कुछ वियोगी मन हुआ
तन भी ना अब साथ दे
कोई ऐसा पल नहीं
जो मन को मेरे साध दे
साध मन की थी कभी
खुशिया सराहे फिर मुझे
बुझ गए आंसू में सब
दीप जितने थे जले
मुश्किल हूँ मैं
या वक़्त मुश्किल है मेरा
मिलता भी नहीं कभी
जब साथ मांगती हूँ तेरा
मैं इतनी बुरी ना थी
पर भली कब तक रहूँ
मन है पीड़ा से भरा
दर्द अब किससे कहूं
क्या कभी होगा प्रलय
टूट कर बह जाउंगी
मैं अपने जीवन का
अवशेष मात्र रह जाउंगी
नेह की बूंदे कभी कुछ
मुख पे मेरे डाल दे
बहुत बिखरी हूँ प्रिये
तू ही मुझे संवार दे
साथ के साथ साध का मिलान बढ़िया है.. ओवर ऑल फ्लो बढ़िया है
ReplyDeleteकुछ वियोगी मन हुआ
ReplyDeleteतन भी ना अब साथ दे
कोई ऐसा पल नहीं
जो मन को मेरे साध दे
..................
क्या कभी होगा प्रलय
टूट कर बह जाउंगी
मैं अपने जीवन का
अवशेष मात्र रह जाउंगी
..................
नेह की बूंदे कभी कुछ
मुख पे मेरे डाल दे
बहुत बिखरी हूँ प्रिये
तू ही मुझे संवार दे
....ye ishq nahi aasaan..bas itna samjh lijiye...g8 job sonal..! :)
नेह की बूंदे कभी कुछ
ReplyDeleteमुख पे मेरे डाल दे
Bahut khubsurati se vyakt kiya hai.
सोनल जी, नमस्कार....
ReplyDeleteहमेशा की तरह आपने पुनः गुनगुनाने लायक छंदात्मक कविता लिखी है....और मुझे दिल से छंद वाली कवितायेँ अच्छी लगती हैं....
पर कविता का नीचे लिखा छंद अगर कुछ सुधार दें तो कविता और सुन्दर हो जाएगी....
"मुश्किल हूँ मैं
या वक़्त मुश्किल है मेरा
मिलता भी नहीं कभी
जब साथ मांगती हूँ तेरा "
इसकी जगह अगर ये होता तो छंद और सुन्दर बन जाते...
मुश्किलों में. मैं रही, या,
वक्त मुश्किल, है मेरा...
मिल नहीं, पाता है मुझको...
साथ मांगूं, जो तेरा...
ये मात्र सुझाव है कृपया इसे अन्यथा न लीजियेगा...
कविता बहुत सुन्दर लिखी है इसका कोई जवाब नहीं है...
दीपक....
Last lines are devotionally beautiful.
ReplyDeleteकुछ वियोगी मन हुआ
ReplyDeleteतन भी ना अब साथ दे
कोई ऐसा पल नहीं
जो मन को मेरे साध दे
गुनगुनाने को मजबूर करती प्रस्तुति
नेह की बूंदे कभी कुछ
ReplyDeleteमुख पे मेरे डाल दे
बहुत बिखरी हूँ प्रिये
तू ही मुझे संवार दे..
भावपूर्ण प्रस्तुति ....
प्रेम की यह अनुपम अभिव्यक्ति कृत्रिम नहीं हो सकती। अनुभव से चल कर आयी है यह कविता।
ReplyDeleteउम्दा कविता के लिए आभार
ReplyDeleteहिन्दी सेवा करते रहें
ब्लॉग4वार्ता की 150वीं पोस्ट पर आपका स्वागत है
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बहुत खूब
ReplyDeleteसोनल जी, गहरे भाव लिए अनूठी रचना..लेकिन इस बार न जाने क्यों कुछ जल्दबाज़ी में लिखी सी प्रतीत हुई!!
ReplyDeleteमैं इतनी बुरी ना थी
ReplyDeleteपर भली कब तक रहूँ
मन है पीड़ा से भरा
दर्द अब किससे कहूं
....gahare ehsaas...gahara dard...khubasurat rachna.
bahut khoob sir..........
ReplyDeletebahut badhiya likhti hai aap ..behtreen dil ko chu lene waali rachnaaye padhne ko mili aapke blog par ek baar fir se badhaai ..
