आज भी ....
ख़त लिखते है तो जवाब आता है
बंद लिफाफे में गुलाब आता है
देख कर उनको भारी हो जाती है पलकें
रुखसार पर रंग लाल छाता है
अब भी.....
खस गर्मियों में लगा कर निकलते है
सुबह- शाम दोनों वक़्त संवरते है
कलफ लगी सूती चुन्नी की ओट से
मूंगे से सुर्ख लब दमकते हैं
पर....
वो ना आया जिससे वादा था
यकीन जिसपर खुदा से ज्यादा था
आज ज़माने भर की मजबूरियां जताता है
कल जो चाँद लाने पर आमादा था
अति सुन्दर !!!
ReplyDeleteband lifafe ki baat hui purani..
ReplyDeleteaaj to mobile ne jahag le li hai.....
वाह ! कितनी सुन्दर पंक्तियाँ हैं ... मन मोह लिया इस चित्र ने तो !
ReplyDeleteआपके जज्बातों को पढ़ कर वाह के साथ आह भी निकली...सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह, वाह, वाह, वाह जी, बहुत खूब। वो ना आया जिससे वादा था।...सच में वादे होते ही टूटने के लिए हैं।
ReplyDeleteखस गर्मियों में लगा कर निकलते है
ReplyDeleteसुबह- शाम दोनों वक़्त संवरते है
कलफ लगी सूती चुन्नी की ओट से
मूंगे से सुर्ख लब दमकते हैं waah prem ka shringaar...iska bhi ek alag hi maza hai...bahut khoob...
aur ab to ishq ka yahi anjaam hota hai...kisi aur sang subah kisi aur sang shaam hota hai
ReplyDelete@दिलीप जी
ReplyDeleteसुबह शाम तो छोडिये एक मोबाइल के विज्ञापन में तप लम्हों में खेल बदलते दिखाया है
आज ज़माने भर की मजबूरियां जताता है
ReplyDeleteकल जो चाँद लाने पर आमादा था
kya sahi likha hai....badhiya.
कित्ता अच्छा लिखा आपने ..ढेर सारी बधाई व प्यार !!
ReplyDelete_____________
और हाँ, 'पाखी की दुनिया' में साइंस सिटी की सैर करने जरुर आइयेगा !
बहुत ही अच्छी रचना...
ReplyDeletenice
ReplyDeleteख़त लिखते है तो जवाब आता है
ReplyDeleteबंद लिफाफे में गुलाब आता है
देख कर उनको भारी हो जाती है पलकें
रुखसार पर रंग लाल छाता है
.........ek taraf pyaar aur doosri taraf dard
जी इतना तगड़ा उल्हाना....कुछ कहने-सुनने का मौका तो दिया होता बेचारे को.....
ReplyDeleteकुंवर जी,
वो ना आया जिससे वादा था
ReplyDeleteयकीन जिसपर खुदा से ज्यादा था
आज ज़माने भर की मजबूरियां जताता है
कल जो चाँद लाने पर आमादा था ....bahut hi acchi rachna.badhai.
ohho..ho.ho......wah sonal :)
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना...
ReplyDeletebahut hi achhi rachna....
ReplyDeleteतू ही बता ऐ नामावर , तूने तो देखे होंगे
ReplyDeleteकैसे होते हैं वो खत जिनका जवाब आता है .
(शायद निदा फाज़ली का शेर है )
bahut sundar expression, kam shbdon mein sab kuch...
ReplyDeleteसोनलजी
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया.
लिफाफा और गुलाब..
मैं कहीं बचपन में लौट गया आपकी रचना को पढ़कर।
o tere ki ... super solid....... kaheen aisa na ho koi mere liye ye aakhiri lines kah baithe.. :( shuqar to ye hai chaand lane ka wada maine kabhi nahi kiya ..chand ki itni baaten karne ke baad bhi ....hehehe....han nazm bahut hi shaandaar hai .... bade achhe ache shayar yaad aa gaye ye sochte hi ki kiske kalaam se iska mail karun ... :) aap ki likhi kavitaon me mere sabse fav hui ye .. :)
ReplyDelete@आतिश जी
ReplyDeleteशुक्रिया तारीफ़ के लिए .. कहीं आप चाँद पर "सर्वाधिकार सुरक्षित " तो नहीं लिखवा रहे ऐसा मत कीजिएगा ... आपके खिलाफ भी कोई संगठन खडा हो जाएगा :-)
Simply too good...
ReplyDeleteKhas kar ye roopak,....
कलफ लगी सूती चुन्नी की ओट से
मूंगे से सुर्ख लब दमकते हैं
bahut bahut sundar
सोनल जी, बहुत बढिया लिखा है... भई आपके ब्लोग पर आकर मजा आ गया
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना |
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteआज ज़माने भर की मजबूरियां जताता है
ReplyDeleteकल जो चाँद लाने पर आमादा था. बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं जो सच्चाई बयां करती हैं
आज ज़माने भर की मजबूरियां जताता है
ReplyDeleteकल जो चाँद लाने पर आमादा था.
behad khubsurat panktiya...