मैं क्या सोचती हूँ ..दुनिया को कैसे देखती हूँ ..जब कुछ दिल को खुश करता है या ठेस पहुंचाता है बस लिख डालती हूँ ..मेरा ब्लॉग मेरी डायरी है ..जहाँ मैं अपने दिल की बात खुलकर रख पाती हूँ
behn sonl ji fntaastik dophri kaa zulfon se km shbdon men khubsurt miln koi vishaal di vaalaa saahitykaar hi kr sktaa he jo kmaal aapne kr dikhaayaa iske liyen bdhaai meraa hindi blog akhtarkhanakela.blogspot.com he
अरे कोई उनसे भी तो पूछो की वो इस गर्मी के चलते अपना जुड़ा खोलना भी चाहते हैं या नहीं ;-) वरना ऐसा ना हो जिनकी साँसने ठहरी है इस गर्मी के चलते ठहरी ही न रह जाएँ और खुलता हुआ जुड़ा बाजये खुलने के वापस टाइट हो जाये....हा हा हा .... मौसमी पोस्ट॥ :-)
sonal ji kam shabdon me ek badhiya rachana...dhanywaad
ReplyDeletemazaa aa gaya in ehsaason mein
ReplyDeleteवाह ! सोनल जी ! कमाल की सुन्दर, रसीली, सृजन-शक्ति है ,,,बहुत खूब लाजवाब ..निहाल हुए
ReplyDeleteगोया इस दोपहरी में रूमानी पन !!
ReplyDeletebehn sonl ji fntaastik dophri kaa zulfon se km shbdon men khubsurt miln koi vishaal di vaalaa saahitykaar hi kr sktaa he jo kmaal aapne kr dikhaayaa iske liyen bdhaai meraa hindi blog akhtarkhanakela.blogspot.com he
ReplyDeleteवाह...बहुत गज़ब की दोपहरी है...:):) खूबसूरत एहसास
ReplyDeletei call it a contemporary style of expression..
ReplyDelete:)
वाह! क्या बात है!
ReplyDeleteज़ुल्फ़ के साए में शाम करके सफर इक उम्र का पल में तमाम करने की बात वास्तव में लाजवाब है.
ReplyDeleteआपने तो थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कह दिया.
बहुत बहुत बधाई !
वाह! वाह!
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
ReplyDeletewah sonal.........wah :)
ReplyDelete!!
ReplyDeleteachhaa hai .
waah !!
ha ha ha
ReplyDeleteachha he
sandar becheni he aap ki
अच्छा जी?
ReplyDeleteमेरी साँसे उसके
ReplyDeleteखुलने पर ही ठहरी है
अब साए को तरसाओ मत
बहुत गर्म दोपहरी है
तपन है और ख्वाहिशें है
वक्त की आजमाइशें हैं
sundar
ReplyDeleteHi..
ReplyDeleteAb saye ko tarsao mat..
Ye jude..bina khule rah jao mat..
Wah.. Kya kavita kahi hai..
Sundar kavita..
DEEPAK..
गर्मी की दुपहरी में रूमानियत ...!!
ReplyDeleteKYA BAAT HAI...
ReplyDeleteHAHAHA....
bahut khub...
yun hi likhna jaari rakhein...
इस गरम मौसम में थोड़ा सा रुमानी हो जाना भी अच्छा लगता है.. वाह... संवेदी रचना.... साधुवाद.....
ReplyDeleteachha hai ji...
ReplyDeleteसोनल जी
ReplyDeleteमेरी साँसे उसके
खुलने पर ही ठहरी है
ये बात हम कहने वाले थे आपको कैसे पता चल गया.जरा बताएंगी....छठी इंद्री लगता है कि आपकी सजग थी.....
पर हां मेरी सांसे ठहरी नहीं थी..अटक गयी थीं...
Sonal didi
ReplyDeleteआपने तो थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कह दिया.
MAAAAAAAAAAAASHA ALLAH WAAH JWAB NAHI AAPKA
ReplyDeleteLAUKI KHAYENGE K BAAD YE RACHNA BAHUT AUCHHI LAGI .
Bahut ache!!
ReplyDeleteati sundar.......
ReplyDeleteभौत खूब!
ReplyDeleteअरे कोई उनसे भी तो पूछो की वो इस गर्मी के चलते अपना जुड़ा खोलना भी चाहते हैं या नहीं ;-) वरना ऐसा ना हो जिनकी साँसने ठहरी है इस गर्मी के चलते ठहरी ही न रह जाएँ और खुलता हुआ जुड़ा बाजये खुलने के वापस टाइट हो जाये....हा हा हा .... मौसमी पोस्ट॥ :-)
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