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Tuesday, April 6, 2010

अजीब लड़की (अंतिम किस्त )

आज ही परीक्षा ख़त्म हुई थी ,कालेज से आकर सीधे बिस्तर पर पड़ गई आखिर पिछले १५ दिनों की नींद जो पूरी करनी थी, उफ़ कैसे विचित्र सपने देख रही थी मैं सूनसान सड़क पर जा रही हूँ अचानक एक अजगर दिखाई देता है उसकी शक्ल किसी से मिल रही है...अरे ये तो मधु जैसा है घबराकर मेरी नींद खुली तो देखा नौ बज रहे है ....

"कोई बुरा सपना देखा क्या?" निधि ने मेरे माथे पर हाँथ रखते हुए पूछा , शायद थकान का असर होगा मैंने मुह धोते हुए सोचा ......कहाँ है मधु ..ये लड़की भी अजीब है मन मेरे पेपर चल रहे है पर एक बार मिल तो जाती देखती हूँ ......मधु के कमरे पर बड़ा सा ताला लटक रहा था, कहाँ गई होगी मैंने उसकी रूममेट लता से पूछा ..

कहीं बाहर गई होगी उसकने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ....

अरे होस्टल का गेट तो बंद हो जाएगा १० मिनट में उसके पास तो मोबाइल भी नहीं है कैसे आएगी अन्दर ,

"आप क्यों खून सुखा रही हो ..मज़े करो आज पेपर ख़त्म हुए हैं ." लता बोली

...मैं डिनर के लिए चली गई .रात के ११ बजे उस लड़की का कोई पता नहीं ,सारी लडकिया मूवी देखने के लिए टी वी रूम में थी ....मेरी रूचि टी वी में समाचार से ज्यादा कभी नहीं रही ,मैंने शिवानी की कृष्णकली उठाई और बालकोनी में बैठकर पढने लगी ...इतनी रोचक किताब होने पर भी मन कही ना कही मधु में अटका था पता नहीं कहाँ होगी, कुछ परेशानी में तो नहीं फस गई , हे इश्वर किसी को कोई फिक्र नहीं है , क्रश्न्काली के लास्य में मैं ऐसी बंध गई की समय का पता नहीं चला, अचानक किसी ने मेरे कंधे पर हाँथ रखा ..मैंने सकपका कर देखा तो निधि थी .."यहाँ क्या कर रही हो "
""मधु नहीं आई अभी तक, पता नहीं कहाँ रह गई कोई contact करने का ज़रिया भी नहीं है ,मुझे फिकर हो रही है " मैंने बेचैन स्वर में निधि से कहा .
"आप मेरे साथ चलो " निधि ने द्रढ़ता से मेरा हाँथ  पकड़ लिया ..मैंने बहुत पूछा निधि बोली बस चुपचाप चलो

निधि मुझे होस्टल के गाते के पास बने चौकीदार के कमरे के पास ले गई ,मैंने कुछ बोलना चाहा तो निधि ने होंठ पर ऊँगली रख कर चुप रहने का इशारा किया,हलके  हाँथ से उसने अधखुली खिड़की हो थोड़ा और खोल दिया ...अब स्तब्ध होने की मेरी बारी थी ...मधु कुर्सी पर आराम से बैठी थी सामने चौकीदार मोहन बैठा था ...दोनों ठहाके लगा रहे थे ...बात तो समझ में नहीं आ रही थी पर ये साफ़ दिख रहा था दोनों आपस में बहुत घुले मिले है ....

मैं अपने आप को मूर्ख सा महसूस कर रही थी पिछले २ घंटे से मैं जिसकी सलामती के लिए हलकान हुई जा रही थी वो भली चंगी सामने बैठी थी ...

निधि ने धीरे से मेरा कंधा दबाया और ऊपर चलने का इशारा किया ..सारे सवाल मेरे चहरे पर छपे हुए थे .....

"ये सब क्या है , तुम लोग सब जानती थी तो मुझे क्यों नहीं बताया " मैंने निधि और मधु की रूम मेट लता से पूछा

"आपकी परीक्षाओं की वजह से आपको नहीं बताया " निधि ने बात शुरू करते हुए कहा ...... और आगे का रहस्योद्घाटन तो मेरे लिए किसी रोमांचक उपन्यास से कम नहीं था .....

