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Thursday, February 7, 2013

सारा टाइम काँय-काँय



फलाना बैंड नहीं चलेगा
ढिमाकी फिल्म नहीं चलेगी
कला प्रदर्शनी नहीं चलेगी
ये लेखक नहीं चलेगा
वो निर्देशक नहीं चलेगा
तू बोला तो क्यों बोला
मुंह खोला तो क्यों खोला
ऐसे कपडे नहीं चलेंगे
पुतले पुतली रोज जलेंगे
ख़बरों के छोटे टुकड़े कर
ब्रेकिंग न्यूज़ में रोज़ तलेंगे 
इसके विचार  हाय हाय
उसका घर बार हाय हाय
फुर्सत कितनी इनको देखो
सारा टाइम काँय-काँय-काँय-काँय

13 comments:

  1. क्या बात है वाह! ये कविता तो खूब चलेगी। :)

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  2. अब कुछ ओर काम नहीं है इन ठेकेदारों को तो क्या करें ये सब ...

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  3. ये खुला सोनल का पिटारा.........
    :-)
    too good !!
    अनु

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  4. :) कान पक गए न ..
    गज़ब लिखा है सोनल.

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  5. देखिये, कहीं कविता बन्द न कर दें ये लोग..

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  6. बिल्कुल सच्ची... खाली-पीली टाईम खोटी करते हैं... निकम्मे कहीं के... जाता है या हम भगाएं क्या

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  7. शाबाश ! एकदम खरी खरी मगर पूरी तरह सच

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  8. बात मेरे मन की कही
    और कही मुझ से बेहतर ...
    शुक्रिया!

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  9. बहुत सुंदर कविता ....

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