मैं क्या सोचती हूँ ..दुनिया को कैसे देखती हूँ ..जब कुछ दिल को खुश करता है या ठेस पहुंचाता है बस लिख डालती हूँ ..मेरा ब्लॉग मेरी डायरी है ..जहाँ मैं अपने दिल की बात खुलकर रख पाती हूँ
Monday, August 2, 2010
चेहरे पे चेहरा चढ़ाया है मैंने
हर सुबह आईने से
मुखातिब होता हूँ
किसी रोज़ तो
सही सूरत दिखलायेगा
चेहरे पे चेहरा
चढ़ाया है मैंने
एक रोज़ तो
ये उतर जाएगा
जो कहता है मुझसे
मैं सबसे भला हूँ
उसी का बुरा अक्सर
मैंने किया है
जो आया मरहम
की उम्मीद लेकर
बड़ा जख्म उसको
मैंने दिया है
हमेशा तो मेरी
ये फितरत नहीं थी
इस शहर ने शायद मुझे
कुछ और बना दिया है
Labels:
हिन्दी पोएम
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यह तो हमारी फितरत नहीं,इस शहर ने मुझे कुछ और बना दिया ।
ReplyDeleteसुन्दर
कमाल कि अभिव्यक्ति, बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteye aaine jo tumhe kam pasand karte hai..unhe khabar hai tumhe hum pasand karte hai..so dont worry sonal...:))) just kidding...good one!
ReplyDeletenice poem
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteहमेशा तो मेरी
ReplyDeleteये फितरत नहीं थी
इस शहर ने शायद मुझे
कुछ और बना दिया है
...behtreen abhivykti.... shubhkamnayne
हर चेहरे पर एक चेहरा चढा है
ReplyDeleteसुन्दर रचना
आईना तो सूरत ही दिखायेगा। उस सूरत में आपको क्या दिखता है, यह असली बात है।
ReplyDeleteवाह, बहुत बढ़िया ...मुखौटे चढ़े ही रहते हैं ...सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवह शहर जहाँ सीमेण्ट की नित उगती ईमारतें धरती के साथ बलात्कार करती हों, वहाँ ऐसी ही नाजायज औलाद पैदा होंगी... कंक्रीट के जंगल में बसने वाले जानवरों का सही चेहरा दिखाया है आपने...
ReplyDeleteHi..
ReplyDeleteShahar ka asar tumpe beshak hua ho..
Na badlega najuk sa dil ye tumhara..
Tum pathar main pathar bhale ho gaye ho..
Tera mom sa dil, ye dava humara..
Sundar bhav..
Deepak..
Samay ho to kabhi mere blog par bhi aayen..
www.deepakjyoti.blogspot.com
जो आया मरहम
ReplyDeleteकी उम्मीद लेकर
बड़ा जख्म उसको
मैंने दिया है
आज की दुनिया का एक सच यह भी है..
बढ़िया प्रस्तुति..धन्यवाद
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
ReplyDeleteasardar abhivykti...........
ReplyDeleteaabhar.........
ReplyDeleteसोनल जी, जमाने के सच को बयाँ कर दिया है आपने। बधाई।
…………..
स्टोनहेंज के रहस्यमय… ।
चेल्सी की शादी में गिरिजेश भाई के न पहुँच पाने का दु:ख..
आइना सच का देख कहाँ पाते हैं हम.. बहुत ही बढ़िया..
ReplyDeleteजो कहता है मुझसे मैं सबसे भला हूँ
ReplyDeleteउसी का बुरा अक्सर मैंने किया है
जो आया मरहम की उम्मीद लेकर
बड़ा जख्म उसको मैंने दिया है ..
..
सच कहती हो कई लोंग करते हैं ऐसा ...
मगर क्यों करते हैं लोंग ऐसा ...?
इस शहर ने शायद मुझे
ReplyDeleteकुछ और बना दिया है ...सोनल जी .. बहुत गहरी बात बहुत ही सजहता से के रही हैं आप साथ में रूमानियत से भी ...
इस शहर ने शायद मुझे
ReplyDeleteकुछ और बना दिया है ......
Bhai vah ..kya baat hai.
जो आया मरहम
ReplyDeleteकी उम्मीद लेकर
बड़ा जख्म उसको
मैंने दिया है
हमेशा तो मेरी
ये फितरत नहीं थी
इस शहर ने शायद मुझे
कुछ और बना दिया है
अच्छी प्रस्तुति।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई।
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