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Wednesday, July 4, 2012

सावन को झूमकर आना ही पडा

बेहयाई ओढ़े थे तपते दिन
बादलो को पर्दा गिराना ही पड़ा
लू भी ढीठ सताती थी बहुत
आसमां को रहम बरसाना ही पड़ा
कांटे बो गई दोपहर पीठ पर मेरी
बूंदों को मलहम लगाना ही पड़ा
आह मेरी बे-असर रहती कबतक
सावन को झूमकर आना ही पडा

17 comments:

  1. कब तक चुप रहती सोनल...
    उसको गाना गाना ही पडा....
    :-)

    happy monsoon.

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  2. आह मेरी बे-असर रहती कबतक
    सावन को झूमकर आना ही पडा

    क्या खूब लिखा है आपने
    सावन की तरह मन को भीगोती पंक्तियाँ !!

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  3. सावन कोsssss आने दोsssss .हम ये गाना गा लेते हैं :)

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  4. :):) सावन का महिना तो शुरू हो गया पर बरखा नदारद है ..... गुड़गाँव में बारिश हुई क्या ? :)

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  5. आह मेरी बे-असर रहती कबतक
    सावन को झूमकर आना ही पडा

    ....बहुत खूब! बारिश तो अभी नहीं आयी पर आपकी रचना के सावन ने मन को भिगो दिया..

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  6. आया सावन, पर वो सावन कहाँ

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  7. आपके यहाँ आ गया है सावन,हम तो अभी भरे जेठ-से तप रहे हैं !!

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  8. आह में असर दमदार है,
    बादल बरसने को बेकरार है..

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  9. सावन कों झूम के आना ही पड़ा ... सच है जब इतना हो इंतज़ार ... उनको तो आना ही था ... मस्त कर गई सावन की फुहार की तरह ...

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  10. वाह! क्या बात है!
    घुघूतीबासूती

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  11. सावन बेचारा अभी डरा-डरा सा है कि कहीं देर से आने का पैसा न कट जाये। :)

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  12. अभी झूम कर कहा आया ...
    फिर भी कम से कम बरसा तो !
    आपकी आह में असर होता रहे :)

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