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Wednesday, October 27, 2010

बेबस और आवारा चाँद

एक शाम का राजा होता
हर कोई दुलराता है
कब आएगा कब आएगा
कह कर टेर लगाता है
सबकी आँखे नभ पर चिपकी
अपने रंग दिखाता चाँद  
कितना ख़ास हूँ आज की रात मैं
सोच सोच इतराता चाँद
अभी तलक तो नभ में लटका
सबका था राजदुलारा चाँद 
खिड़की खिड़की झाँक रहा अब
बेबस और आवारा चाँद
 

13 comments:

  1. hahaha...sahi hai sahi hai ..... lekin aisa nahi hai ...karwachauth ho na ho ...ashiqon kee to pehli pasand rahega ...

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  2. किसी ने कहा था रात नौ बजे तुम चाँद को देखना और ठीक उसी समय मैं भी चाँद को देखूँगा... फिर हम दोनों की आँखें चाँद पर मिलेंगी...
    अब ऐसे पागल प्रेमियों का एकलौता आसरा चाँद बेसहारा,बेबस और आवारा नहीं हो सकता...

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  3. कहा झाँक रहा खिड़की खिड़की ?
    हर तीसरे शायर का दुलारा चाँद !
    करवा चौथ के दिनों में तो,
    मांग में बहुत हमारा चाँद ....
    रचना भी आपकी उसके जैसे,
    एक आद धब्बे, बाकी करारा चाँद ...

    लिखते रहिये ....

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  4. खिड़की खिड़की झाँक रहा अब
    बेबस और आवारा चाँद

    ...vaah...bahut badhiya rachna.

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  5. चाँद कल के बाद आज बेबस हो गया...

    अच्छी कविता.

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  6. sonal ..kya socha tumne.. :)
    chand ka itrana aur phir bebas sa reh jana..
    phir bhi amber par na sahi..har nazm mein kisi na kisi roj chand nikalta hi hai :)

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  7. 3/10

    नया फ्लेवर लिए सामान्य रचना

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  8. बेबस और आवारा चाँद ...वाह...

    मेरे ब्लॉग पर इस बार

    उदास हैं हम ....

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  9. उस आवारा चाँद को निहारती कितनी आँखें।

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  10. na na ek din nahi ek aur din khaas hota hai 'bhai dooj' ...... aur phir varshon khilkhilata hai chaand

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  11. :)

    beautiful

    magar haan...karwa chauth rakhte hue mujhe do hi saal hue hain....par chaand ko barson se roz nihaarti aa rahi hoon...jab tak aap aur ham jaise pagal shayar baithe hain, chaand ko fursat kahan ;)

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  12. सोनल,
    लिल्लाह!!!
    वक़्त-वक़्त की बात है!
    बहुत खूब!
    आशीष
    --
    पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

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