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Thursday, March 17, 2011

होली ....

होली ..हर उम्र में होली का अपना मज़ा होता है ..मन फागुन की बयार में बौराने लगता है आज भी बौइरा रही हूँ पर तुम पता नहीं कहा हो ..शायद कंधे पर लैपटॉप डाले ऑफिस की तरफ जा रहे होगे ...या अपनी शॉप पर बैठे होगे ..तुम कहाँ हो और आज क्या कर रहे हो मुझे कुछ भी नहीं पता पर हर होली  दिल में टीस जरूर दे जाती है ..... मेरी भटकी आँखों को कई बार ... निलय ने पकड़ा है  "किसे ढूंढ रही हो सपना " और मैं मज़ाक में कहती हूँ "जब तुम सामने हो तो मुझे किसी को ढूँढने की जरूरत नहीं ....
आज बरसो बाद सिगरेट पीने की इच्छा हो रही है ..मन कर रहा है दो कश भरु और और मुह से धुएं के साथ अपने अन्दर से तुम्हे भी बाहर निकाल दूं .. तुम्हारी यादें कसैली सी लगने लगी है ..तुमने जब हांथों में रंग लेकर मेरी तरफ पहली बार शरारत से देखा था तो सच मानो मेरे गाल भी उतने ही बेताब थे जितने तुम्हारे हाँथ ...और मैं बिलकुल नहीं चाहती थी कोई मेरे गालों पर तुमसे पहले गुलाल लगाये ...सारी रात इसी इंतज़ार में थी ...तुम कौन सा रंग लगाओगे ... सुर्ख लाल ..जो मैं तुम्हारे हांथो से अपनी मांग में देखना चाहती  थी ,चमकीला  हरा जो शायद मेरी कलाइयों में चूड़ी बन खनकेगा ..पीला जो हांथो में हल्दी बन सजेगा या फिर रुपहला मेरे सपनों की तरह.
तुम जब मेरी ज़िन्दगी में शामिल होने लगे थे तब बहुत कच्ची उम्र में थी मैं ..अल्हड पर तुमको देखते ही मानो किस अनुशासन से बंध जाती थी ..कितनी बार सोचती तुम कुछ कहो ..पर नहीं इसी अबोले पलो के बीच दिवाली से होली आ गई ....और मेरे मन में आकर्षण के बीज में अंकुर फूटने लगे ..कभी कभी जब तुम्हे सोचती तो शारीर से ना जाने कैसी सोंधी सी महक उठती और मैं कस्तूरी मृग की तरह बौरा उठती .... सब जादू सा लगता ...सपने सा ..सपना का सपना ...
तुम जब मेरी तरफ रंग लगाने के लिए बढे ..तो मैं सकुचा रही थी पर ..ये अनुभव बिलकुल वैसा नहीं था ...मेरे कोमल सपने एक पल में कुचल गए ...तुम्हारे हांथो में काला रंग था जो तुम बड़ी कठोरता से मेरे मुह पर मेरे गले पर लगा रहे थे ..और तुम्हारे दोस्तों की आवाजें "छोड़ना मत " ,"मौके का फायदा उठा यार ", "तेरी तो सेटिंग है "... कानो में पिघले सीसे की तरह उतर रहे थे मैं अपने को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी ..बीच बीच में उठती ..शराब की तीव्र गंध में जो कस्तूरी  खोई वो आज तक नहीं  मिली ....
उस होली ने छोड़ा मुह पर काला रंग जिसको कितना उतारने की कोशिश की पर आज भी ..कहीं मन के कोने में रह गया है ..जो हर होली रंगों को देखते ही पूरे अस्तित्व को अँधेरे में डाल देता है ........
आज फिर होली है हर तरफ रंग है निलय आने जाने वालो को बोल रहे है सपना को रंग पसंद नहीं है ..और गुलाल के टिके लगा रहे है ...निलय के मनपसंद त्यौहार पर मेरा ना होना उसे मायूस तो करता है पर कभी भी उसने जबरदस्ती नहीं की ..जब भी वो नए शादीशुदा जोड़ो को होली में मस्ती करते देखता तो उसकी उम्मीद भरी आँखे मेरी तरफ उठ जाती ..ये हमारी शादी के बाद दूसरी होली है ..मैं निलय का चेहरा देख रही हूँ ...कितना प्यार करता है मुझे ...कितना सुरक्षित महसूस करती हूँ उसकी बाहों में ....और मैं किस के लिए  लिए निलय को तकलीफ दे रही हूँ जिससे मेरा कोई रिश्ता भी नहीं है 
अचानक सारी कालिमा ख़त्म होने लगती है और थाली में सजे रंग मानो आवाज़ देते है आओ और सजा लो हमें अपनी ज़िन्दगी में ..मेरे हांथो में गुलाबी रंग लिए मैं निलय पर टूट पड़ती हूँ और बिना उसे संभलने का मौक़ा दिए रंगों में सराबोर कर डालती  हूँ ... निलय की आँखों में कई रंग तैर जाते है ..भौचक्का .... विस्मय ...आश्चर्य .. शरारत ..फिर...  कितनी देर हम दोनों होली खेलते  रहे याद नहीं....इस होली की यादें ऐसी बनी की अब शायद कोई और होली कभी याद ना आये .....