ReplyDeleteजब से हर शहर को दिल्ली मुंबई की नजर से देखा जाने लगा है, हमारे सारे शहर स्माल टॉउन हो गए हैं। स्माल टॉउन शहरीकरण के भागवत संसार में अभिशाप सा लगता है। हम शहर बदलते रहते हैं लेकिन हमारे भीतर स्माल टॉउन है कि बदलता नहीं। ऐसा क्यों हो रहा है कि कोई मोतिहारी नहीं भूल पाता, कोई बरेली नहीं छोड़ पाता, कोई गोरखपुर की याद में सुलगता रहता है। कितना अच्छा होता कि किसी अपार्टमेंट का नाम होता पडरौना एवेन्यू, गाजीपुर एन्क्लेव, अरेराज कॉलोनी। महानगरों में कई नगर भी बस जाते हैं।
ReplyDeleteसोनल रस्तोगी का ब्लॉग है कुछ कहानियां, कुछ नज्में। क्लिक कीजिए http://sonalrastogi. blogspot.com नई और पुरानी जिंदगी के बीच पब्लिक स्पेस में एक लड़की संवाद कर रही है। सोनल ने अपने परिचय में लिखा है कि वो कवि दिल वाली छोटे शहर की एक लड़की है। पढ़ना, लिखना और ख्वाब देखना अच्छा लगता है।
टेक्नोलॉजी सेक्टर में काम करती है। गुड़गांव में रहती है, लेकिन पसंदीदा किताबों की सूची में है- साकेत, शतरंज के मोहरे और श्रीकांत। ऐसी लड़की अगर हरसिंगार और अपनी दादी को याद करे तो सोचिये कितने रिश्तों की गहराई में डूबते हुए यहां तक पहुंची होगी।
सोनल लिखती हैं कि दादी क्वार के मौसम में सवा लाख हरसिंगार के फूल अपने ठाकुर जी को चढ़ाती और हम बच्चों की सेना उनको फूल लाकर देती। रात को पेड़ के नीचे चादर बिछा देते और सुबह-सुबह वो चादर सैंकड़ों फूलों से भरी होती, मानो हरसिंगार नतमस्तक होकर खुद लड्डू गोपालजी को अपने फूल अर्पित कर रहा हो। सच है कुछ खुशबू, रंग और दृश्य हमारे अस्तित्व का हिस्सा बन जाते हैं। आज मैं अपने शहर से सैकड़ों किलोमीटर दूर हूं, बचपन को गए भी अरसा हो गया पर जब भी हरसिंगार के पेड़ के सामने से गुजरती हूं, फूलों को हाथ में लेकर दादी को याद जरूर करती हूं।
नब्बे के दशक के बाद से काफी कुछ बदला है। पुरानी स्मृतियां छोटे कस्बे और शहरों के लोगों में ही बची हैं। सोलन की कहानियों में काफी कुछ मिलता है। लिखती है कि चाय पीकर आंखें बंद कर लेट गई तो अचानक मां का चेहरा आंखों के सामने आ गया। मन करता है उड़कर पहुंच जाऊं, बांबे से कानपुर। कानपुर जाने की सोचकर ही मन फ्रेश हो गया। जहां बाम्बे में ट्रैफिक को लेकर परेशान रहती हूं, वहीं कानपुर की सड़कों पर लगा रिक्शा, साइकिल, हाथगाड़ी का जाम भी अपना सा लग रहा है।
Badhai, Badhai...Saath hi ye aapki 97th post hai....Jald hi shatak banaye.
ReplyDeleteसोनल की कविताएं भी ख्वाबों में डूबी एक लड़की की दास्तान हैं। कुछ तन्हाई, एक रजाई, बदन तोड़ती, एक अंगड़ाई, ठन्डे हाथ, तपती सांसें, अंगीठी से गायब गरमाई। एक और कविता है- इश्क पर लिखूंगी, हुस्न पर लिखूंगी, दिलों के होने वाले, हर जश्न पर लिखूंगी। खिड़की पर लिखूंगी, मैं झलक पर लिखूंगी, रात भर सो न पाई, उस पलक पर लिखूंगी। आज भी खत लिखते हैं तो जवाब आता है, बंद लिफाफे में गुलाब आता है, देख कर उनको भारी हो जाती हैं पलकें, रुखसार पर रंग लाल छाता है। अपने भीतर के अहसासों को काफी सलीके से पकड़ती हैं सोनल। अच्छा लिखती हैं.
ReplyDeleteSoanl ji..
Hindi dainik ' Hindustan (Delhi Edition-11/08/2010 ke editorial page par aapke blog ki charha hona ek bahut hi badi achievement hai.
AApki is achievement par aapko Badhaai(congratulations)
AApke blog par charcha ke liye link:-
http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/57-62-132203.html
or 11/08/2010 ka Dainik Hindustan (Hindi-Delhi Edition)Editorial page par
Ravi Kumar ka Aalekh-
ब्लॉग वार्ता : शहर बदलतीं लड़कियां
रवीश कुमार
ravish@ndtv.com
लेखक का ब्लॉग है naisadak.blogspot.com
AApki ye post bahut hi uttam hai.
ReplyDeleteiske liye bhi aapko BADHAAI.
AAPKE SUNHARE BHAVISHAY KE LIYE AAPKO
ReplyDeleteI WISH YOU ALL THE BEST.
बेहद उम्दा भाव संयोजन।
ReplyDeleteआज के पेपर मे आपके बारे मे आर्टिकल छपा था बहुत अच्छा लगा आपको हार्दिक बधाइयां इस उपलब्धि के लिये।
सोनल जी ,
ReplyDeleteआप अपने ब्लॉग से हमारिवानी का लोगो हटा लें ..ब्लॉग नहीं खुलता है....मैं अपने कम्प्यूटर पर रिस्क ले कर यह लिख रही हूँ ..आभार
संगीता स्वरुप
sonal ji aapko mile is samman ke liya bahut bahut badhai.
ReplyDeleteनेह की बूंदे कभी कुछ
मुख पे मेरे डाल दे
बहुत बिखरी हूँ प्रिये
-तू ही मुझे संवार दे------ati sundar----poonam.
अच्छे छंदों में सजी गीत्मय रचना ...
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