मई के महीने में शीत लहर सी दौड़ गई ...अन्दर तक काँप गई वो नहीं वो नहीं हो सकता यहाँ क्या कर रहा है .... क्या कशमकश है जिसकी एक झलक देखने को सारी दोपहर खिड़की पर गुज़ार देती थी लू के थपेड़े भी ठन्डे मालूम पड़ते थे आज उससे सामना होने के अंदेशे से कलेजा मुह को आने लगा है.... किसी अनहोनी कि आशंका से वो घबरा उठी.
हे भगवान् वो ना हो .... उसके के होंठ बुदबुदा उठे , पहली बार अपनी सहेली दिशा के घर मिली थी उसकी बुआ का बेटा था गर्मी की छुटियों बिताने, पहली नज़र में कुछ अजीब सा लगा था पर जब उसने मुस्कुरा कर देखा तो आँखे और दिल दोनों उसके पास कब ट्रांसफर हो गए पता ही नहीं चला ... कितनी दोपहर दोनों साथ रहते एक दिन जब बातों बातों में उसने हँसते हुए धीरे से हथेली दबा दी थी पूरी कि पूरी पसीने से भीग गई थी ...बस चिट्ठियों का सिलसिला चल निकला ...माचिस की डिब्बी में सात तह में मुड़े ख़त ...उस दौर में उन खतों से ज्यादा कुछ भी कीमती नहीं था ..पर जला कर फ्लश करने पड़ते थे पर उससे पहले हज़ार बार चूमे जाते ....
उसके जाने के बाद दिशा को हमराज़ बनाया ...
अब उसकी चिठियाँ किसी और के पते से उसके के हांथो तक आती .... हर शब्द नए सपनो तक ले जाता ..आँखे कुछ मुंदी और कुछ खुली सी रहती हर वक़्त हलकी हरारत सी ...पर इलाज करने वाला तो बहुत दूर बैठा था ..फोन पर बात ना करने का फैसला हम दोनों का ही था और चिट्ठिया जलाने का भी .... इस दफा गर्मी की छुटिया कुछ देर से आई या साल बहुत धीरे बीता निगाहें किसी ऐसे को ढूंढ रही थी जो वहां नहीं था ..... पर वो आया अभी भी उतना ही मासूम लग रहा था और वही मुस्कराहट जिसने मुझे खुद को खोने पर मजबूर कर दिया था ...
उसने फरमान भेजा ..मिलना है ..
पर कहाँ ?उसका सवाल था
जहां तन्हाई मिले .... उसने मुस्कुरा कर कहा
दो लोग एक साथ कभी तन्हा नहीं होते .. और तन्हाई वो सेफ नहीं ...वो मुस्कुरा दी
तुम्हे किससे डर लगता है ...मुझे से या मेरे साथ तन्हाई में मिलने से
मुझे खुद से डर लगता है वो खिलखिला दी... पर पता नहीं क्यों वो खुद इस डर को जीना चाहती थी पिछले एक साल कई बार वो तन्हाई में मिलना चाह रहा था हर ख़त में पूछता था आज उसकी बे-ताबी उसकी आँखों से साफ़ झलक रही थी
वो जब मिले तो जाना ख़त दर ख़त दोनों का रिश्ता कितना मज़बूत हो चुका है दोनों असहज थे ..फिर सहज हुए फर असहज हुए ... उसके बालों से गुलाब की भीनी महक आ रही थी ... कुछ देर बाद वो महक उसके वजूद का हिस्सा बन गई ..
ना फूल सदा रहते है ना खुशबू ...उसका रिश्ता तय हो गया बहुत रोई ..गिड़गिड़ाई किसी तरह उसको फोन किया ...
