कुछ तन्हाई
एक रजाई
बदन तोडती
एक अंगडाई
ठन्डे हाँथ
तपती साँसे
अंगीठी से
गायब गरमाई
मौन मुखर
मुखरित आँखे
मौन अधर
मुखरित जम्हाई
सहज नेह
असहज हो तुम
असहजता को
दे आज बिदाई
रात ढली
तुम आये
जल्दी ढलता
दिन हरजाई
दो शब्दों में बेहतरीन प्रवाह...
ReplyDeleteब्लॉगिंग में ५ वर्ष पूरे अब आगे… कुछ यादें…कुछ बातें... विवेक रस्तोगी
बहुत सुन्दर ,बधाई।
ReplyDeleteumda racna...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteवाह! क्या बात है!
ReplyDeleteइस कविता पर,
ReplyDeleteबहुत बधाई ।
कम शब्दों में उच्च कोटि की रचना ,,,,बेहतरीन
ReplyDeleteविकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
शानदार.. जानदार और...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबढ़िया है!
ReplyDeleteक्या आपने हिंदी ब्लॉग संकलन के नए अवतार हमारीवाणी पर अपना ब्लॉग पंजीकृत किया?
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दिलचस्प.........!
ReplyDeleteबस ये सोचता रहा गया ...के उर्दू से शुरू होकर .आखिर में हिंदी में क्यों मुड़ी ....कोई खास वजह ?
कुछ तन्हाई
ReplyDeleteएक रजाई
बदन तोडती
एक अंगडाई
....do shabdo ke yugm se bani acchhi rachna.....vaah.
@अनुराग जी ,
ReplyDeleteगंगा जमनी तहजीब का असर कह लीजिये ...कब विचारों ने भाषा का संगम कर दिया मुझे खुद नहीं पता चला
kya baat kya baat kya baat .. :) ek dum dhinchak poem... badi meethi poekm hai ... chhoti chhoti pankitayaan hain deewali ki chutputiya jaisa maza de rahi hain .. bahut bahut shandaar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeletehi sonal..bahut dino baad blog par aana hua...
ReplyDeleteaakar dekha shbdon ke moti chamak rahe hai :)
बस कमाल!! ज़्यादा लिखा तो कविता से मेल नहीं खाएगी मेरी तारीफ़...
ReplyDeleteअच्छा है..
ReplyDeleteइस कविता की अलग मुद्रा है, अलग तरह का संगीत, जिसमें कविता की लय तानपुरा की तरह लगातार बजती रहती है । अद्भुत मुग्ध करने वाली, विस्मयकारी।
ReplyDeleteबीस दूनी चालीस शब्दों मे बंधे भाव! सुन्दर रचना।
ReplyDeleteसोनलजी
ReplyDeleteशब्द- युग्मों के मोतियों के दानों से पिरोयी गई अच्छी प्रवहमान रचना के लिए बधाई !
… इधर भीषण गर्मी है …
कविता पढ़ कर भीतर - बाहर तपिश बढ़ती हुई प्रतीत होने लगी ।
रजाई , अंगीठी , तपती साँसे ,
और … अंगीठी से गायब गरमाई !
भीतर तक मारक क्षमता रखने वाले बिंब !
बधाई दे चुका ना ?
एक बार और स्वीकार करें … बधाई !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
awesome flow. Bahut ache!
ReplyDeletekavita ki ye tapish iss tapish ko bhi tapan de gai
ReplyDeletebahut acha lga apki kavita padh k
bahut sundar rachana
ReplyDeleteसहज शव्दों में गहरी अभिव्यक्ति, धन्यवाद.
ReplyDeleteरफ्ता...रफ्ता.....एकदम मस्त कविता। बहुत सुंदर।
ReplyDeletevery intelligent and diligently presented the expression of romance, just brilliant...
ReplyDeleteगर्मी में जाड़े की यादें। क्या बात है!
ReplyDeleteमुखरित जम्हुआई मजेदार लगा। खूब! छोटे-छोटे शब्दों का प्रयोग आपको बहुत प्यारा आता है।