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Wednesday, February 20, 2013

ऑलमोस्ट अ डेट (बरसती फरवरी )


गुडगाँव के एक पाश सी सड़क से मेट्रो से दिल्ली के एक ठिकाने तक, कैफ़े कॉफ़ी डे पर मुंह बिचकाकर "शादी वाली कॉफ़ी " पा जाने तक,एक चमक एक उतावलापन  था, सब बटोर लेने की ख्वाहिश उस रोज़ जब मुझसे ज्यादा आसमान बरसा था पर भीगे तुम ही थे दोनों हालात में,

और मैंने पाया था सबसे ख़ास एहसास ...तुम्हारे साथ होने का, तुम्हारे वक़्त में से एक कतरन काट कर अपने पास छिपा लेने का ,इससे पहले तुम फिर इस घडी के गुलाम हो जाओ और तनहा छोड़ दो मुझे ,मैंने अपने हिस्से के तुमको अपने पास सहेजना चाहती थी .

मेरी आँखे जो देख रही थी उस पर दिमाग यकीन नहीं कर पा रहा था एक पूरा दिन पूरी शाम तुम मेरे साथ थे ... अरसा हो गया था इतना समय एक साथ रहे ,मैंने हिचकिचाते हुए कहा " दिल्ली हाट चलें ?"
"बारिश में दिल्ली हाट ,भीग जाओगी " तुमने हैरानी से कहा
"इतनी भी कहाँ है , फिर छतरी तो है " मैंने हिम्मत की
पता नहीं क्यों तुमने मना नहीं किया ,और अच्छा किया बरसों बाद हमने बरसों पहले का समय जी लिया ,बे-फिक्र कोई टारगेट नहीं कोई डेड लाइन नहीं बस हम दोनों, पहले जहां मेरी बातें नहीं ख़त्म होती थी आज मैं खामोश थी समझ नहीं पा रही थी क्या कहूं ...पर कहना बहुत कुछ था इससे पहले कोई मुझे इस सच्चे सपने से जगाकर कहे "उठो बेल्ट कसो और कोल्हू में जुत जाओ ".

अपनी पसंद का खाना हमेशा कई यादों को जगा देता है , महाराष्ट्र पवेलियन में बैठे हम दो बहुराष्ट्रीय कंपनी के ज़िम्मेदार कर्मचारी , बड़ा पाव , उसल पाव, अंडा पाव और पाव भाजी पर बात कर रहे थे , पेट भरने का कितना आसान और सस्ता इंतज़ाम हर चीज़ के साथ पाव , करोड़ों के बजट बनाने वाले तुम जब दुकानदार से साबूदाना वडा  समझ रहे थे तो सच कहूं बेहद मासूम लग रहे थे .

मेरा बस चलता तुम्हारी उस उत्सुकता को कहीं सात तहों में छिपा लेती और जब तुम बोर्ड रूम ,बहीखाता और बलेंस शीट में परेशान होते तो तुमको चुपके से मुट्ठीभर वो मासूमियत सौंप देती, 18-18 घंटों तक चलने वाले ऑफिस 24 घंटे बीप देने वाले ब्लैक-बेरी  मुझे उस सजा से लगते जो शायद किसी जन्म के पाप का फल है, हर वक़्त एक जासूस की तरह निगाह रखे ,
तुम से कई बार कह कर देखा पर तुम्हारा जवाब भी जायज़ है "दुनिया सिर्फ तितली ,फूलों और जुगनुओं के नाम नहीं है, उन्हें देखने के लिए पेट भरा होना चाहिए और इतने बड़े और महंगे शहर में पाँव टिके होने ज़रूरी है

सच्ची बात पर मैं और क्या कहूं , हम बंजारे ही तो है बस एक शहर से दुसरे शहर एक गाँव से दुसरे गाँव , हमारा कोई आँगन नहीं कोई नीम नहीं कोई पड़ोस नहीं ,हर बार हमारे जीवन की तख्ती काली स्याही से पोत कर तैयार कर दी जाती फिर से वही अ से ज्ञ तक, इस उठापटक को ....

मेट्रो स्टेशन से उतारते हुए मैं तुम्हे उस शहर के बारे में वो छोटी छोटी बातें समझा रही थी जो मैंने कितनी अकेली शामों में खुद महसूस की है और याद रखी है तुम्हे बताने के लिए , "ये लड़की रोज़ शाम यहीं किसी का इंतज़ार करती है ", " पता है सारे   हाई फाई इस ठेले पर खड़े कचोरी में एक्स्ट्रा चटनी डलवाते है ", और तुम मेरी बातों पर उस शाम ऐसे जता रहे थे जैसे मैं कितनी महतवपूर्ण बात कर रही हूँ .

