नियति और दुर्गति का यदि संयोग देखना हो तो द्रुपद पुत्री कृष्णा (द्रौपदी) से सजीव कोई उदहारण नहीं है, उसकी स्वयं की नियति के साथ वह कुरुवंश के पतन की नियति भी बनी .....
"जीता उसने जिसको मन हारी
इश्वर की थी वो आभारी
बंटी अन्नं के दानो सी वो
टूटी बिखरी नियति से हारी
पिता गर्व का विषय थी वो
जन परिहास का विषय बनी
कुलटा,पतिता बहुपुरुष गामिनी
आक्षेपों की भेंट चढ़ी
पुन: सहेजा पुन: समेटा
बनी वंश की जीवन शक्ति
नग्न धरा पर सोई वो
तज विलास,वैभव आसक्ति
अपनों के हांथो छली सदा
अनुत्तरित हर प्रश्न रहा
द्यूत में कैसे दाव लगी
रानी से दासी क्यों बनी
जिनके हांथो आशीष मिले
चीरहरण वो देखते रहे
अपमान की अग्नि से
दग्ध ह्रदय
हर पीड़ा कृष्ण से कहे
सखी थी लीलाधर की
फिर इतने कष्ट क्यों सहे
(क्रमश:)
जितनी बार चित्रा चतुर्वेदी जी की महाभारती पढ़ती हूँ उतना अधिक मन एं सम्मान बढ़ जाता है द्रुपदसुता "याज्ञसेनी " के लिए
अगली कड़ी का इंतज़ार।
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति।
बहुत सशक्त रचना ! अब तक की आपकी सर्व्श्रेथ रचना ! अगली कदी का इन्त्जार !
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति ..बहुत कुछ कहा जा सकता है द्रौपदी के बारे में .
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार
naari ke man ko samjhane kee koshish kee hai aapne ! sunder rachna.. agli kadi kab aayegi...
ReplyDeleteबड़ी सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeletewaakai, gajab hai
ReplyDeleteनियति को ग्ति देने वाले की संगति होने के बाद भी द्रॊप्दी की ऎसी दुर्गति क्यॊ हुई,संभवतः भविष्य को झकझोरने के लिये। आप्की प्रस्तुती तो सदॆव कि भांति उच्च कोटि की है।
ReplyDeleteबहुत सशक्त रचना !
ReplyDeleteबहुत सशक्त ...धूत ...शब्द कि जगह द्यूत आना चाहिए ...ऐसा मुझे लगता है ....
ReplyDeleteआगे का इंतज़ार है
सुंदर प्रस्तुति!
ReplyDeleteराष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें !.
ReplyDelete@sangeeta ji, change kar diyaa hai thanks ..maine bahut koshish ki द्यूत likyh nahi paa rahi thi....
ReplyDeletesada sneh banaye rakhiyega
मिथक से संवेदना को पुंजीभूत करती रचना -
ReplyDeleteBahut sundar prastuti hai isake liye aapko bahut bahut dhanywaad.....agale ank ki pratiksha rahegi!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
बेहतरीन और सशक्त रचना
ReplyDeleteद्रौपदी की व्यथा को बहुत अच्छी तरह से आपने चित्रित किया
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सुन्दर पोस्ट के लिए आपको बहुत बधाई
आभार
sonalji badhai aap bahut hi achcha likhati hain
ReplyDeleteद्रौपदी की व्यथा उसकी यंत्रणा को समझना आसान नही है .... शशक्त लिखा है ...
ReplyDeleteपूरा पढवाइए । अच्छी शुरुआत है ।
ReplyDeleteसोनल जी..
ReplyDeleteद्रौपदी के हिय की ये व्यथा जो...
कविता में तुमने बतलाई...
ह्रदय हमारे भी विचलित हैं...
ऐसे घडी भी क्यों आई....
जिसने जीता, जिसने हारा...
क्या वो था कोई बेगाना....
फिर क्यों उसको सबके सम्मुख...
पड़ा था क्यों ऐसे शर्माना...
द्यूत क्रीडा में हारा जिसने...
क्या उसको अधिकार भी था...
कृष्ण सखी का चीर हरण भी...
नियति को स्वीकार भी था...
द्रुपद पुत्री क्यूँ दर-दर भटकी...
रानी से दासी बनकर के...
आक्षेपों से रही वो कुंठित...
अपने हिय को घायल करके...
प्रश्न हैं कितने सबके दिल में...
उत्तर भी जाने हैं कितने...
जितना भी सोचा है पाया...
जैसी सोच हैं उत्तर उतने...
पर सच क्या है...वो शायद हमारी समझ के परे है...
क्रमशः के आगे की कहानी...
सुनने को अधीरता से प्रतीक्षा में...
दीपक....
vaah...alag rang ki kavitaye.pauranik ghatan ko kavy mey pironaa bhi khoob hai. badhai.
ReplyDeletekisi purni baat ko apne anjaaz me pesh karna ye sirf ek gahrai wali kalam ki hi baat hai
ReplyDeletenice mam
thank's
WAAH WAAH JI .
ReplyDeleteKYA KHOOB LIKHA HAI , MAN KO CHOO GAYI KAVITA .. BADHYI HO ...POORA MAHABHAARAT AANKO KE SAAMNE UBHAR AAYA ..
VIJAY
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteek umda post.. pad kar acha laga...
ReplyDeleteA Silent Silence : tanha marne ki bhi himmat nahi
Banned Area News : Man with knife breaks into Paris Hilton's home
sonal..ye roop to naya hai tumhara..wow..too gud..keep going :)
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें :-
ReplyDeleteअकेला कलम
Satya`s Blog
महाभारत तमाम स्क्रिप्टों का बाप है, हर लेवल पर, सारे किरदार जीवंत हैं यहाँ
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