भले ही हमने सड़क पर जन्म नहीं लिया
और पले भी नहीं किसी फुटपाथ पर
पर बिता रहे है बेशकीमती हिस्सा ज़िन्दगी का
चमकीली पथरीली काली सडको पर
खर्च करते हुए बे-भाव
अपनी अलसाई सुबहें और धूसर शामें
काला धुँआ सोखते हुए फेफड़ों में
तकरीबन बहरे हो चुके है
सुन-सुनकर होर्न का चीखना तभी तो सड़क पर लहुलूहान
जिस्मों की चीखे नहीं सुनाई देती
सारे आवेग ,कुंठाए ,आक्रोश क्षोभ
रख देते है एक्सीलेटर पर
भागते चले जाते है दिशाहीन से
जाम में फसे हुए चिपट जाते है
प्रेत से आवेग और कुंठाए
चीखते है बकते है गालियाँ
मारने दौड़ते अनजान लोगों को
यही सड़क बन जाती है रणक्षेत्र
बलि होते निर्दोष असहाय
सड़क पार करते करते पार कर जाते है
अपने जीवन की रेखा
तकरीबन बहरे हो चुके है
ReplyDeleteसुन-सुनकर होर्न का चीखना
तभी तो सड़क पर लहुलूहान
जिस्मों की चीखे नहीं सुनाई देती
apne andar ki awaaz bhi ab nahi sunaai deti
बहुत ही जीवंत चित्र खींचा है...दौड़ती भागती ट्रैफिक का हिस्सा बने लोगो के मनोभावों का.
ReplyDeleteसटीक लिखा है ..हर इंसान बस इस दौड में शामिल है दिशाहीन सा ..
ReplyDeletekay baat he Sonal ji!
ReplyDeleteaapki ye rachna hakikat me ek chalchitr sa kheench gayi,
badhai!
ek katu satya bayan kar diya sonal ji
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विचारों में नयापन लिए हुए बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन प्रस्तुति|
ReplyDeleteसड़कों पर खर्च होती जिंदगी की झलक बहुत ही जीवंत है ।
ReplyDeleteसच में, जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा सड़कों पर ही बीत जाता है।
ReplyDeletesahi baat likhi hai.. sach much hum sadkon per paida to nahi hue magar apni zindgi ka ek bahut bada hissa sadkon per he bita rahe hain..
ReplyDeletesahi kaha aapne sonal ji
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 01-08-2011 को चर्चामंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर सोमवासरीय चर्चा में भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeletevibhast par aaj ka yatharthv ujagar kartee rachana......
ReplyDeletebahut kub,
ReplyDeletesundar
बेहतरीन प्रस्तुति|
ReplyDeleteसटीक लिखा है ..
ReplyDeleteआम जीवन से जुड़ी कविता .....
ReplyDeletesahee soch hai..aur mann ko jhakjhor deti hai...
ReplyDeletehttp://teri-galatfahmi.blogspot.com/
acchha lagi......yah kavitaa.....
ReplyDeleteमित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
ReplyDeleteएस .एन. शुक्ल
संवेदनहीन समाज को आइना दिखाती संवेदन शील प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा .... साथ इस तस्वीर ज़िन्दगी की हक़ीक़त को बयां कर रही है
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