैं...

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  5. बहुत बढिया
    किसी का खरीद लूं
    अपना बेच दूं
    जमीर का सौदा
    इतना आसान है क्या

    क्या बात है

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  6. पहली वाली ने दिल ले लिया...
    बाकी भी सटीक हैं.

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  7. bahut khoob Sonal ji

    aap bhi aaiye

    http://mridula-naazneen.blogspot.com/

    http://abhivyakti-naaz.blogspot.com/

    abhaar

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  8. all are good but first one is the best...

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  9. मेरी ओर से सिर्फ तालियाँ, तालियाँ और तालियाँ!!!

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  10. शानदार है, क्या कहने..... सारी बातें अच्छी है तिहाड़ वाली बहुत सटीक बात लिखी है। बधाई स्वीकार कीजिए।

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  11. sonal ji hamare blog par bhi aaye aur hume apne wicharo se avgat karaye

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  12. बिलकुल सटीक हैं सारी क्षणिकाएं ..... सोनल जी

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  13. KYA SUNDER KATAKSH HAI .
    UTTAM
    RACHANA

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  14. बढ़िया क्षणिकाएं जबरदस्त कटाक्ष करती उम्दा प्रस्तुति. शुभकामनाएँ.

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  15. बहुत सटीक और पैनी....

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  16. वाह सोनल जी वाह. बहुत तीखा वार शब्दों से.

    सादर
    श्यामल सुमन
    +919955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  17. सच कह रही हैं आप ...
    शुभकामनायें आपको !

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  18. कौड़ियों के भाव अब तो,

    बिक रहा अपना जमीर

    सोचता हूँ स्विस-लाकर

    में इसे भी सेट कर दूँ ||

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  19. वह, क्या गजब का लिखा है आपने.हर तीर निशाने पर!
    घुघूती बासूती

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  20. सोनल जी!
    आपकी क्षणिकाओं में युगबोध है...एक नवीन प्रकार का शोध है।
    =====================
    ’व्यंग्य’ उस पर्दे को हटाता है
    जिसके पीछे भ्रष्टाचार आराम फरमाता है।
    =====================
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
    mob.09336089753

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  21. सब बहुत ही अच्छी...वह! मज़ा आ गया

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  22. सब की सब बहुत ही बढ़िया,

    सादर- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  23. सारी क्षणिकाएँ सटीक मार करती हुई ..

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  24. सभी क्षणिकायें बहुत सटीक और प्रभावपूर्ण...

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  25. किसे छोडें किसकी तारीफ करें, सबकी सब प्रशंसनीय.
    बस वाह...

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  26. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच

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  27. लाजवाब व्यंगात्मक अभिव्यक्ति है इन क्षणिकाओं के माध्यम से ....

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  28. सटीक क्षणिकाएं

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  29. सुन्दर विचार कणिकाएं .आप बहुत अच्छा काम कर रहीं हैं .शहर छोटा और बड़ा नहीं होता और अब गुडगाँव तो माल -हब है ,मल्तिनेशंल्स का गढ़ है ,काल सेंटर्स का पब है .

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