कोई तो कहे की मेरे
ख्वाब सारे सच है
चाँद पर बुढ़िया
मौत के बाद बने
तारे सच है
होते है उड़ने वाले
कालीन कहीं पर
राजकुमारी के बाल
सच में लगते है
ज़मीन पर
चूमते ही प्रिंस के
जागती है राजकुमारी
किसी बाग़ में अब भी
खेलती है परिया सारी
शायद मेरे बचपन
के साथ गुम हो गए
मेरे तकिये के नीचे से
सपने चोरी हो गए
किसी और को भी
मन भाती होंगी
शायद तुम्हारी दादी भी
यही कहानिया सुनाती होंगी
ye "shaayad" hee to sabse badi tees hai...bahut pyaari pyaari nazm hui hai...
ReplyDeleteहाँ सच ही दादी ऐसी ही कहानियां सुनाती है :) और ये कहानियां फिर सपने दिखाती हैं और ये सपने जीना मुश्किल कर देते हैं..
ReplyDeleteप्यारी सी नज़्म.
सोचा की बेहतरीन पंक्तियाँ चुन के तारीफ करून ... मगर पूरी नज़्म ही शानदार है ...आपने लफ्ज़ दिए है अपने एहसास को ... दिल छु लेने वाली रचना ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteबिल्कुल बच्चों की तरह मासूम कविता और उतने ही मासूम सवालात! इनका जवाब ही असली ख़ज़ाना है!!
ReplyDeleteबचपन की सारी कहानियाँ याद आ गयीं ...सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletebachpan ki yaad taza ho gai...
ReplyDeleteमैं मानता हूँ सारी बातें सच हैं.....उसी दृष्टिकोण से देखिये.....और खीर का कटोरा भर भर के खाइए ये मान के की चाँद पे बहुत खीर है......
ReplyDeleteऔर वहाँ एक बुधिया कपास काटती है....ऐसा भी सुना है....
पूरी रचना भावपूर्ण और अर्थपूर्ण है ...बचपन को समेटे ....
ReplyDeleteशायद तुम्हारी दादी भी यही कहानिया सुनाती होंगी ..
ReplyDeleteहाँ मेरी दादी यही कहानी सुनती थीं...मेरी नानी भी सुनती हैं यही कहानी चाँद पर बुढ़िया..
जानता हूँ झूठ हैं ये किस्से..
लेकिन शाम का धुंधलापन और चाँद का जादू यकीं दिलाता है इनके होने का...
bahut khub:)
ReplyDeletesach me aapne dadi ki kahaniyon ke dwara dadi ki yaaad dila di..........:)
shooooo shweeeet.....haan, shayad yahi kahaniyaan thi......bohot bohot acchi nazm......
ReplyDeleteबचपन की याद दिलाती हुई, बचपन सी मासूम कविता के लिए बधाई
ReplyDeleteसच कोई कहे... बहुत सुंदर !!
ReplyDeleteशायद तुम्हारी दादी भी
ReplyDeleteयही कहानिया सुनाती होंगी
....बचपन में बहुत कहानी सुनी पर अपने बच्चों को सुनाने का समय अब नहीं मिल पाता.... और आजकल के बच्चे भी तो पुराणी कहानियां सुनने को तैयार नहीं ....... याद दिला दी आपने बचपन के भूली बिसरी कहानियां .......आभार
बचपन की कहानियां तो उन यादों की धरोहर हैं जो हम अपने बच्चों को विरासत में देते हैं...
ReplyDeleteबहुत प्यारी
शायद मेरे बचपन
ReplyDeleteके साथ गुम हो गए
मेरे तकिये के नीचे से
सपने चोरी हो गए
बचपन की सारी बातें न जाने कहाँ गुम हो गयीं.....
खूबसूरत कविता!
जी बचपन की दुनिया में पहुँचा दिया आपने .... बहुत लाजवाब लम्हों को समेट कर लिखी रचना ...
ReplyDeleteSach hain..! Saare sach hain.. :)
ReplyDeleteBeautiful writing... :)
बहुत खूब ... ....!
ReplyDeleteशुभकामनायें
हिंदी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनाएं '' -दो दिवशीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
ReplyDeleteप्रिय हिंदी ब्लॉगर बंधुओं ,
आप को सूचित करते हुवे हर्ष हो रहा है क़ि आगामी शैक्षणिक वर्ष २०११-२०१२ के जनवरी माह में २०-२१ जनवरी (शुक्रवार -शनिवार ) को ''हिंदी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनाएं '' इस विषय पर दो दिवशीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है. विश्विद्यालय अनुदान आयोग द्वारा इस संगोष्ठी को संपोषित किया जा सके इस सन्दर्भ में औपचारिकतायें पूरी की जा रही हैं. के.एम्. अग्रवाल महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजन की जिम्मेदारी ली गयी है. महाविद्यालय के प्रबन्धन समिति ने संभावित संगोष्ठी के पूरे खर्च को उठाने की जिम्मेदारी ली है. यदि किसी कारणवश कतिपय संस्थानों से आर्थिक मदद नहीं मिल पाई तो भी यह आयोजन महाविद्यालय अपने खर्च पर करेगा.
संगोष्ठी की तारीख भी निश्चित हो गई है (२०-२१ जनवरी २०१२ ) संगोष्ठी में अभी पूरे साल भर का समय है ,लेकिन आप लोगों को अभी से सूचित करने के पीछे मेरा उद्देश्य यह है क़ि मैं संगोष्ठी के लिए आप लोगों से कुछ आलेख मंगा सकूं.
दरअसल संगोष्ठी के दिन उदघाटन समारोह में हिंदी ब्लागगिंग पर एक पुस्तक के लोकार्पण क़ी योजना भी है. आप लोगों द्वारा भेजे गए आलेखों को ही पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया जायेगा . आप सभी से अनुरोध है क़ि आप अपने आलेख जल्द से जल्द भेजने क़ी कृपा करें .
आप सभी के सहयोग क़ी आवश्यकता है . अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
के.एम्. अग्रवाल महाविद्यालय
गांधारी विलेज , पडघा रोड
कल्याण -पश्चिम
pin.421301
महाराष्ट्र
mo-09324790726
manishmuntazir@gmail.com
http://www.onlinehindijournal.blogspot.com/ http://kmagrawalcollege.org/
सोनल जी, आपकी रचनाओं - खासकर कविताओं ने शब्द की अक्षरता पर मेरे भरोसे को और सुदृढ़ किया है तथा स्वयं कविता की अतिजीविता के प्रति आश्वस्त भी | यों तो कविता शब्दों में ही लिखी जाती है, पर आपने शब्दों का प्रयोग प्रतीकों के रूप में भी जिस तरह किया है, वह प्रभावित करता है | आपकी रचनाओं को पढ़ कर मैंने जाना कि भाषा अगर मनुष्य का सबसे क्रांतिकारी अविष्कार है - जो वह है - तो उसकी कल्पना, साहस, अतिजीविता और अध्यात्म का सबसे ज्वलंत और अमिट प्रतीक शब्द है |
ReplyDeleteअच्छी रचना है .....!!
ReplyDeleteबचपन की याद दिलाती सुन्दर कविता.
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया और मासूम कविता.
ReplyDeleteशुभ कामनाएं
बचपन की याद दिलाती हुई, बचपन सी मासूम कविता के लिए बधाई|
ReplyDeletemasoomiyat ki ek nai misal , mubarak ho
ReplyDeleteसोती सुन्दरी कहानी याद आ गयी!
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