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Tuesday, May 29, 2012

"दाग अच्छे है "



चेहरे पर चेचक के दाग
जो गढ़  दिए थे किसी देव ने
यूँही खेल खेल में
मन पर पड़े दाग जब
कहा उसने प्रिय तो हो
पर प्रियतमा ना कह सकूंगा
अब चरित्र पर लगाते है लोग
अपने मनोरंजन के लिए
कहकहे लगाते है पीठ पीछे
और  तुम कहते हो
"दाग अच्छे है "

Tuesday, May 8, 2012

देखो रूठा ना करो ...


ओह तो ये तुम हो,,,, उसने अपनी उनींदी आँखे खोलते हुए कहा ,
तो रात के ढाई बजे अपने बेडरूम में तुम किसे एक्स्पेक्ट कर रही थी उसकी  की आवाज़ में झुंझलाहट थी ,
 "सलमान खान को ... उसने  मुस्कुराते हुए जवाब दिया.
जिनके पति रात देर से आते है उन्हें बीवी की नाराजगी डर रहता है ...पर तुम्हारा मैं क्या करूँ ?
मेरा क्या है मुझे कितनी प्राइवेसी देते हो तुम ...कितनी लकी हूँ मैं , और तो और बिलकुल पजेसिव भी नहीं हो मेरे बारे में तभी तो सुबह १० से रात ढाई बजे तक एक बार कॉल नहीं किया ....रिअली लव यू ,
क्यों भिगो -२ कर मार रही हो बेचारे गरीब को ...बताया ना ऑफिस में बहुत काम है बाद ये हफ्ता फिर हम दोनों साथ रहेंगे ....कहीं घूमने  का प्लान करे उसने मीठी आवाज़ में कहा
अरे नहीं ..इस दुनिया में सबसे अच्छी जगह अपना घर ...मेरा तो कहीं जाने का मन ही नहीं करता, पता नहीं लोगों को किस बात की कमी लगती है जो फोरन टूर पर या नैनीताल ,शिमला में ढूंढते है ...अभी तो गए थे दो साल पहले वो मुस्कुराते हुए बोली
आज देवी फुल मूड में है एक एक करके वार कर रही है हर वर पिछले से तीखा ... वो मन ही मन मुस्काया
बाय द वे, ये ताने तुमने कही से याद किये है या तुम्हारी क्रियेशन है ...सुपर्ब उसने शरारत से बोला
लो मैं तो तुमारी तारीफ़ कर रही हूँ और तुम्हे ताने लग रहे है ....ऐसा जीवन साथी किस्मत वालो को मिलता है
 बस तुम तारीफ़ ही मत किया करो ...चाशनी भरी बातें मेरी जान ले लेंगी
मैं तो तुम्हारे प्यार में इतनी अंधी हूँ के तुम यहाँ हफ्ते हफ्ते भी नहीं रहते पर मुझे लगता ही नहीं के तुम यहाँ नहीं हो .... ऐसे छाये हुए हो मेरे दिल ओ दिमाग पर ..... उस मुकाम पर पहुँच गया है मेरा प्यार ....
अरे सुनो कल शाम की flight  है सिंगापूर की पांच  दिन लगेंगे ..प्लीज़ packing कर देना
तुम हमारी  एनिवर्सरी पर  भी यहाँ नहीं रहोगे .... I HATE YOU  उसकी आँखे भीग गई
मैडम packing दोनों की करनी है उसने मुस्कुराते हुए दो टिकेट उसके हाँथ में रख दिए ....फिर



Friday, May 4, 2012

अधूरी

कुछ अधपढ़ी किताबें ,कुछ अधूरे लिखे ख़त , कुछ बाकी बचे कामों की लिस्ट के साथ आँख बंद करके लेटी मैं ....सोच रही हूँ आज किसी अधूरे सपने को पूरा कर लूं ..पर ये अधूरापन मुझे कभी पूरा होने नहीं देगा ,याद नहीं आता कभी कोई काम अंजाम तक पहुँचाया हो ..किताबों के मुड़े पन्ने इस बात की गवाही देते नज़र आते है के दुबारा उन्हें खोला नहीं गया है, एक पात्र के साथ दूसरा पात्र गड्ड मड्ड,  सब खुला दरबार कभी शरत चन्द्र की कहानियों में शिवानी की नायिकाएं चली आती और बंगाल से एक क्षण में भुवाली पहुंचा देती ...तो प्रेमचंद्र के हीरा मोती ..यहाँ वहा टहलते दिखाई पड़ते ...इन दिवास्वप्नो में कभी किसी नाटक का कोई पात्र अपने मंगलसूत्र की कसम खाता लगता ...और अचानक मेरा माथा झन्ना उठता .
मैं ऊन की लच्छी सी उलझ गई हूँ सिरा ना-मालूम कहाँ है ..और ना इतना संयम के इत्मीनान से सिरा खोज लूं ,
सच तो कहता था वो , ये अधूरापन ,confusion तुम्हारी परेशानी नहीं है तुम्हारा शौक है ,तुम्हे पसंद है ऐसे ही रहना ..तुमको सीधा सहज कुछ भी भाता ही कहाँ है ...तुम चीज़ों को अधूरा इसलिए छोडती हो के उसमें उलझी रहो ..और साथ में जो हो उसे भी उलझा लो के वो तुम्हारे अलावा कुछ ना सोच पाए .छोड़कर चला गया वो उसे सब पूरा चाहिए था ,मैं मेरा प्यार मेरा समय और मेरा समर्पण ...पर मैं राज़ी नहीं हुई इतनी आसानी से अपना अधूरापन छोड़ने के लिए बस वो चला गया मुझे इस अधूरेपन के साथ , पहली बार उसके जाने के बाद महसूस हुआ शायद वही है जो मेरी इस अंतहीन यात्रा को एक सुखद अंत दे सकता है ...उसके साथ मैं पूरी होना चाहती हूँ , मोबाइल में नंबर है ..पर उंगलियाँ कई बार अधूरा नंबर मिलाकर रुक चुकी है ..... कितना बिगड़ के पूछा था उसने , क्या तुम नहीं चाहती मैं तुम्हारे साथ रहूँ ...उफ़ कितने मासूम से लगे थे तुम और दिल किया तुम्हे गले लगा लूं ...पर ठहर गई  आज अचानक  मेरे भीतर उभर आता है तुम्हारा अक्स मैं किसी जादू से बंधी ....अधूरे ख़त फाड़ती हूँ ,अधपढ़ी  किताबें शेल्फ में लगाती हूँ , इस बार नंबर पूरा मिलाती हूँ .. सुनो मुझसे मिल सकते हो अभी .... बस दस मिनट में ....