भुला दिया !
रात भर करवटें बदलने का फैसला मैंने खुद किया था, तो किसी का क्या कुसूर :-( गूगल में मिति का नाम ढूँढा ... फेसबुक पर खोज की यहाँ तक ऑरकुट जिसे शायद पिछले चार सालों में मुड कर भी नहीं देखा था उसे भी एक्टिवेट कर डाला, दिमागी कीड़ा जाग चुका था और मेरा दिमाग खा रहा था,पर कमाल है जो पहचान का एक सिरा भी पकड़ में आ जाए ... तो मैं यादों की पतंग खींच लूं, जब आधी रात सोच दिमाग से उबालकर बाहर आने लगी तो हार कर चादर में मुह घुसा कर सो गए ...एक हारे हुए खिलाडी की तरह ..ये ऐसा था जैसे आपको किसी गाने की धुन याद आये और बोल नहीं ...या किसी फिल्म के गीत के साथ पूरी फिल्म याद आयें और फिल्म का नाम याद आने का नाम ना ले ।
सुबह थोड़ी देर से हुई चूँकि छुट्टियाँ थी तो साँसे और घडी दोनों सुस्त रफ़्तार पकडें थी। रहस्य खुलने में ज्यादा वक़्त नहीं था तो दिमाग का कीड़ा भी सुस्त पड़ गया था। इससे ज्यादा मेहनत उसके बस की नहीं थी, तय समय से कुछ पहले मेगा माल के गेट पर खड़ी थी, मिति कौन थी इससे ज्यादा उत्सुकता इस बात की थी कोई ऐसा जो मुझे इतने अच्छे से जानता है मैं उसे भूल गई .
बेचैनी से चारो ओर निगाहें घुमा दी फिर एक मुस्कान खेल गई ..नाम तो याद नहीं शक्ल भी पता नहीं याद है भी या नहीं। हर आती जाती लड़की के चेहरे पर आँखे गडा देती इसी उम्मीद में शायद वो मुझे पहचान ले। एक दो ने तो मुस्कान भी दे दी पता नहीं तरस खा रहे होंगे मुझ पर ...एक लड़की हर किसी को अजीब तरीके से घूर रही है .
अचानक मेरे कंधे को किसी ने प्यार से थपथपाया, पलटी तो भूरी आँखों वाली एक भोली सी लड़की मुस्कुरा रही है, चुस्त जीन्स और गुलाबी टॉप, कुछ हल्का सा मेकप कानो तक छोटे -2 पर करीने से कटे बाल । मैं मानो एक भंवर में उतर गई आँखे छोटी करके पहचानने की कोशिश में ना जाने कितनी तसवीरें आँखों के आगे से गुज़र गई, मैं इसी हालत में कुछ देर और रहती अगर उसका ठहाका मुझे होश में नहीं लाता, एक पहाड़ी झरने सा खिलखिलाता . ये हंसी मेरे साथ रही है मैं पहचानती हूँ इस हंसी को पर ये इस चेहरे से कुछ मेल नहीं खा रही
"रहने दे स्नेहा तेरे बस की नहीं " उसकी मुस्कान कुछ और खिल गई
अचानक सारे सूत्र में आने लगे उलझन सुलझ सी गई ...और मैं उसके गले लग गई ..अरे मिति मैं तुझे कैसे भूल गई .......क्रमश:
(इस दुसरे क्रमश: के लिए मुझे पता है ढेरो ताने मिलेंगे पर ये कहानी मुझसे मेरे सब्र का इम्तेहान ले रही है ... स्नेहा और मिति के साथ बने रहिये :-) )
Grrrr....Kit Kit
ReplyDeleteये क्रमश: जरूरी है जी
ReplyDeleteरोमांच और रोचकता तो इसी से है
प्रणाम
सोनल जी..उत्सुकता बढ़ा डी है आपकी मिति ने ..जल्द पूरी कीजिए कहानी..
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (29-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteसूचनार्थ!
कहानी उत्सुकता जगा रही है , प्रवाह अच्छा है , बिना अटके पढ़ लिया . उम्मीद है अगली कड़ी और भी रोचक होगी. कुछ संवादों को कथ्य में जगह मिलेगी .
ReplyDeleteरोचकता बढ़ गई है
ReplyDeleteएक बार प्रतीक्षा और सही..
ReplyDeleteHadd ho gayi naalayaki ki..its nt fair.. itte zara zara se installment? :-/
ReplyDeleteHad happened with me too lots of time.! Few friends really tried to remind :-(
ReplyDeleteरोचकता बनाई हुई है आपने ... क्रमष: कभी तो खत्म होगा ...
ReplyDeleteअब 24 घंटो का इंतजार शायद हमे करना पड़ेगा ...हाहाहा ..क्या करे हम भी किताब को पीछे से पड़ने वालो मैं से ही है
ReplyDeleteये क्रमश: तो खैर बिलकुल अच्छा नहीं लगा लेकिन चलिए हम इंतजार कर लेंगे :)
ReplyDeleteIllustration. https://imgur.com/a/1afBHva https://imgur.com/a/rYT5Jim https://imgur.com/a/kIRsu7k https://imgur.com/a/iPF7tiR https://imgur.com/a/k45MUdP https://imgur.com/a/3zcHsv5 https://imgur.com/a/rMWesyH
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