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Friday, June 11, 2010

मेरी खुद से ही ठन जाती है

कुछ और हुआ मैं करती थी


कुछ और ही अब बन बैठी हूँ

सुन लो तुम्हारे आकर्षण में

खुद से ही लड़ बैठी हूँ

जुल्फ मेरी सुनती ही नहीं

और आंचल भी बेलौस उड़े

जब होंठ मेरे थर्राते है

मुस्काते हो तुम मौन खड़े

माथे पे पसीने की बूंदे

मोती सी दमकने लगती है

बढती धड़कन के साथसाथ

अब सांस दहकने लगती है

तुमने क्या सोचा खो दूँगी

खुद को इस हलचल में

मुझको तुम पा जाओगे

चाहत के उस एक पल में

माना पलकें ऊपर उठने में

मन भर बोझ उठाती है

खुद को वापस पाने में अक्सर

मेरी खुद से ही ठन जाती है

22 comments:

  1. गज़ब एहसास लिए सुन्दर रचना !

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  2. .bahut hi shokh , chanchal bhav bhare hain.......keep it up.

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  3. अच्छी पोस्ट है

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  4. waah ji waah...shringaar me milan ki baat aur preyasi ke uthte haav bhaav kya bakhubi darshaye hain...badhayi....

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  5. बहुत से पल आते हैं जिंदगी में जहाँ खुद से ठन जाती है..सुंदर बढ़िया रचना..

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  6. pahali baar aapke blog par aaya hoon. aapki kavita ne moh liya hai. bahut hi khoobsoorat rachana. vaqt mile to mere blog (meridayari.blogspot.com) par bhi aayen.

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  7. खुद को वापस पाने में अक्सर
    मेरी खुद से ही ठन जाती है

    जब खुद की खुद से ठन जायेगी

    देखियेगा एक दिन बात बन जायेगी

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  8. अनुभूतियों की आकर्षक प्रस्तुति....सुन्दर रचना बधाई।

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  9. तुमने क्या सोचा खो दूँगी

    खुद को इस हलचल में

    मुझको तुम पा जाओगे

    चाहत के उस एक पल में

    माना पलकें ऊपर उठने में

    मन भर बोझ उठाती है

    खुद को वापस पाने में अक्सर

    मेरी खुद से ही ठन जाती है .....
    prem me dwand kee aakarshak aur romanchit karne wali kavita... sunder... technology ke field me itni samvedna... achhi lagi

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  10. sonal ji...

    OM ji ke blog ke madhyam se apke blog par aane ka mauka mila...achha laga aapki bhavnaayein padh kar...

    aapki panktiyaan...

    बढती धड़कन के साथसाथ

    अब सांस दहकने लगती है

    waakai mein dil ko chhoo sa gayi hain...

    umdaa!

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  11. सुन्दर रचना भावों से भरी हुई......

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  12. सोनल जी अच्छी कविताएं कर रहीं, सब पढ़ता हूँ और पसंद भी आ रही हैं. शुभकामनाएं

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  13. lazbab ehsas...

    http://iisanuii.blogspot.com/2010/06/blog-post_12.html

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  14. वाह....बहुत सुन्दर ...ठनने की बात भी निराली है...


    मंगलवार 15- 06- 2010 को आपकी रचना ( कल रूट तुमको तरसाए )... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है


    http://charchamanch.blogspot.com/

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  15. सोनलजी
    आपके यहां पहले भी आया हूं , लेकिन बात पहली बार हो रही है ।
    सुंदर सुरुचिपूर्ण भावों की इस रचना के लिए बधाई !
    प्रेम जीवन का आधार है , हममें से कोई भी बिना प्रेम नहीं रह सकता ।
    सुन लो तुम्हारे आकर्षण में
    खुद से ही लड़ बैठी हूँ

    बहुत सुंदर !
    मुझको तुम पा जाओगे
    चाहत के उस एक पल में


    प्रेम के ही कुछ रंग देखने के लिए शस्वरं पर आने का आमंत्रण है…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  16. अच्छी अभिव्यक्ति है इस रचना में ..

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  17. क्या-क्या भाव भरे हैं आपकी अभिव्यक्ति में। खूब!

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