१
काँप गई
आलिंगन में
उन्मुक्तता है
इस बंधन में
पंख लगे है
धडकनों को
उबरू कैसे
इस उलझन से
२
कितने मादक कितने मोहक
नैन तुम्हारे
मौन में भी कितने मुखर
नैन तुम्हारे
इन नैनो ने विकल किया
ये तो सोये
पर जागे रात रात भर
नैन हमारे
३
दिन-ब-दिन
तुम चढ़ रहे हो
सीढ़िया सफलता की
मैं थक रही हूँ
नहीं चल पाती
उस रफ़्तार से
शायद मैं फिर
जुटा सकूँ
कतरा कतरा हिम्मत
जो हाँथ थाम लो
तुम प्यार से
वाह !सुन्दर कविता .....हर पंक्ति बेहतर ...सम्पूर्ण कविता अच्छी लगी ....
ReplyDeleteनिशब्द है जी हम तो आज......
ReplyDeleteकमाल की रचना!
कुंवर जी,
फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteजुटा सकूँ
ReplyDeleteकतरा कतरा हिम्मत
जो हाँथ थाम लो
बहुत ही सुंदर कविता सोनल जी
कमाल है-शुभकामनाएं
बहुत ही सुन्दर कविताएँ हैं!
ReplyDeletebehtreen lagi aapki likhi panktiyaan ...bahut khub
ReplyDeleteसच है .. प्यार का संबल मिल जाए तो रास्ता आसान हो जाता है ....
ReplyDeleteबेबाक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकविता मे फोटोग्राफी , उत्तम ।
ReplyDeleteआप भि सफ़ल्ता कि सीढी चढती रहे बहुत सुन्दर कवित आप की
ReplyDeleteलाजवाब रचना .......
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeletehttp://nanhen deep.blogspot.com/
http://adeshpankaj.blogspot.com/
अरे वाह, प्रेम रस से सराबोर इतनी सुंदर क्षणिकाएँ। बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDelete--------
बूझ सको तो बूझो- कौन है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
sonal jiiiiiiiiii shandar bhav waah tarife kabil
ReplyDeleteशायद मैं फिर
जुटा सकूँ
कतरा कतरा हिम्मत
जो हाँथ थाम लो
तुम प्यार से
ye line hme pasand aayi
1
ReplyDeleteआलिंगन में
उन्मुक्तता है
इस बंधन में
पंख लगे है
धडकनों को
2
कितने मुखर
नैन तुम्हारे
जागे रात रात भर
नैन हमारे
3
तुम चढ़ रहे हो
सीढ़िया सफलता की
मैं थक रही हूँ
नहीं चल पाती
उस रफ़्तार से
शायद मैं फिर
जुटा सकूँ
सपष्ट भावबोध, रसात्मक रचनाशीलता और सौदर्यबोध
छलकते जज्बाओं की सुराही का पानी .... सुकून मिला
ReplyDeleteapni email id den... rasprabha@gmail.com
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएं.... स्पष्ट और सटीक...
ReplyDeletebahut hi khubsurat kavitaayein...
ReplyDeleteachha laga padhkar,...
yun hi likhte rahein....
regards..
http://i555.blogspot.com/
बहुत सुन्दर रचना, इधर आकर अच्छा लगा :)
ReplyDeleteक्या बात है..वाह! अति सुन्दर!!
ReplyDeleteये फार्मेट बहुत बढ़िया है!
एक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
तुम चढ़ रहे हो
ReplyDeleteसीढ़िया सफलता की
मैं थक रही हूँ
नहीं चल पाती
उस रफ़्तार से
शायद मैं फिर
जुटा सकूँ
कतरा कतरा हिम्मत
जो हाँथ थाम लो
तुम प्यार से
.............परवीन शाकिर की याद दिला गयीं आप इस कविता के सहारे.....! बहुत ही भावनात्मक कविता ....बधाई
प्रेम की सुन्दर अनुभूति...खूबसूरत भावाभिव्यक्तियाँ....बधाई !!
ReplyDeleteअद्भुत!
ReplyDeleteपहली तो अद्भुत है ! सशक्त भी ।
ReplyDeleteआभार ।
खूबसूरत कवितायें। छुटकी , सुन्दर!
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