१
जाओ चेहरा धोकर
शांत हो जाओ
तुम्हारा भी लहू
नालियों में ही बहेगा
२
नाक पर रखकर रूमाल
पार कर लो वो गली
जहाँ मांस के जलने की
सडांध अभी ज़िंदा है
आखिर अपने अन्दर
की सडन के साथ भी तो
जी ही रहे हो ना
३
नहीं सुने मैंने कोई धमाके कल रात
कई सदियों से मुझे कुछ सुनाई नहीं देता
नहीं चीखे ना आहें ना रुदन ना कलपना
मेरी आँखों को दर्द दिखाई नहीं देता
४
नसे अब फड़कती नहीं
जवानियाँ आई नहीं कौम पर
पत्थर से जड़ हो चुके है
तालिया बजा देते है मौन पर
५
पीढ़ी दर पीढ़ी रीढ़ की हड्डी
गिरवी रखते रखते
देखो नई नस्ल
बिना इसके पैदा होने लगी
(1)सेर, (2)सवा सेर, (3) डेढ़ सेर ...... (५) पता नहीं कितना ~ सेर
ReplyDeletesateek,yatharth, sundar rachna, badhai
ReplyDeleteउफ़ आखिरी से तो सीधा रीड पर ही वार किया है.
ReplyDeleteक्या बोलूं ..निशब्द.
हो गए हैं हम गूंगे बहरे निश्चेष्ट .... हर क्षणिकाओं की अपनी खासियत , अपना दर्द है ...
ReplyDeleteपीढ़ी डर पीढ़ी रीढ़ की हड्डी
गिरवी रखते रखते
देखो नई नस्ल
बिना इसके पैदा होने लगी - बहुत ही बढ़िया
गुस्सा, आग, अंगारे !
ReplyDelete4 और 5 बहुत खतरनाक है. चुनौती देता हुआ. बहुत सशक्त है. चोट लगती है. लगनी भी चाहिए. सच के पास है.
सारे उद्वेलित करते दुखती रग पर हाथ धरते
ReplyDeleteगजब, कटाक्ष की तीव्रता नहीं माप सकता।
ReplyDeleteपकडे गए इन दुश्मनों ने,
ReplyDeleteभोज सालों है किया |
मारे गए उन दुश्मनों की
लाश को इज्जत दिया ||
लाश को ताबूत में रख
पाक को भेजा किये |
पर शिकायत यह नहीं कि
आप कुछ बेजा किये ---
राम-लीला हो रही |
है सही बिलकुल सही ||
रेल के घायल कराहें,
कर्मियों की नजर मैली |
जेब कितनों की कटी,
लुट गए असबाब-थैली |
तृन-मूली रेलमंत्री
यात्री सब घास-मूली
संग में जाकर बॉस के
कर रहे थे अलग रैली |
राम-लीला हो रही |
है सही बिलकुल सही ||
नक्सली हमले में उड़ते
वाहनों संग पुलिसकर्मी |
कूड़ा गाडी में ढोवाये,
व्यवस्था है या बेशर्मी |
दोस्तों संग दुश्मनी तो
दुश्मनों से बड़ी नरमी ||
राम-लीला हो रही |
है सही बिलकुल सही ||
हर-हर बम-बम
ReplyDeleteबम-बम धम-धम |
थम-थम, गम-गम,
हम-हम, नम-नम|
शठ-शम शठ-शम
व्यर्थम - व्यर्थम |
दम-ख़म, बम-बम,
तम-कम, हर-दम |
समदन सम-सम,
समरथ सब हम | समदन = युद्ध
अनरथ कर कम
चट-पट भर दम |
भकभक जल यम
मरदन मरहम ||
राहुल उवाच : कई देशों में तो, बम विस्फोट दिनचर्या में शामिल है |
झिंझोड देने वाली क्षणिकाएँ ... अंतिम क्षणिका ने सब कह दिया ...
ReplyDeleteसोनल जी!
ReplyDeleteकुछ भी कहा अगर तो आपका कहा नहीं छू सकता.. अंतिम क्षणिका ने तो सचमुच झकझोर दिया!
मन भर आया!!
very well describe the situation touching!!1
ReplyDeletehamara durbhagya hai yeh hamle.......
ReplyDeleteसोचने पर मजबूर करनेवाली नज़्म है...
ReplyDeleteवेदना भी और कटाक्ष भी..
ReplyDeleteबहुत सटीक..
sagar ki baat jaisi hi meri baat
ReplyDeleteआम जन के क्रोध की सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteदुखती रग को छेडती हुई पोस्ट
ReplyDeleteलाजवाब
अंतिम क्षणिका ने सब कह दिया ....सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
बहुत तल्ख रचना
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
मन को छू लेने वाली कविता। बहुत खूब।
ReplyDeletebehad acchi aur maarmik rachna sonal ji... Ravikar ji.. apka likha bhi behad pasand aaya...
ReplyDeleteक्या गज़ब की क्षणिकाएं हैं ... बहुत तीखी ... तल्ख़ और सटीक ... दूसरी और अंतिम वाली में तो बस सोचता ही रह गया ...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteपहले ये रचनाएँ पढी ... फिर ब्लॉग की और भी बहुत सारी पढ़ी ... बहुत अच्छी लगी ..
ReplyDeleteबधाई ...
सोनल जी नमस्ते बहुत सुंदर और गहन कवितायें बधाई
ReplyDeleteसिस्टर, आपने बहुत ही बेहतरीन तरह से लिखा है. इतना अच्छा लिखा है की दिल पर वार कर गया. २ नाक पर......... बहुत ही जबर्दश्त है. शुक्रिया मेरे ब्लॉग पर भी पधार कर मार्ग दर्शन देने की कृपा करें
ReplyDeletehttp://bantinihal.blogspot.com/
बेबसी, स्वार्थ, कायरता, कब किसका हिसाब होगा किसे पता
ReplyDeleteएक से बढकर एक.....कमाल कर दिया आपने ....
ReplyDeleteThis is absolutely fantabulous...........ONE OF THE BEST.
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