(१)
एक का दर्द
दूजे का तमाशा है
लोकतंत्र की
यही भाषा है
(२ )
एक हाँथ में छाले
दूजे में प्याले है
वाह ऊपर वाले
तेरे खेल निराले है
(३)
वोट लिया
फिर खून पिया
फिर बोटी नोची
फिर खाल खींची
कहीं देखी है
जनसत्ता ऐसी
(४)
बुजुर्ग घर में
औरत शहर में
बच्चे स्कूल में
सुरक्षित नहीं
बेहतरीन कहा है आपने हर क्षणिका में लाजवाब ...।
ReplyDeleteसोनल जी, गागर में सागर सी हैं क्षणिकाएं।
ReplyDelete---------
सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है?
बेहतरीन कटाक्ष करती हुई क्षणिकाये
ReplyDeleteशुभकामनायें
एक का दर्द
ReplyDeleteदूजे का तमाशा है
लोकतंत्र की
यही भाषा है
बेहतरीन क्षणिकायें। देखन में छोटे लगें, घाव करें गम्भीर।
वाह! क्या बात है, बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteएक का दर्द
ReplyDeleteदूजे का तमाशा है
लोकतंत्र की
यही भाषा है
क्या बात है ..एकदम सटीक क्षणिकाएं .गहरी बात.
एक हाँथ में छाले
ReplyDeleteदूजे में प्याले है
वाह ऊपर वाले
तेरे खेल निराले है
bahut khoob
har ek kshanika me sateek vyangye. kamaal ki soch.
ReplyDeleteएक एक क्षणिका लाजवाब... समसामयिक!!
ReplyDeleteआज के समाज की सही तस्वीर प्रस्तुत करती सटीक क्षणिकाएं
ReplyDeletesab ki sab barabar chubhti hain, bohot khoob kaha...too good
ReplyDeleteकटाक्ष करती हुई क्षणिकाये...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
गजब है! गजबै है। तमाम सारी रचनायें पढ़ने को बची हैं आपकी। पढ़ते हैं। :)
ReplyDeleteएक का दर्द
ReplyDeleteदूजे का तमाशा है
लोकतंत्र की
यही भाषा है
हरेक क्षणिकायें सामजिक और राजनीतिक स्तिथि पर सटीक कटाक्ष..बहुत सुन्दर
गज़ब की क्षणिकाएँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
आज के समाज की सही तस्वीर प्रस्तुत करती सटीक क्षणिकाएं
ReplyDeleteआपको मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
ReplyDeleteसक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें
ReplyDeletebehtreen.....
ReplyDeleteवोट लिया
ReplyDeleteफिर खून पिया
फिर बोटी नोची
फिर खाल खींची
कहीं देखी है
जनसत्ता ऐसी ....
..एकदम सटीक क्षणिकाएं ..
आज की परिस्थितियों पर तीखा व्यंग्य है इन क्षणिकाओं में ।
ReplyDeleteप्रशंसनीय रचना।
शुभकामनाएं।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसटीक व्यंग . एक दम सधे हुए तीर.बहुत अच्छा लिखा है आपने.आपकी कलम को सलाम
ReplyDeletepearls in poetry.
ReplyDeleteआपको बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद अनूप जी को
बढ़िया क्षणिकाएँ पढ़वाईं।
हम और हमारे समाज को दर्पण दिखातीं बहुत सटीक और बेमिशाल क्षणिकाएं
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