होरी नाही खेलूंगी
श्याम सांवरे सांवरिया
बिगत बरस फागुन में
तैने कारो रंग लगायो
चन्द्रबदन ते श्यामा कीन्ही
तोरे मन को भायो
अलकन में उलझायो तैने
पलकन में अट्कायो
बारह मास मैं रही बावरी
दूजो फागुन आयो
तोरी सूरत नाही देखूंगी
श्याम सांवरे सांवरिया
ललिता रंगी गुलाबी तैने
रंगी विशाखा लाल
होरी बीते बरस बिताया
अब तक गाल गुलाल
मोसे तूने बैर निभाया
छोड़ अबीर गुलाल
श्यामल रंग लगाया मोहे
हाल किया बेहाल
गोवर्धन की सौं तू सुनले
घूंघट नाही खोलूंगी
श्याम सांवरे सांवरिया
होरी नाही खेलूंगी
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (13-03-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
होली की फुहार सी आनन्दित
ReplyDeleteललिता रंगी गुलाबी तोने
ReplyDeleteरंगी विशाखा लाल
होरी बीते बरस बिताया
अब तक गाल गुलाल ..
वाह ... कान्हा का भी रंग उतर जाए तो वो होली ही क्या ...
बहुरत सुन्दर रचना ...
Badhiya :)
ReplyDeleteBrij bhasha sunne gunne ka apna hi maza h.. :)
aap to brij main bhi bahut achchha likh leti hain
ReplyDeletevery well written blog ...awesome.-***
ReplyDelete"होरी बीते बरस बिताया
ReplyDeleteअब तक गाल गुलाल"
पर एक तरफ ते बात नाइ बनैगी सांवरिया मान जाइ तब न?
फागुनी रंग में रंगी सुन्दर रचना !
ReplyDeleteफाल्गुन में श्याम रंग में रंगी बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDelete:-)
ऐसे हठ पर तो कान्हा और ही रीझ जायेंगे ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वर्णन ।
सांवरे ने लगाया भी रंग तो सांवला ही !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
kahe nahi khelogi hori kandha sang,jid tumhri nahi kandha ko bhave...
ReplyDeletesundr hath yog
ReplyDeleteसादर जन सधारण सुचना आपके सहयोग की जरुरत
साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )
एक अलग रंग में रंगी रचना..
ReplyDeleteफागुना गईं तुम भी :)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गीत है.
ललिता रंगी गुलाबी तोने
ReplyDeleteरंगी विशाखा लाल
होरी बीते बरस बिताया
अब तक गाल गुलाल.
सोनल जी आपने बहुत सुंदर फागुनी रंग में रंगा गीत लिखा है. बहुत बढ़िया.
सोनल जी बहुत ही सुन्दर रचना . . मुझे तो इसे गाने का मन हो आया ...किसी कवि ने कहा है की जब मन डोलता है तो कविता बनती है और जब ह्रदय डोलता है तो गीत बन जाता है ..ऐसा ही अनुभव हुआ आपका ये सुन्दर मनोहारी कृष्णा प्रेम से ओत प्रोत गीत गुनगुनाकर ...बहुत बहुत बधाई :-)
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteसुन्दर सात्विक अभिव्यक्ति.....साधू साधू |
ReplyDeleteअद्भुत भाव, अद्भुत शब्द चयन, उत्कृष्ट रचना ।
ReplyDeleteआपकी इस कविता मै श्री कृष्ण जी द्वारा राधा जी और गोपियों के होली खले जाने का बहुत ही सजीव चित्रण खा गया है जैसे मानो हमारे आँखों के सामने ही खेल रहे हो | Talented India News
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