सहज है ना
थूक देना किसी पर
आक्षेप लगाना
आक्षेप लगाना
अकर्मण्य होने पर
कहना तू व्यर्थ है
जीवन बोझ है तेरा
क्षणभर में
धूसरित करना
किसी का अस्तित्व
अपमानित करना
दिखाता है
कुंठाओं का बोझ
ढो रहे है सब आत्मग्लानि छुपा
पोषित कर अंतर्पशु को
करते है आदर्श जीवन
का दिखावा
श्रेष्ट सिद्ध कर स्वयं को
बन बैठते है
आज के देवता
मिथ्या देव
ek katu satya........
ReplyDeletejai baba banaras........
sachchai bayan karti hui rachana
ReplyDeleteबहुत खूब .. ऐसा अक्सर होता है ... सार्थक रचना...
ReplyDeleteपोषित कर अन्त: पशु ---
ReplyDeleteसुअर-लोमड़ी-कौआ- पीपल, तुलसी-बरगद-बिल्व
अपने गुण-कर्मों पर अक्सर व्यर्थ अकड़ते हैं |
तूती* सुर-सरिता जो साधे, आधी आबादी
मैना के सुर में सुर देकर "हो-हो" करते हैं |
सटीक कहा है ..अपनी आत्मग्लानि को ही छिपाने के लिए खुद को श्रेष्ठ बताने कि कोशिश होती है
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteyahi to sahaj hai ....
ReplyDeleteदूसरी रेखा को छोटा दिखाने का सबसे आसान तरीका.. उसके सामने बड़ी रेखा नहीं खींचना, बल्कि उसे काटकर छोटा कर देना.. मिथ्यादेव!!
ReplyDeletesonal ji kabhi hamare blog par bhi darshan de
ReplyDeleteaccha lage to follower bankar hamara margdarshan karen
bada accha likhti hain aap
मिथ्या देवों की भरमार है...
ReplyDeleteमिथ्या के सहारे कहाँ नहीं पहुँचा जा सकता है।
ReplyDeleteक्या बात है ..बदले बदले से मिजाज़ नजर आते हैं..
ReplyDeleteअच्छा लिखा है.
प्रभावी शब्दों के साथ कलाकृति का बढि़या चित्र.
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteअज के संदर्भ मे बिलकुल फिट बैठत्4एए है रचना बाबाओ का बोलबाला है आज कल। अच्छी रचना के लिये बधाई।
ReplyDeleteअधिकतर देव मिथ्या ही होते हैं....
ReplyDeleteबाह.. बहुत सुंदर
ReplyDeleteMithya dev ya dambh...har parat ko khol diya hai..bahut sundar...
ReplyDeletebahut accha aap log mere blog par bhi aaye-
ReplyDeletemy blog link- "samrat bundelkhand"
यही तो रिवाज़ है अपनी शेव बनाके साबुन दूसरे के मुंह पर फैंकना .इधर -उधर -ऊपर -नीचे हर तरफ मिथ्या देव ही शासन संभालें हैं .
ReplyDeleteसच कहा हर तरफ मिथ्यादेव का ही बोलबाला है सुंदर सामायिक रचना सामाजिक सरोकारों के प्रति सवेंदनशील. बधाई.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए धन्यबाद.
आह झूठ का सच...
ReplyDeleteअकर्मण्य होने पर कहना तू व्यर्थ है...
ReplyDeleteसच में बहुत सहज होता है...सार्थक रचना ...
आईना दिखाने वाली रचना!
ReplyDeleteएक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग
ReplyDeleteयही हो रहा है - आज के इंसान का सटीक चित्रण
beautiful heart touching poem .. appreciable .
ReplyDeleteसचमुच कुछ लोगो के लिए ऐसा बहुत आसान ही है ...
ReplyDeleteअपना कद बढ़ने के लिए दूसरे के आत्मविश्वास को चोट पहुँचाना !
bahut hi sunder yathart batati hui saarthak rachanaa.bhahut achche bhav liye badhaai sweekaren.
ReplyDeletemithya ban kar bhi dev banne ki koshish karte hain kitni haasyepad sthiti hai . sunder abhivyakti.
ReplyDeletebahut saarthak, sahee aur sateek....
ReplyDeletemithya devtaon ne insaano ko bhi bhramit kar diya hai.....
सच से ओत -प्रोत...सटीक रचना.....किसी को अपमानित करना वाकई कितना सरल होता है ...है न ?
ReplyDeleteyahi kalyug hai.
ReplyDeleteआत्मग्लानि छुपा
ReplyDeleteपोषित कर अंतर्पशु को
करते है आदर्श जीवन
का दिखावा ...
वाह! वाह! बहुत खूब...
सार्थक रचना....
सादर...
मुझे पता है कोई हवा मेँ हाथ नहीं लहराएगा मुझे हराकर (बिग डील ! हुँह !) कोई मुझे कटघरे मेँ खड़ा नहीँ करेगा । हर कोई लुत्फ़ उठाएगा मेरे 'गुनाह मुआफ़ करने' का। कोई नहीं थूकेगा मेरे ऊपर । मुझे पता है एक दिन सब अपनी अपनी संगठित अच्छाईयों के साथ एकजुट होंगे । कोई भी मुझे नहीं समझ पाएगा इसलिए हर कोई मुझे अच्छा इंसान कहेगा । अकेला अच्छा इंसान । हर किसी का मुझको लेकर कोई न कोई मत होगा । हर कोई मेरे पक्ष मेँ ईश्वर, न्यायाधीश और निर्णय बनना चाहेँगे ।
ReplyDelete"बाईज्ज़त बरी टिल डेथ ।"
सच कहने वाली सार्थक रचना
Deleteबहुत संवेदनशील और सार्थक रचना के लिए बधाई सोनल!
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