चिंदी चिंदी
टुकड़ा टुकड़ा
रात को जोड़ा
चाँद को पकड़ा
रूठा रूठा
हाथ से छूटा
वो भूरा
बादल का टुकड़ा
कुछ बड़े
तारे चिपकाए
कुछ छोटे
यूँही छितराए
रात की रानी
मांग के लाये
काजल भरकर
नैन जलाये
लोरी गाकर
जग सुलाया
बनी प्रेयसी
तुझे बुलाया
अब काहे
मीलों की दूरी
आओ तुमबिन
रात अधूरी
टुकड़ा टुकड़ा
ReplyDeleteरात को जोड़ा
चाँद को पकड़ा
रूठा रूठा
हाँथ से छूटा
वो भूरा
बादल का टुकड़ा
कुछ अलग ,,,परन्तु सुन्दर रचना ,,,,मनभावन सी ,,,गाने लायक ,,,,!!!....
बहुत बढ़िया मन को विभोर करने वाली रचना बधाई हो आपको
ReplyDeleteबेहतरीन रचना...... बहुत खूब!
ReplyDeletefull of romance......
ReplyDeleteओह!
ReplyDeleteशब्द योजना ऐसी है जैसे रिमझिम फुहार पड़ रही हो, टप-टप बूंदें झर रही हो।
बनी प्रेयसी
तुझे बुलाया
अब काहे
मीलों की दूरी
आओ तुमबिन
रात अधूरी
आपकी शैली सादगी से भरी, बात कहने में अनूठे, दूसरों से भिन्न फॉर्मेट अपनाती हैं। कविता का सलीका, तरीक़ा, रखरखाव, आपका अपना है। नई विधि-प्रविधि, जिसमें कविता की आत्मा झांकती है। आप एक कविताकार के रूप में मौलिक सर्जक है।
ReplyDeletebahut sundar rachana.
ReplyDeleteचिंदी चिंदी
ReplyDeleteटुकड़ा टुकड़ा
रात को जोड़ा
चाँद को पकड़ा
रूठा रूठा
हाँथ से छूटा
वो भूरा
बादल का टुकड़ा
....leek se hatkar bahut sundar rachna.
एक मिनट सोनल जी एक मिनट… पढते वक़्त साँस कहाँ लेना है ये तो बता दीजिए... आपके शब्द तो ए.के. 56 की तरह बरस रहे हैं और दिमाग़ में दृश्य खिंचता जा रहा हैं... और ऐसा आवाहन एवम् निमंत्रण कौन अस्वीकार कर पाएगा. एक बेहतरीन शब्द चित्र.. धन्यवाद!!
ReplyDelete(हाँथ को हाथ कर लें)
मनमोहक अन्दाज में बहुत सुन्दर कविता
ReplyDeleteबड़ी सुन्दर, बहती हुयी
ReplyDeleteshiv jata se nikli dhara si rachna
ReplyDelete@संवेदना के स्वर -लय से गाया तो लगा वाकई लगा ब्रेअथ्लेस बन गया है ,त्रुटी सुधार ली है धन्यवाद
ReplyDeleteअति उत्तम रचना ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना! बधाई।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना...... बहुत खूब!
ReplyDeleteन्युन शब्दों में अथाह भाव,धाराप्रवाह काव्यधारा, बधाई
ReplyDeleteमेरे लिये तो कम शब्दों में काव्य प्रतिभा की प्रसस्ति करना दुष्कर है।
बहुत सुन्दर रचना....
ReplyDeleteऔर हमने अभि तक ए के - ४७ ही सुना था यह ५६ भी है क्या ?
virah vedna ...ghame furqat.....shab e tanhai ...sab ko sath bitha ke..ye nazm sunai jaaye...unhe lagega .."yar hum bhi khubsurat hain" .....shandar nazm ...
ReplyDeletebahut khub rachna,...
ReplyDeleteachhi lagi....
@atish ji .. ab humein is comment par waah waah kehnaa padhegaa
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ReplyDeleteसोनल जी,,, नमस्कार...
ReplyDeleteतन मन जिस पर वार दिया है...
अपना सब कुछ हार दिया है...
आँखों मैं कजरे की धार...
किया जो तुमने ये श्रृंगार...
चिंदी चिंदी रात को जोड़ा...
चंदा अपने आँगन मोड़ा...
तारे तुमने जो छिटकाए..
मन को तेरे है महकाए...
वो तो तेरे संग रहा है..
तेरे दिल में बसा दिखा है...
चाहे आज वो दूर हो तुझसे...
तेरे संग रहा है दिल से...
सुन्दर भाव...और गुनगुनाने लायक कविता...
बहुत सुन्दर...
दीपक...
sonal bahut hi romantic si nazm hai...shuru se aakhir tak...sundar pravah..g8 job ! :)
ReplyDeleteमनमोहक अन्दाज में बहुत सुन्दर कविता
ReplyDeleteसोनल जी ..क्या खूबसूरत शब्दों की फुहार है। आज ही दिल्ली में बारिश हुई ...मैं सोया हुआ था देर दुपरहिया तक। पर शब्दों की फुहार में भींग कर उसका मलाल कम हो गया.....
ReplyDeleteअब काहे
मीलों की दूरी
आओ तुमबिन
रात अधूरी
बालकोनी में बैठ कर चांद को निहारना....क्या तस्वीर भी लगाई है आपने....
वैसे जिसके लिए पुकार है क्या वो आ गए.........अगर न आए तो बडे पत्थर दिल हैं...
लिल्लाह!
ReplyDeleteखूबसूरत!
कौन मना कर पाएगा????
सम्हाल के, आप काफी ऊँचाई पे बैठी हैं! कहीं गिर ना जाएँ!
सायरा बानु ने रोक लिया.... वर्ना मैं तो.....!