जबसे उसने हथेली में
उगा चाँद देखा है
मैंने उसकी आँखों में
उभरता अरमान देखा है
निकली है पहली बार वो
तनहा सफ़र पर
नाजुक परो ने उसके
विस्तृत आसमान देखा है
पहली उड़ान है सपनो की
साथ दुआए है अपनों की
माँ की आँखों में आज
सुकून और इत्मीनान देखा है
"छोटी-सी मगर सारगर्भित रचना...."
ReplyDeleteभावो को पूर्णता प्रदान करती आपकी ये पंक्तियाँ.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..
कुंवर जी,
वाह....बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रेरणादायक रचना....
ReplyDeleteरचना के भाव और सौंदर्य ,दोनों ने ही मन मोह लिया....
sukhad
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना।
ReplyDeletemera bhi aashirwaad maa ke saath her nai udaan ko ........
ReplyDeletewaah prerna dayak rachna hai...
ReplyDeleteआपकी यह रचना मजेदार है.
ReplyDeleteअब अगली का इंतज़ार है...
बहुत सुन्दर सार्गर्भित रचना बधाई
ReplyDeleteएक नयी आशा को ले कर बुनी हुई सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सही!
ReplyDeleteमाँए आँखों में इत्मिनान बड़ी मुश्किल से ही ला पाती है..
ReplyDeleteवैसे तस्वीर ने कविता को और रोचक बना दिया है..
पहली उड़ान है सपनो की
ReplyDeleteसाथ दुआए है अपनों की
माँ की आँखों में आज
सुकून और इत्मीनान देखा है
बहुत अच्छी रचना ... आशावादी ... मा की आँखों का सकूँ और हिम्मत देता है ... लाजवाब ...
प्रेरक - ऐसी उड़ने बहुत जरुरी हैं
ReplyDeleteek dum positivity liye rachna ..doordarshan ka ek serial yaad aa gaya.."udaan".. :)
ReplyDeleteसाथियो, आभार !!
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स्नेहिल
आपका
शहरोज़
तस्वीर और कविता का गठबंधन मनमोहक है।
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