सुन री सखि .................
जब होए अँधियारा
घर से बाहर मत निकलो
बड़ा शहर अंधियारी सड़के
घर से बाहर मत निकलो
पढ़ी लिखी भई सयानी
कौन भरम में जीती हो
नर्स बनो या बनो पायलट
सारे काज कर लेती हो
सूरज डूबे तुम छुप जाओ
घर से बाहर मत निकलो
बढे देश तो बढोगी तुम भी
आसमान छू लोगी तुम
आठ के बाद मुझको बतलाओ
घर कैसे पहुँचोगी तुम
थानेदार भी हाँथ जोड़ते
घर से बाहर मत निकलो ....
सुन री सखि
:) sun ri sakhi sahi kaha ....bahut sahi :)
ReplyDeleteसुरक्षा की दृष्टि से लिखी अच्छी रचना ... आज के हालात पर सटीक व्यंग झलकता है
ReplyDeleteआज नारी की सुरक्षा पर जो प्रश्नचिन्ह लग रहा है उस पर शानदार व्यंग्य्।
ReplyDeleteघर से बाहर जाने की आवश्यकता न हो तो घर से सुरक्षित कुछ भी नहीं।
ReplyDeleteप्रवीण जी , घर पर होने वाले अपराधो की संख्या बाहर होने वाले अपराधो से ज्यादा है
Deleteबिलकुल सही कहा...........
Deleteआरुषी के साथ क्या हुआ...हम सभी जानते हैं...
बहुत गहन लेखन सोनल जी...
well knitted...d truth of now a days life.
ReplyDeleteसार्थकता लिए हुए सटीक लेखन ।
ReplyDeleteआपको नव संवत्सर 2069 की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
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कल 23/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
घर में भी कौन सा सुरक्षित हैं .
ReplyDelete@ शिखा वार्ष्णेय ,
Deleteसन्न रह गया आपकी यह लाइन पढ़ कर , अचानक यह लाइने बन गयीं ....
न जाने आप किस रक्षा की बात करते हैं
जिधर देखू उधर खूंख्वार नज़र आते है !
गुडगाव की पुलिस की कैर नहीं आज ... सटीक टिपण्णी और चुटकी ली है आज के हालात पे ...
ReplyDeleteशर्मनाक हम सबके लिए ....
ReplyDeleteअच्छा सन्देश मगर दरिंदगी शर्मिंदा नहीं होती !
शुभकामनायें आपके लिए !
शर्मनाक!!
ReplyDeleteसही है ..
ReplyDeletesunder si ,pyari si .........sandesh deti rachna
ReplyDeleteयार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति.....
ReplyDeletebahut saarthak sandesh deti hui vyangatmak rachna.
ReplyDeleterealiti based....
ReplyDeletekatu satya.....aur samyik bhi.....
ReplyDeleteसत्य कथन....
ReplyDeleteसार्थक रचना...
गजब लिखा जी। :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति| नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteबहुत कुछ बोल देती है रचना...
ReplyDeleteसादर।
सीधे सच्चे शब्दों में सादगी से कहा, एक कटु सच ! बहुत सुन्दर !!!
ReplyDeleteबहुत ही सटीक व्यंग्य
ReplyDeleteपर पंक्तियाँ व्यथित भी करती हैं...
हमारी व्यवस्था और नारी सशक्तिकरण का नारा बुलंद करने वालों पर स्टीक व्यंग्य!
ReplyDeleteयही बंदोबस्त है अब लोकतंत्र में एक वी आई पी की हिफाज़त में तीन से चार पुलिस वालें हैं और एक लाख औरतों के पीछे ?घर से रात बिरात निकलने की मनाही .बहुत खूब .
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