कुछ दिन पहले मैं शायद इस रिश्ते पर आंसू बहा रही थी आज मेरी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे,
प्यार में कभी कभी आंसू ज़रूरी होते है जो रिश्तों पर पड़ने वाली धुल को धोकर साफ़ कर देते हैं , फिर तो मेरे दिल की ख़ुशी का साथ आसमान ने भी दिया वो भी जी भर कर बरसा , कड़कती बिजलियों ने इतने घने अँधेरे में भी रौशनी की किरण दिखा ही दी

22 comments:

  1. <3
    all is well when ends well...

    love
    anu

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  2. Prose par achhi pakad hai aapki...Bhaasha me bhi khoob rawaani hai...padh kar achha laga!

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  3. कॉफ़ी भरे ग्लास की तस्वीर देखते ही जोरों से कॉफ़ी पीने की इच्छा हो आयी,
    बड़ी मुश्किल से उस इच्छा को दबाकर पोस्ट पढ़ी और अब कॉफ़ी पीने की इच्छा जाती रही, पोस्ट ही मन पर तारी है .

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  4. उस मोड़ से शुरू करें फिर ये जिन्दगी :).
    बहुत सुन्दर लिखा है सोनल.

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  5. ऑल्मोस्ट क्यों ?????? डेट ही थी .... मधुर यादों को सहेजने के लिए ...

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  6. वक्त से चुराए कुछ हसीन लम्हें हमारे साथ बांटने के लिए शुक्रिया सोनल!...सही में बहुत ही मासूम से पल है ये!

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  7. This comment has been removed by the author.

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  8. खोये पल फिर पा लिए, जीवन में एक बार
    दिल्ली हाट में बैठ के,करते सोच विचार
    करते सोच विचार,पा लियो मैंने साजन
    भीजे नेह तृप्ति भरे,ह्रदय में प्यार की गुंजन
    गगन बसंती भी बड़े,बहा रहा था नीर
    प्रियेवर संग जाती रही,सोनल तुम्हरी पीर

    बहुत सुन्दर लिखा | भावपूर्ण संस्मरण | आभार

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  9. हृदय और मस्तिष्क में स्पष्ट भिन्नता कभी कभी जीवन की शक्ति बन साथ खड़ी होती है, रखने योग्य गुण है यह तो।

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  10. मुझे यह पोस्ट पढ़कर जगजीत की वो गजल या आ गई एक शाम की दहलीज पर बैठे रहे वो देर तक आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं...

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  11. क्या हालेदिल लिखा है मेरी सोनपरी. so romantic !
    प्यार में कभी कभी आंसू ज़रूरी होते है जो रिश्तों पर पड़ने वाली धुल को धोकर साफ़ कर देते हैं , फिर तो मेरे दिल की ख़ुशी का साथ आसमान ने भी दिया वो भी जी भर कर बरसा , कड़कती बिजलियों ने इतने घने अँधेरे में भी रौशनी की किरण दिखा ही दी.
    बहुत अच्छा लिखा है.
    कुछ दिनों से मेरे डैशबोर्ड पर कुछ ब्लॉग्स की फीड अपडेट नहीं हो पा रही है. अपनी नयी पोस्ट का लिंक फेसबुक पर डाल दिया करो ना.

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  12. वास्तव में दूरियाँ कई खाइयों को पाट देती हैं...जादुई संस्मरण ...:)

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  13. प्रेम के महीन अहसास की प्रस्तुति---भावुक और मार्मिक
    बधाई





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  14. बहुत प्यारी बातें लिखी फ़र्रुक्खाबादी ने। एक्स्ट्रा चटनी हमेशा नसीब होती रहे।

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  15. अच्छा लगा,पढ़ कर.

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  16. अंत भला तो सब भला

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  17. बहुत खुब, बहुत अच्छा लेख है।

    मैं एक Social worker हूं और समाज को स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां देता हुं। मैं Jkhealthworld संस्था से जुड़ा हुआ हूं। मेरा आप सभी से अनुरोध है कि आप भी इस संस्था से जुड़े और जनकल्याण के लिए स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां लोगों तक पहुचाएं। धन्यवाद।
    HEALTHWORLD

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  18. Old post... Read it earlier too...

    You should write more frequently.

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  19. अरे वाह। ख़ूब लिखा। भाव विभोर कर दिया। साधुवाद।

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