"नहीं तुम ऐसा नहीं कर सकती ..मैं अभी ट्रेनिंग पर हूँ ६ महीने नहीं आ सकता"
"मैं घर वालों को नहीं समझा सकती"
"मैं तुम्हारे ख़त तुम्हारे ससुराल पोस्ट कर दूंगा ,अगर मेरी नहीं तो किसी कि भी नहीं "
प्यार, यादें ,मायका सब छोड़ कर जाना पड़ा ..और रमते रमते रम गई .... जो नहीं मिला उसका क्या गम करे जो मिला वो भी तो बुरा नहीं ...हे भगवान् वो ना हो .... उसके के होंठ बुदबुदा उठे , पहली बार अपनी सहेली दिशा के घर मिली थी उसकी बुआ का बेटा था गर्मी की छुटियों बिताने, पहली नज़र में कुछ अजीब सा लगा था पर जब उसने मुस्कुरा कर देखा तो आँखे और दिल दोनों उसके पास कब ट्रांसफर हो गए पता ही नहीं चला ... कितनी दोपहर दोनों साथ रहते एक दिन जब बातों बातों में उसने हँसते हुए धीरे से हथेली दबा दी थी पूरी कि पूरी पसीने से भीग गई थी ...बस चिट्ठियों का सिलसिला चल निकला ...माचिस की डिब्बी में सात तह में मुड़े ख़त ...उस दौर में उन खतों से ज्यादा कुछ भी कीमती नहीं था ..पर जला कर फ्लश करने पड़ते थे पर उससे पहले हज़ार बार चूमे जाते ....
उसके जाने के बाद दिशा को हमराज़ बनाया ...
अब उसकी चिठियाँ किसी और के पते से उसके के हांथो तक आती .... हर शब्द नए सपनो तक ले जाता ..आँखे कुछ मुंदी और कुछ खुली सी रहती हर वक़्त हलकी हरारत सी ...पर इलाज करने वाला तो बहुत दूर बैठा था ..फोन पर बात ना करने का फैसला हम दोनों का ही था और चिट्ठिया जलाने का भी .... इस दफा गर्मी की छुटिया कुछ देर से आई या साल बहुत धीरे बीता निगाहें किसी ऐसे को ढूंढ रही थी जो वहां नहीं था ..... पर वो आया अभी भी उतना ही मासूम लग रहा था और वही मुस्कराहट जिसने मुझे खुद को खोने पर मजबूर कर दिया था ...
उसने फरमान भेजा ..मिलना है ..
पर कहाँ ?उसका सवाल था
जहां तन्हाई मिले .... उसने मुस्कुरा कर कहा
दो लोग एक साथ कभी तन्हा नहीं होते .. और तन्हाई वो सेफ नहीं ...वो मुस्कुरा दी
तुम्हे किससे डर लगता है ...मुझे से या मेरे साथ तन्हाई में मिलने से
मुझे खुद से डर लगता है वो खिलखिला दी... पर पता नहीं क्यों वो खुद इस डर को जीना चाहती थी पिछले एक साल कई बार वो तन्हाई में मिलना चाह रहा था हर ख़त में पूछता था आज उसकी बे-ताबी उसकी आँखों से साफ़ झलक रही थी
वो जब मिले तो जाना ख़त दर ख़त दोनों का रिश्ता कितना मज़बूत हो चुका है दोनों असहज थे ..फिर सहज हुए फर असहज हुए ... उसके बालों से गुलाब की भीनी महक आ रही थी ... कुछ देर बाद वो महक उसके वजूद का हिस्सा बन गई ..
ना फूल सदा रहते है ना खुशबू ...उसका रिश्ता तय हो गया बहुत रोई ..गिड़गिड़ाई किसी तरह उसको फोन किया ...
"नहीं तुम ऐसा नहीं कर सकती ..मैं अभी ट्रेनिंग पर हूँ ६ महीने नहीं आ सकता"
"मैं घर वालों को नहीं समझा सकती"
"मैं तुम्हारे ख़त तुम्हारे ससुराल पोस्ट कर दूंगा ,अगर मेरी नहीं तो किसी कि भी नहीं "
आज २ साल बाद खुमारी ,खुशबू ,तन्हाई ,माचिस की डिब्बी और उसमें दबे ख़त सब ज़िंदा हो गए ...
