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Wednesday, June 9, 2010

कल रुत तुमको तरसाए

नभ में उमड़े घन बड़े


बिजली भी बिन बात लड़े

तुम भी रूठे-रूठे से

बोलो कैसे बात बढे

बूंदे छेड़े जब मुझको

हवा दिखाए रंग नए

तुम्हे लगा मैं भूल गई

तुम भी तो थे संग खड़े

मेघ सदा बरसाए मद

जब तुम मेरे साथी हो

कैसे ना मदहोश हो हम

नयन तुम्हारे साकी हो

ऐसा ना हो तन भीगे

मन सूखा  सा रह जाए

आज मुझे तड़पाते हो

कल रुत तुमको तरसाए

20 comments:

  1. बहुत सुंदर !
    कविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !

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  2. kya baat hai kya bat hai ... kaun jane kya hone wala hai .. :) rumaniyat ki badli is kavita me bhi chaayi hai ..

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  3. इसे तो गुनगुनाने में बड़ा मज़ा आ रहा है..

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  4. @कुश
    सोचा तो था अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड करके पोस्ट करूँ... पर ..

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  5. waah waah bahut achche pyaar ka gumaan...bahut sundar

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  6. बहुत खूबसूरत रचना.....बारिश का एहसास सा कराती ..

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  7. मेघ सदा बरसाए मद
    जब तुम मेरे साथी हो
    कैसे ना मदहोश हो हम
    नयन तुम्हारे साकी हो ...

    बारिश का मौसम और पी क संग .... फिर तो हर शै मद हो जाती है ... बहुत अनुपम ..

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  8. सुन्दर भाव. रुमानियत से लबरेज.सूखा शब्द ठीक कर लेँ

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  9. kya baat hai didi bahut acchi likhi hai

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  10. @Satya ..thanks change kar diyaa

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  11. बहुत अच्छा लगा आपका यह उलाहनापूर्ण गीत!
    --
    आपसे परिचय करवाने के लिए संगीता स्वरूप जी का आभार!
    --
    आँखों में उदासी क्यों है?
    हम भी उड़ते
    हँसी का टुकड़ा पाने को!

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  12. मैं तो अपने छत्तीसगढ़ में बारिश का इन्तजार कर रहा हूं।
    पानी के गिरते ही मैं मोटर सायकिल लेकर भींगने के लिए निकलने वाला हूं। आपकी पोस्ट को पढ़ने के बाद मैंने तैयारी कर ली है और रेनकोट भी रख लिया है.... ज्यादा भीगना भी ठीक नहीं होता है ऐसा मुझे बताया गया है।

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  13. आज मुझे तड़पाते हो ..कल रुत तुमको तरसाए.......बहुत सुन्दर

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  14. अब इसे दोबारा पोस्ट कर दें। पानी भी बरस रहा है। अपनी आवाज में गाकर पोस्ट करिये।

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