मधु अपने आप में पूरा झूठ का पुलिंदा थी , उसके पिता जीवित थे , जो उसके बैंक अकाउंट में पैसे जमा करवाते थे ....उसको कोई हार्ट की बिमारी नहीं थी और उस रात उसने जो नाटक किया वो मेरी संवेदना जीतने के लिए किया, उससे मेरी बेरुखी बर्दाश्त नहीं हो रही थी ,बाद में अपनी विजयगाथा उसने डिनर पर बड़ी निर्लज्जता से सबको बताई थी ..और दवा मैंने उसे दी depression की थी जो कोई भी मेडिकल स्टोर से ला सकता है ..उस दिन डॉक्टर ने भी उससे हार्ट की रिपोर्ट्स मांगी जो आजतक उसने नहीं दिखाई.......

"और वो मोहन के पास क्या कर रही है " ये रहस्य मुझे मार रहा था .

"अरे वो उसको पटा कर रखती है " लता बोली , देर रात दोस्तों के साथ घूमकर आती है तो मोहन बिना वार्डन को बताये गेट खोल देता है ..उसका छोटा मोटा काम भी कर देता है .

"हम तो आप को आज भी ना बताते पर आपका मधु प्रेम कुछ ज्यादा बढ़ गया था ..हमने आपको कई बार इशारे भी दिए पर आप तो सुनने को तैयार नहीं " निधि हँसते हुए बोली

मेरी आँखों के सामने निधि की वो मुस्कान आई जो मैं इग्नोर नहीं कर पाई थी ........

हम लेखको के साथ के बड़ी समस्या है हम "क्या है" से तृप्त नहीं होते हमको "क्यों " का जवाब भी चाहिए ..सारी रात करवटों में बीती कितनी भावनाए कितने समीकरण ..क्या पता वो मानसिक रूप से बीमार हो , किसी कुंठा के चलते वो ऐसा व्यवहार कर रही हो , शायद अपने परिवार से प्यार ना मिला हो ................ मैं शायद उसकी मदद कर पाऊं, भावनाओं का तूफ़ान सारी रात चलता रहा बीच बीच में ...कुछ गर्म बूंदे आँखों की कोरों से टपक भी गई

सुबह तक दिल दिमाग की लड़ाई में दिमाग हावी हो गया . मैं किसी अनजान लड़की के लिए इस सीमा तक जा सकती हूँ ...ये तो वो झूठ है जो लोगों को पता है अभी ना जाने उसके अस्तित्व और चरित्र की कितनी परते और खुले .... और ना जाने किस  किस तरीके से मेरी भावनाओं का फायदा उठाये

मैं उस अजीब लड़की को वही छोड़ कर आगे बढ़ गई ....किसी मोड़ पर वो मुझे फिर मिली तो जरूर बताउंगी

6 comments:

  1. अल्टीमेट.. जिस तरह का सरप्राईज में एक्स्पेक कर रहा था.. मुझे वही मिला.. !
    पढ़ते हुए सीन बाय सीन फिल्म चल रही थी.. कम्प्लीट विज्युलाईज किया स्टोरी को.. नाईस अटेम्प्ट!

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  2. एक्स्पेक्ट*

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  3. ...ये तो वो झूठ है जो लोगों को पता है अभी ना जाने उसके अस्तित्व और चरित्र की कितनी परते और खुले .... और ना जाने किस किस तरीके से मेरी भावनाओं का फायदा उठाये .---filmy kahani ki tarah majedar lekin sarthak bhi.

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  4. @हम लेखको के साथ के बड़ी समस्या है हम "क्या है" से तृप्त नहीं होते हमको "क्यों " का जवाब भी चाहिए

    लेखक ही नहीं किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को यह उत्सुकता होती है ...और यही प्रयास भी कि क्यों का जवाब मिल जाए तो कुछ मदद की जा सके ....कई बार इसी कारण अपनी लुटिया भी डुबोते हैं :):)...मगर प्रयास फिर भी जारी रहते हैं ...अच्छा बनने की ...अच्छा बनाने की ....
    कहानी अच्छी लगी ...

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  5. किश्तों में सफर अच्छा लगा....गनीमत है कि बहुत ज्यादा लंबा इन्तजार नहीं करना पड़ा..
    .मजा आ गया.......वाह....बहुत खूब......

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  6. hmm, kush saheb aisa kyn hota hai ki aksar jaha dekha jaye, aapki aashanurup hi ending hoti hai ;)......

    matlab je ki dusro ke manobhaav padhne me ekdam sakshham hai aap, guru dev.......charan kaha hai aapke....
    ;)
    jara pakhar lu

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