कुछ दिन होते है खुराफातों के जब कोई बेचैनी आपको भीतर तक उकसा जाती है उठो और कुछ कर जाओ कुछ तो करो ..सक्रियता वाले रसायन शरीर और मन दोनों को झंझोड़ देते है ... माँ वाले समय में होती तो शायद किसी कोरे कपडे पर फूल चिड़िया रंगीन धागों से उकेर देती ...और दीदी जैसी तो किसी सूती कपडे पर धागों से नन्हे नन्हे मोती बाँध कर लाल हरे रंग में डुबो देती ..पर मैं तो अजीब हूँ कुछ अपूर्ण सी ,सुघड़ता के नामपर कुछ नहीं ...फिर क्या करूँ एक बार सिलाई करने बैठी तो अपनी फ्रॉक को समीज के साथ सिल डाला ....आर्ट के नामपर आम से ज्यादा कुछ नहीं बना पाती . फिर कुछ पर चढ़ा ये फितूर .. सोचते सोचते मोबाइल उठा लिया ..आज किसी ऐसे से बात करूंगी जिससे बरसों से बात नहीं की है हां ये अच्छा रहेगा कुछ अनजाना सा ..मोबाइल को लेकर घर के सामने पार्क में चली आई ,एक के बाद एक सारे नंबर आँखों के सामने से गुजरने लगे साथ ही उनसे जुड़े चेहरे भी कभी मुस्कुराती तो कभी उदासी ..किसी के नाम पर होंठ वक्र हो उठे।
अचानक एक अनजाना सा नाम लिस्ट में उभर आया "मिति" , दिमाग के सारे दरवाजे खटखटा डाले कोई पहचान की खिड़की खुले पर चाह कर याद नहीं आया, पीछे आठ सालों से यही नंबर है मेरा पर मेरी स्मृतियों में दूर-दूर तक कोई मिति नहीं है, क्या करूँ ? कॉल करती हूँ, देखती हूँ कौन है ?
गीत गूंजा "मुस्काने झूठी है " करीना के गहरे लाल रंग से पुते होंठ आँखों के सामने आ गए पर मिति का कोई सूत्र नहीं पकड़ पा रही थी, अचानक एक मीठी सी आवाज़ गूंजी "हेल्लो स्नेहा ,आज याद आई तुम्हे मुझे कॉल करने की ". इतने अपनेपन से किया गया सवाल मुझे ज़मीन पर पटक गया सोचा था हेल्लो के बाद पूछ लूंगी आपका नंबर मेरे मोबाइल पर है क्या हम कभी मिले है ?
संवाद की डोर उसने पकड़ ली थी ,एक के बाद एक सवाल पूछ रही थी मेरे बारे में काम के बारे में मेरे परिवार के बारे में , और मैं अपने दिमाग पर हथोड़े मारकर उसे जगाने की कोशिश कर रही थी काश किसी बात से कोई सूत्र मिल जाए और मैं इस बवंडर से आज़ाद हो जाऊं, किसी को एक आत्मीयता भरी बातचीत के बीच में टोकना और परिचय मांगना कितना कठिन काम है ये मुझे आज पता चला ... कही बिना रहस्य का उठाये फोन रख दिया तो और आफत,बैठे बैठे ये आफत मैंने खुद मोल ली थी .मैंने संभाल संभाल कर सवाल करने शुरू किये शायद किसी जवाब से कोई रास्ता मिले और मैं इस शर्मिंदगी से बच जाऊं. पर नहीं सारे उपाय फेल हारकर मैंने उससे कह दिया "प्लीज़ बुरा मत मानना , मैं तुम्हे बिलकुल पहचान नहीं पा रही हूँ आज मोबाइल में नंबर देखा तो कॉल कर लिया हम कब मिले थे "
दूसरी तरफ एक पल को सन्नाटा पसर गया मेरी धड़कन अब मेरी कांपती पर वार कर रही थी.
अचानक वो बोली "तुम्हे सच में याद नहीं है हम कब मिले थे ?"
"नहीं " मैंने सकपकाते हुए कहा।
"जानने के लिए मुझसे मिलना पड़ेगा तुम्हारी यही सजा है मैं कल तुम्हारा इंतज़ार 12 बजे मेगा मॉल में करूंगी,वैसे भी तुम्हारी थैंक्सगिविंग की छुट्टियाँ है "उसने तसल्ली से कहा।
कल यानी 24 घंटे बाप रे मैं तो जासूसी नावेल भी पीछे से पढ़ती हूँ यहाँ इतना लंबा इंतज़ार ..आज की रात कैसे कटेगी। उसने फोन कट कर दिया मेरे पास इंतज़ार के अलावा कोई चारा नहीं था। .......क्रमश:
कल यानी 24 घंटे बाप रे मैं तो जासूसी नावेल भी पीछे से पढ़ती हूँ यहाँ इतना लंबा इंतज़ार ..आज की रात कैसे कटेगी।
ReplyDeleteए..लो..SSS...
हमें भी फ़ँसा दिया...
रात तो कट गयी ना...अब बता भी दो... :)
वाह , ये तो एकदम नए फ्लेवर वाली कहानी. शुरुवात तो धांसू रही . आई हेट इंतजार , नेक्स्ट २४ आवर्स . हुह.
ReplyDeleteक्या बात है ... एकदम नई शैली में कहानी की शुरुआत ...
ReplyDeleteसच है ये इंतज़ार आसान नहीं वो भी २४ घंटे का ...
रोचक है कहानी
ReplyDeleteहम भी इंतजार कर रहे हैं स्नेहा के साथ
प्रणाम
बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteशायद इसे पसन्द करें-
कवि तुम बाज़ी मार ले गये!
बहुत उम्दा लिखा है इन्तेज़ार में जो आनंद है वो और किसी चीज़ में कहाँ .... तो अब तो इन्तेज़ार है क्रमश: के बाद की मिठाई का क्योंकि कहते हैं न के 'इन्तेज़ार का फल मीठा होता है'...
ReplyDeletenice post...
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति...
ReplyDeleteरोचक कहानी...
ReplyDeleteसस्पेंस हमसे भी बर्दाश्त नहीं होता सोनल.....
ReplyDeleteरहम करो...
अनु
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट आपका आमंत्रण है। धन्यवाद।
ReplyDelete24 घंटे तो बीत गए ..... अब आगे ?????
ReplyDeleteअधूरी दास्तां जानने की खूब इच्छा हो रही है मेरे साथ भी ऐसा ही होता है पहले जल्दबाजी में नंबर सेव करता था तो किसी का नंबर यू तो किसी का एवि ऐसे रखा था बहुत सारी मिति मेरे मोबाइल में पड़ी थीं लेकिन किसी ने मोबाइल ही चुरा लिया और ऐसी सुंदर कहानी बनते-बनते रह गई।
ReplyDeleteaage padhane utsukta tej ho gyee hai ..
ReplyDeleteचरस बो दी गयी, रात भर नशे में बीतेगी।
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