अपने दर्द को
आँखों में उभरने नहीं देते
उभर भी आये तो
गालों पे बिखरने नहीं देते
इस जद्दोजहद में
भारी हो जाता है दिल
सँभालते है खुदको
धडकनों को सुबकने नहीं देते
मुस्कान गहरी होती जाती है
बढती तकलीफ के साथ
ठहाको में दबा देते है
साँसों को सिसकने नहीं देते
बहुत कोशिशे होती है
हमदर्दों की ,हमराहों की
दिल की उस गहराई में
हम किसी को उतरने नहीं देते
bahut gahari se man ke bhavon ko aapne prastut kiya hai ......bahut hi uttam rachna .
ReplyDeleteसँभालते है खुदको
ReplyDeleteधडकनों को सुबकने नहीं देते
बहुत ही बढ़िया सम्प्रेषण....
आनंद आया
http://manojkhatrijaipur.blogspot.com/
खूबसूरत भाव
ReplyDeletemanaa log zakhmon per namak rakhte hain
ReplyDeleteper koi n koi hamdard hota hai kahin ....
हमारे साथ जुड़ने का आभार... आपकी अभिव्यक्ति बड़ी कोमल है, और हर किसी की समवेदनाओं से जुड़ी है...जनाब मुनव्वर राना का एक शेर ख़ास आपकी नज़रः
ReplyDeleteशगुफ़्ता लोग भी टूटे हुए होते हैं अंदर से,
बहुत रोते हैं वो जिनको लतीफ़े याद होते हैं.
यह तो ऐसा लगा कि मेरे दिल की गहराईयों से कविता बनकर निकली है,
ReplyDeleteदिल जोर से धड़क गया, अपने दिल की बातें पढ़कर, बेहतरीन रचना।
वाह क्या बात है!
ReplyDeleteदर्द रिसते-रिसते पलकों के कोरों पर ठहर जायेगा
ढरक जायेगा चुपके से
हाय !
मेरे दर्द
दृश्यमान हो जायेगा.
achhi hai ..bt ye aap ke level se zaraa si kam rah gayi ...mujhe aisa lag raha hai ..
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeleteapki ye rachna dil me utargai
मन के तारों को झंकृत कर गयी कविता।
ReplyDelete---------
इंसानों से बेहतर चिम्पांजी?
क्या आप इन्हें पहचानते हैं?
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत खुद्दार रचना है आपकी...बेहद खूबसूरत...बधाई..
ReplyDeleteनीरज
बहुत खूबसूरत रचना..
ReplyDeleteवाह्……………गज़ब के भाव समाये हैं।
ReplyDeleteरचना अच्छी है, मगर मैं विवेक रस्तोगी जी की बज़ से आया था - रचना तो सोनल जी की निकली?
ReplyDeleteअच्छा है। अब इसके बाद वाली कविता और अच्छी लगने लगी।
ReplyDeletebahut khoob, very well written.
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