Pages

Thursday, June 16, 2011

मिथ्या देव

 
सहज है ना 
थूक देना किसी पर
आक्षेप लगाना
अकर्मण्य होने पर
कहना तू व्यर्थ है
जीवन बोझ है तेरा
क्षणभर में
धूसरित करना
किसी का अस्तित्व 
अपमानित करना
दिखाता है 
कुंठाओं का बोझ
ढो रहे है सब
आत्मग्लानि छुपा
पोषित कर अंतर्पशु को
करते है आदर्श जीवन
का दिखावा
श्रेष्ट सिद्ध कर स्वयं को
बन बैठते है
आज के देवता
मिथ्या देव

36 comments:

  1. ek katu satya........

    jai baba banaras........

    ReplyDelete
  2. बहुत खूब .. ऐसा अक्सर होता है ... सार्थक रचना...

    ReplyDelete
  3. पोषित कर अन्त: पशु ---

    सुअर-लोमड़ी-कौआ- पीपल, तुलसी-बरगद-बिल्व
    अपने गुण-कर्मों पर अक्सर व्यर्थ अकड़ते हैं |

    तूती* सुर-सरिता जो साधे, आधी आबादी
    मैना के सुर में सुर देकर "हो-हो" करते हैं |

    ReplyDelete
  4. सटीक कहा है ..अपनी आत्मग्लानि को ही छिपाने के लिए खुद को श्रेष्ठ बताने कि कोशिश होती है

    ReplyDelete
  5. दूसरी रेखा को छोटा दिखाने का सबसे आसान तरीका.. उसके सामने बड़ी रेखा नहीं खींचना, बल्कि उसे काटकर छोटा कर देना.. मिथ्यादेव!!

    ReplyDelete
  6. sonal ji kabhi hamare blog par bhi darshan de
    accha lage to follower bankar hamara margdarshan karen
    bada accha likhti hain aap

    ReplyDelete
  7. मिथ्या देवों की भरमार है...

    ReplyDelete
  8. मिथ्या के सहारे कहाँ नहीं पहुँचा जा सकता है।

    ReplyDelete
  9. क्या बात है ..बदले बदले से मिजाज़ नजर आते हैं..
    अच्छा लिखा है.

    ReplyDelete
  10. प्रभावी शब्‍दों के साथ कलाकृति का बढि़या चित्र.

    ReplyDelete
  11. अज के संदर्भ मे बिलकुल फिट बैठत्4एए है रचना बाबाओ का बोलबाला है आज कल। अच्छी रचना के लिये बधाई।

    ReplyDelete
  12. अधिकतर देव मिथ्या ही होते हैं....

    ReplyDelete
  13. Mithya dev ya dambh...har parat ko khol diya hai..bahut sundar...

    ReplyDelete
  14. bahut accha aap log mere blog par bhi aaye-
    my blog link- "samrat bundelkhand"

    ReplyDelete
  15. यही तो रिवाज़ है अपनी शेव बनाके साबुन दूसरे के मुंह पर फैंकना .इधर -उधर -ऊपर -नीचे हर तरफ मिथ्या देव ही शासन संभालें हैं .

    ReplyDelete
  16. सच कहा हर तरफ मिथ्यादेव का ही बोलबाला है सुंदर सामायिक रचना सामाजिक सरोकारों के प्रति सवेंदनशील. बधाई.

    मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए धन्यबाद.

    ReplyDelete
  17. अकर्मण्य होने पर कहना तू व्यर्थ है...
    सच में बहुत सहज होता है...सार्थक रचना ...

    ReplyDelete
  18. आईना दिखाने वाली रचना!

    ReplyDelete
  19. एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग
    यही हो रहा है - आज के इंसान का सटीक चित्रण

    ReplyDelete
  20. beautiful heart touching poem .. appreciable .

    ReplyDelete
  21. सचमुच कुछ लोगो के लिए ऐसा बहुत आसान ही है ...
    अपना कद बढ़ने के लिए दूसरे के आत्मविश्वास को चोट पहुँचाना !

    ReplyDelete
  22. bahut hi sunder yathart batati hui saarthak rachanaa.bhahut achche bhav liye badhaai sweekaren.

    ReplyDelete
  23. mithya ban kar bhi dev banne ki koshish karte hain kitni haasyepad sthiti hai . sunder abhivyakti.

    ReplyDelete
  24. bahut saarthak, sahee aur sateek....

    mithya devtaon ne insaano ko bhi bhramit kar diya hai.....

    ReplyDelete
  25. सच से ओत -प्रोत...सटीक रचना.....किसी को अपमानित करना वाकई कितना सरल होता है ...है न ?

    ReplyDelete
  26. आत्मग्लानि छुपा
    पोषित कर अंतर्पशु को
    करते है आदर्श जीवन
    का दिखावा ...

    वाह! वाह! बहुत खूब...
    सार्थक रचना....
    सादर...

    ReplyDelete
  27. मुझे पता है कोई हवा मेँ हाथ नहीं लहराएगा मुझे हराकर (बिग डील ! हुँह !) कोई मुझे कटघरे मेँ खड़ा नहीँ करेगा । हर कोई लुत्फ़ उठाएगा मेरे 'गुनाह मुआफ़ करने' का। कोई नहीं थूकेगा मेरे ऊपर । मुझे पता है एक दिन सब अपनी अपनी संगठित अच्छाईयों के साथ एकजुट होंगे । कोई भी मुझे नहीं समझ पाएगा इसलिए हर कोई मुझे अच्छा इंसान कहेगा । अकेला अच्छा इंसान । हर किसी का मुझको लेकर कोई न कोई मत होगा । हर कोई मेरे पक्ष मेँ ईश्वर, न्यायाधीश और निर्णय बनना चाहेँगे ।
    "बाईज्ज़त बरी टिल डेथ ।"

    ReplyDelete
    Replies
    1. सच कहने वाली सार्थक रचना

      Delete
  28. बहुत संवेदनशील और सार्थक रचना के लिए बधाई सोनल!

    ReplyDelete