नभ में उमड़े घन बड़े
बिजली भी बिन बात लड़े
तुम भी रूठे-रूठे से
बोलो कैसे बात बढे
बूंदे छेड़े जब मुझको
हवा दिखाए रंग नए
तुम्हे लगा मैं भूल गई
तुम भी तो थे संग खड़े
मेघ सदा बरसाए मद
जब तुम मेरे साथी हो
कैसे ना मदहोश हो हम
नयन तुम्हारे साकी हो
ऐसा ना हो तन भीगे
मन सूखा सा रह जाए
आज मुझे तड़पाते हो
कल रुत तुमको तरसाए
sahi kaha...kal rut tumko tarsaye
ReplyDeletenice
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteकविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !
kya baat hai kya bat hai ... kaun jane kya hone wala hai .. :) rumaniyat ki badli is kavita me bhi chaayi hai ..
ReplyDeleteइसे तो गुनगुनाने में बड़ा मज़ा आ रहा है..
ReplyDelete@कुश
ReplyDeleteसोचा तो था अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड करके पोस्ट करूँ... पर ..
अच्छी कविता..
ReplyDeletesonal..har lafz rumani hai :)
ReplyDeletewaah waah bahut achche pyaar ka gumaan...bahut sundar
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना.....बारिश का एहसास सा कराती ..
ReplyDeleteमेघ सदा बरसाए मद
ReplyDeleteजब तुम मेरे साथी हो
कैसे ना मदहोश हो हम
नयन तुम्हारे साकी हो ...
बारिश का मौसम और पी क संग .... फिर तो हर शै मद हो जाती है ... बहुत अनुपम ..
सुन्दर भाव. रुमानियत से लबरेज.सूखा शब्द ठीक कर लेँ
ReplyDeletekya baat hai didi bahut acchi likhi hai
ReplyDelete@Satya ..thanks change kar diyaa
ReplyDeleteबहुत बढि़या!
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपका यह उलाहनापूर्ण गीत!
ReplyDelete--
आपसे परिचय करवाने के लिए संगीता स्वरूप जी का आभार!
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आँखों में उदासी क्यों है?
हम भी उड़ते
हँसी का टुकड़ा पाने को!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमैं तो अपने छत्तीसगढ़ में बारिश का इन्तजार कर रहा हूं।
ReplyDeleteपानी के गिरते ही मैं मोटर सायकिल लेकर भींगने के लिए निकलने वाला हूं। आपकी पोस्ट को पढ़ने के बाद मैंने तैयारी कर ली है और रेनकोट भी रख लिया है.... ज्यादा भीगना भी ठीक नहीं होता है ऐसा मुझे बताया गया है।
आज मुझे तड़पाते हो ..कल रुत तुमको तरसाए.......बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअब इसे दोबारा पोस्ट कर दें। पानी भी बरस रहा है। अपनी आवाज में गाकर पोस्ट करिये।
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