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Sonal Rastogi

Monday, March 7, 2011

..नारी होने की पीड़ा

विश्व महिला दिवस की पूर्व संध्या पर ..अरुणा क्या कहूं तुमसे .तुम जिस परिस्थिति में हो और जितने समय से हो ....तुम्हे तुम्हारे नारी होने की जो सजा मिली है वो अंतहीन है ..आजीवन कारावास भी १४ साल में ख़त्म हो जाती है ...
मैं तुम्हे जानती नहीं हूँ ..जानती तो मैं उन सबको भी नहीं हूँ जो सडको से उठा ली  जाती है ,घरो में मार खाती है , अपने करीबी रिश्तेदारों द्वारा कुचली जाती है ..पर हर खबर चुभती है बहुत गहरे तक ....हम जिन हादसों को सोच कर डर जाते है ..और मानाने लगते है हमारे साथ हमारे करीबियों के साथ वो कभी ना हो ..उनको तुम सबने झेला है ,कल सब नारी की महिमा गायेंगे ...मैं नहीं गा पाउंगी और ना गर्व कर पाउंगी अपने नारी होने पर ... अरुणा तुमको जीने नहीं दिया और अब मरने भी नहीं दे रहे ... जो लोग कामना कर रहे है तुम्हारे मरने की वो तुम्हारे मरने की कामना नहीं कर रहे बल्कि अपने इंसान होने की शर्मिंदगी दूर करना चाहते है ...तुम चली जाओ तो शायद अपने गिल्ट से छुटकारा पा जाए ... किसी की हवस किसी के लिए  कदर भयावह हो सकती है .....
नारी के कपड़ों चरित्र व्यवहार की विवेचना करने वाले उन पशुओ के लिए कभी कुछ नहीं लिखते जो समाज में घूम रहे है ... जिनके लिए १८ साल की युवती और ६ माह की बच्ची में कोई अंतर नहीं है ..शील ,मर्यादा ,कर्त्तव्य की बात तो करेंगे पर सिर्फ नारी के लिए ...पर कभी समझ नहीं पायेंगे नारी होने का भय ..नारी होने की पीड़ा




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Saturday, March 5, 2011

छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए

मेरी आँखों में आँखे डालकर ..पिछले कई घंटो से तुम समझा रहे हो ...कोशिश कर रहे हो इश्क में सीनिअर जूनियर नहीं होता ..इस बात से क्या फर्क पड़ता है की तुम्हारा दिल २ साल ज्यादा धडका है ..उतना distance  तो मेरे दिल ने जिस दिन तुम्हे देखा था उसी दिन पूरा कर लिया था. और मैं बस तुम्हारी मासूमियत पर मुस्कुरा कर रह जाती हूँ ..जब तुम मुझे कन्विंस कर रहे होते हो तुम्हारे यही शायराना अंदाज़ कुछ बेचैनी ,बेसब्री और कुछ पागलपन की बातें मुझे नई दुनिया में ले जाती है ..जहाँ मैं हूँ कुछ अप्राप्य सी और तुम ... मुझे पाने को व्याकुल .

मेरी मुस्कराहट तुमको थोडा सा झुंझला देती है ..... तुम्हे दुनिया में मुझसे पहले इसलिए भेजा गया कि तुम देख सको क्या फर्क है दुनिया में मेरे आने से पहले और मेरे आने के बाद .. तुम समझ लो कोई तुम्हे मेरे जितना प्यार नहीं कर सकता ..बस इम्तिहान लेना बंद करो ..

इम्तिहान ... याद आया मैं जिन जिन इम्तिहानो से गुजरी हूँ या गुज़र रही हूँ उसकी आंच का एहसास भी नहीं है तुमको भले ही हमारी उम्र में दो साल का अंतर हो पर अनुभव में कम से कम एक दशक का ... तुमको हमेशा मखमल मिला है और मैंने टाट को मखमल में बदला है ..खुरदुरेपन से मुलायमियत तक का सफ़र इतना आसान नहीं होता ...तुम्हारी आँखों में सपनो के बुलबुले देखकर घबराती हूँ जिस दिन धरातल से टकरायेंगे क्या होगा ... तुम्हारी मासूम आँखों में सपने ही सजते है इन्हें भिगोना नहीं चाहती खारे पानी से ..मैं गुनगुना उठती हूँ 

छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए ..ये मुनासिब नहीं .......................................