वो सामने खड़ा था और शायद पहचानने कि कोशिश कर रहा था ... एक कसक सी आँखों में उतरी फिर अजनबी सन्नाटा पसर गया ... उसने देखकर भी नहीं देखा ...बड़ी देर तक उसकी धड़कन तेज़ रही ....
आज दो दिलो ने वाकई सन्नाटे को देर तक सुना
वो सामने खड़ा था और शायद पहचानने कि कोशिश कर रहा था ... एक कसक सी आँखों में उतरी फिर अजनबी सन्नाटा पसर गया ... उसने देखकर भी नहीं देखा ...बड़ी देर तक उसकी धड़कन तेज़ रही ....
आज दो दिलो ने वाकई सन्नाटे को देर तक सुना
बहुत मर्मस्पर्शी कहानी लिखी है आपने.
ReplyDeleteसादर
एक कसक सी आँखों में उतरी फिर अजनबी सन्नाटा पसर गया ... उसने देखकर भी नहीं देखा ...बड़ी देर तक उसकी धड़कन तेज़ रही ....
ReplyDeleteआज दो दिलो ने वाकई सन्नाटे को देर तक सुना
उफ़ …………निशब्द कर दिया।
आखिर माचिस की डिब्बी ने अपना काम कर ही दिया ... यह आग तो शायद कभी भी पूरी तरह से नहीं बुझती !
ReplyDeleteवो कसक ..कहानी के एक एक शब्द में दृश्य है.
ReplyDeletejivant kahani ... bahut achhi lagi
ReplyDeleteहम्म....कहीं बहुत गहरे छू गई यह कहानी...बहुत उम्दा.
ReplyDeleteबेहतरीन कहानी।
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी कहानी| धन्यवाद|
ReplyDeleteआह .... !
ReplyDelete“आज दो दिलो ने वाकई सन्नाटे को देर तक सुना”
“.....”
(नो कमेंट्स प्लीज़!)
"............."
ReplyDeleteजब सन्नाटा हो तो कुछ बोलना ठीक नहीं ... मर्मस्पर्शी कहानी ..
ReplyDeletekya baat hai sonal G
ReplyDeleteVERY TOCHING AND BEAUTIFUL POST
ReplyDeleteजो नहीं मिला उसका क्या गम करे जो मिला वो भी तो बुरा नहीं ...
ReplyDeleteलडकियाँ बड़ी जल्दी एडजस्ट कर लेती हैं...पर दिल के एक कोने में सन्नाटा छाया ही रहता है.
मोहब्बत न होती तो शायद दुनिया में कोई रंग न होता... इस रंग की कहानियाँ हमेशा अच्छी लगती हैं!
ReplyDelete" dilchasp "
ReplyDeleteअच्छी लगी आपकी वर्णन शैली ......
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteजो दो दिल सन्नाटे को सुनने में मुब्तिला हों, तो वहां किसी को सन्नाटा भंग करने की इजाजत भी नहीं होनी चाहिए।
ReplyDelete---------
कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत है?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
सोनल जी आपकी कहानियां पढ़ीं। बहुत पसंद आईं।
ReplyDeleteइच्छा है कि आपकी कोई कहानी अपने अखबार के जरिए पाठकों तक पहुंचाऊं। यदि आप मेरे प्रस्ताव से सहमत हों, तो कृपया संपर्क करें। मेरा ईमेल है-
sahil5603@gmail.com
माया है, सब माया है ...
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी कहानी...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना, विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
ReplyDeletebhavpurn rachna
ReplyDeleteदिल क अंदर तक गयी आपकी कहानी ...
ReplyDeletesamay kee kami ke baawjud bina pura padhe rah nahi paya hun... comment karke nahi batata to shayad adhura rah jata... aapki kahaani aam hote hue bhi kuchh khaas hai...
ReplyDeleteJust click this link and read left column http://epaper.inextlive.com/5871/INEXT-LUCKNOW/11.06.11#p=page:n=15:z=2
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