सुन सुन के आशिकी के तराने
पक गया है
चाँद को बख्श दो
वो थक गया है
शक्ल जब अपने यार की
चाँद से मिलाते है
आसमान में चाँद मिया
देख देख झल्लाते है
अपनी सूरत पहचानने में
दम उनका चुक गया है
चाँद को बख्श दो
वो थक गया है
बे- बात की बात
सारी रात किया करते है
हाल-ए-दिल सुना कर
जबरदस्ती
चाँद का सुकून
पीया करते है
तन्हाई,बेवफाई ,आशनाई
के किस्सों से
उसका माथा दुःख गया है
चाँद को बख्श दो
वो थक गया है
कभी दोस्त कभी डाकिया
कभी हमराज़ बनाते है
उसकी कभी सुनते नहीं
बस अपनी ही सुनाते है
इस एकतरफा रिश्ते से
दम उसका घुट गया है
चाँद को बख्श दो ..........
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ReplyDeleteसुन्दर पेशकश ....पर चाँद को बक्श देंगे तो फिर किसे छेड़े ...रात उसी चाँद के सहारे गुज़रती है .....अच्छी प्रस्तुति ....पर आज से हमने चाँद को छेड़ना कम कर दिया
ReplyDeletehttp://athaah.blogspot.com/
जबरदस्ती
ReplyDeleteचाँद का सुकून
पीया करते है
तन्हाई,बेवफाई ,आशनाई
के किस्सों से
उसका माथा दुःख गया है
KYA BAAT KYA BAAT KYA BAAT........
दम उसका घुट गया है
ReplyDeleteचाँद को बख्श दो ..........
.........बहुत खूब, लाजबाब !
hehe..are sonal ji ..kaheen ye baat meri ghazalen nazmen padh kar to nahi kah rahi hain na...hehhe:P :P ..mujhe to bahut pasand aayi aap ki ye rachna.... comedy circus me ek dafa dekha tha...ewk shayr aur aur chaand ka jhagda...heheh... aur ab aap usse do kadam aage badh gayi hain ...hehehe...bahut achhi nazm ... par main chaand kio nahi bakhshunga.. :P :D { is P aur D ke beech me ek "h" lagane ki bhi suvudha honi chahiye )
ReplyDeleteसुन सुन के आशिकी के तराने
ReplyDeleteपक गया है
चाँद को बख्श दो
वो थक गया है
bahut khoob !
kaise, vah to sab kuchh dekh leta hai. narayan narayan
ReplyDeleteबहुत पहले इसी मौंजू पर एक त्रिवेणी लिखी थी....आपको पढ़कर उसी की याद आई...
ReplyDeleteकभी दोस्त कभी डाकिया
ReplyDeleteकभी हमराज़ बनाते है
उसकी कभी सुनते नहीं
बस अपनी ही सुनाते है
इस एकतरफा रिश्ते से
दम उसका घुट गया है
चाँद को बख्श दो ..........
bahur sach likha hai. Badhai!!
"बहुत शानदार लिखा है चाँद पर अलग नज़रिये से बधाई"
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना!
ReplyDelete:)bahut badhiya ....ek alag andaaj chaand ka
ReplyDeleteadbhud post hai :)
ReplyDeletethanks a lot :)
प्रभावशाली रचना!
ReplyDeleteउसकी कभी सुनते नहीं
ReplyDeleteबस अपनी ही सुनाते है
इस एकतरफा रिश्ते से
दम उसका घुट गया है
चाँद को बख्श दो
वो थक गया है
प्रशंसनीय ।
ReplyDeleteधीरे-धीरे चल चाँद गगन में.....
ReplyDeleteहम नहीं बख्शेंगे!!!
बहुत खूब ... चाँद को छोड़ना वो भी आशिकों के लिए आसान कहाँ है ... अच्छा लिखा है बहुत ...
ReplyDeleteapne aap me anoothi kavita rach daali Sonal ji.. ekdam anupam kriti.. maza aaya padh kar. kavita ki kavita aur vyangya ka vyangya
ReplyDeleteबहुत शानदार....
ReplyDeleteचाँद----( सोच रहा है )
मैं भी
कभी तन्हाई में
सोचता हूँ
कि
मैं लोगों का
बचपन में मामा
और जवानी में
उनका
महबूब होता हूँ ..
आपकी रचना बहुत अच्छी लगी :)
thanks very much.isi bahane aapke blog tak aana hogaya. aapbhi khoobsorat kavitayen likhti hain
ReplyDeleteमेरे लिए... अभिनव सोंच से उपजी कविता..
ReplyDeleteमजा आ गया ..... कविता में नयापन लगा
ReplyDeleterealy good
ReplyDeleteआशिको चाँद को बख्श दो.. बढिया है जी..
ReplyDeletedoosra pahlu to aaj aapne samjhaya..... tauba !
ReplyDeletech..ch.. ch.. bechara chaand !
चांद बेचारा दुआ देगा सोनल को!
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