फिर भी ना जाने क्यों फिसल रही हूँ मैं
आइना हर रोज़ दिखाता है निशाँ नए
इस कदर ना जाने क्यों बदल रही हूँ मैं
जब से चढ़ी है नज़र में खुमारी
किसी के दिल में उतर रही हूँ मैं
कल सरी महफ़िल शमा कतरा गई मुझसे
या खुदा इस कदर निखर रही हूँ मैं
मेरी साँसे मदहोश करती है उन्हें
इस गुरुर से अभी तक उबर रही हूँ मैं
"सोनल" ये सारे आसार है मर्ज़-ए-मुहब्बत के
कुछ हवा बहकी है कुछ बिगड़ रही हूँ मैं
umda rachna.........
ReplyDeletebaanch kar achha laga
कुछ हवा बहकी है कुछ बिगड़ रही हूँ मैं
ReplyDeleteगुड गुड,
हवा भी बहकी है और...
आइना हर रोज़ दिखता है निशाँ नए
ReplyDeleteयहाँ दिखता की दिखाता होगा शायद । रचना बहुत अच्छी लगी ।
@mithilesh thanks
ReplyDeleteवाह! बहुत ही सुन्दर!
ReplyDeleteमामला गड़बड़ है!" गुरुदास मान जी का गाना याद आ गया था!
ReplyDeleteवैसे खतरनाक लिखा है जी आज तो....
कुंवर जी,
sonal..very nice
ReplyDeletekeep it up :)
waah..........gazab ki prastuti hai..........bahut hi shokh , chanchal bhav bhare hain.......keep it up.
ReplyDeleteबहुत शानदार !
ReplyDeleteअभिव्यक्ति को जैसे पर ही लग गए!
बधाई!
फिर भी ना जाने क्यों फिसल रही हूँ मैं ...kiska asar hai ?
ReplyDeletetoooooooo good!!!!!!!!!! sonal ma'am
ReplyDeletefabulous
ecstatic
simply the best
बहुत शानदार !
ReplyDeleteअभिव्यक्ति
खूबसूरत बयान किया है मोहतरमा। इरशाद।
ReplyDeleteFISALIYE MAT DHYAN SE........
ReplyDeleteSAMBHAL KAR CHALIYE........ZRAA
bahki hawa kee shikaar aap bhi !...
ReplyDeleteshararat...kabhi aisi to na thi
कल सरी महफ़िल शमा कतरा गई मुझसे.. या खुदा इस कदर निखर रही हूँ मैं. बहुत खूब... वैसे पूरी नज़्म ही शानदार बन पडी है सोनल जी
ReplyDeleteआपकी भावनाएं बहुत ही शानदार है। अच्छा लगा। हमारे आसपास कुछ अच्छे लोगों का होना जरूरी है। आप जैसे रचनाकार इसका आभास देते हैं।
ReplyDeletebahut khoob...lajawaab...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजब से चढ़ी है नज़र में खुमारी
ReplyDeleteकिसी के दिल में उतर रही हूँ मैं
"सोनल" ये सारे आसार है मर्ज़-ए-मुहब्बत के
कुछ तो हवा बहकी हुई है कुछ मचल रही हूँ मैं
बहुत ही सुन्दर .बधाई!!
Hi..
ReplyDeleteTere blog pe aaya hun main..
Aaj to main pahli hi baar..
Aur hai paya gazal main tumne..
Chhalkaya hai pyaar hi pyaar..
Har ek sher pe "Wah" kahun main..
Dil main mere aaya hai..
Har ek sher ke bhav ne humko..
Dil se bahut lubhaya hai..
WAH..
Aapke blog ka anusaran kar liya hai jis se aage bhi aapki 'kuchh kavitayen, kuchh nazmen' padhta rahun..
Take care..
DEEPAK..
www.deepakjyoti.blogspot.com
कितना संभल कर चल रही हूँ मैं
ReplyDeleteफिर भी ना जाने क्यों फिसल रही हूँ मैं
आइना हर रोज़ दिखाता है निशाँ नए
इस कदर ना जाने क्यों बदल रही हूँ मैं
....vaah ,umda rachna.
एक उम्र की खुमारी अक्सर ऐसे ही लफ्ज़ लिए होती है.. बढ़िया लिखा है
ReplyDeleteबेहतरीन भावाभिव्यक्ति के लिये साधुवाद स्वीकारें...
ReplyDelete"सोनल" ये सारे आसार है मर्ज़-ए-मुहब्बत के
ReplyDeleteकुछ हवा बहकी है कुछ बिगड़ रही हूँ मैं"
वाह वाह ये रंग भी हैं आपके खजाने में बहुत खूब
हौसलाफजाई के लिए आप सभी की तहेदिल से आभारी हूँ
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ....
ReplyDeleteबेहतरीन!
ReplyDeleteआपको आमंत्रण कभी आयें इस तरफ़ भी!
"सच में"
(www.sachmein.blogspot.com)
"सोनल" ये सारे आसार है मर्ज़-ए-मुहब्बत के
ReplyDeleteकुछ हवा बहकी है कुछ बिगड़ रही हूँ मैं
बहुत सुंदर रचना।