Pages

Monday, June 4, 2012

तुम बिन ....

पुरानी तस्वीरे ..छूटे रूमाल आधी काटी टॉफी और पेड़ पर चाक़ू से बना निशाँ सब वही है सब गवाह है तुम मेरी थी मेरे साथ थी पर अब तुम्हारे सिवा सब यहीं है. कितना आसान होगा ना जो तुम्हे बे-वफ़ा कह दूं और मोड़ लूँ अपनी राहे ,तुम्हारे करीब से ना गुजरूँ ना तुम्हे सोचूं पर क्या करूं उस नहर का जहाँ पैर डाले दोपहर बिताते थे मेरी राह तुमसे तो मुड़ गई है. पर वो नहर ना जाने कैसे अब भी मेरे रास्ते में आ जाती है ...और तुम्हारी खिलखिलाहट फिर से महसूस करवा देती है ...क्यों नहीं तुमको भाता था माल में घूमना जो मैं बंद कर देता वहां जाना ...तुम्हे सिनेमा  का शौक भी नहीं था मेरे लिए थोडा आसान हो जाता ना ..पर तुम्हे पसंद था मंदिर ,गलियों के चक्कर लगाना रिक्शे में बैठना ...फूटपाथ पर लगी रेहड़ियों से मोलभाव करना ...फिर २ रूपये कम करवाकर मुस्कुराना ...हर दूसरी लड़की यही करती दिख जाती है और साथ में तुम भी ...तुम्हारे खुले बाल जब बस की हवा से मेरे चेहरे पर बार बार आते थे और ना मैं उन्हें हटाता  था और ना तुम कोई कोशिश करती थी बस उसी सुकून भरी छाँव में मैं कितनी गर्मियां काट लेता था . आज तीखी धूप मुझे भीतर तक जला रही है अपने ही जलते मांस की गंध ने सांस लेना दूभर कर दिया है. कितनी आसानी से चली गई ना तुम ...काश मैं जाता और तुम यहाँ होती तो महसूस करती तड़प को दूरियां ही बनानी  थी तो इसी जहां में रहकर बना लेती कसम से कुछ नहीं कहता ...पर उस जहां तक मेरी आवाज़ भी तो नहीं जाती होगी ना ......

12 comments:

  1. न जाने चले जाते हैं कहाँ .....|


    सच !!!!

    ReplyDelete
  2. जाने वाले तो चले जाते हैं पर लंबी यादों का काफिला वहीं छोड़ जाते हैं ... गाहे बगाहे तुम्हारी याद कराते रहते हैं ...

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति....आभार
    फुर्सत मिले तो आदत मुस्कुराने की पर ज़रूर आईये

    ReplyDelete
  4. यह गीत मेरा पसन्दीदा है। फ़िल्म देखने की सबसे पहली दो यादों में यह एक गीत भी है।

    ReplyDelete
  5. क्यों चाहती हूँ मैं तुम्हें इतना ...'
    क्या यह एक शाश्वत प्रश्न नहीं है?

    ReplyDelete
  6. वाह...सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
    अगर मेरा मन गाने को करता है तो मुझे यह गीत पहले नम्बर पर गाना पसन्द है...

    ReplyDelete
  7. लिखा आपने मगर पुरुष की कलम से !
    विछोह का दर्द यादों में डूबा कितनी शिद्दत से !

    ReplyDelete
  8. क्या भूलूं क्या याद करूँ ..

    ReplyDelete
  9. यादें बस यादें रह जाती है...

    ReplyDelete
  10. zindagi ki talkh haqeeqat ko bayaan kartaa ye geet behad sanzidaa hai. dil ko chutey iskey bol hain

    ReplyDelete