यमुना किनारे उस रात
मेरे हाँथ की लकीरों में
एक स्वप्न दबाया था ना
उस क्षण की मधुस्मृतियाँ
तन को गुदगुदाती है
उस मनभावन रुत में
धडकनों का मृदंग
बज उठता है
मयूर पंख फैलाए
नृत्य करता है
सलोना मेघ तकता है
यह मोहक उत्सव
इस स्वप्न के
आवेश में डूबकर
आँखे मुखर हो उठती हैं
अधखुले मादक अधरों से
मौन प्रीत बरसती है
जहां गूँज उठता है
बस उसी पल
प्रेम करती हूँ तुमसे
...बस तुमसे
#हिंदी_ब्लॉगिंग
स्वतंत्र अणु
मुक्त जग में
रहा विचरता
नभ से थल तक
अपरिमित शक्ति
भरी थी
ओज भरा था
अंत:स्थल तक
नियत समय में
स्रष्टि ने फिर
उसके जीवन को
अर्थ दिया
भावी माँ का
गर्भ दिया
उत्साहित था
पा शरीर को
देखूंगा अब
दुनिया सारी
था प्रतीक्षारत व्याकुल
कब गूंजूंगा
बन किलकारी
अनायास जो
हुआ आक्रमण
कुछ भी ना
समझ पाया
बदला रक्त
औ मांस पिंड में
कैसी ये
स्रष्टि की माया
प्रश्नों का बोझ
था मन में
पुन: देह से
अणु हुआ
मादा होने के कारण वह
नवजीवन ना
देख सका
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