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हाँथ रख कर मांथे पर
ताप क्यों देखते हो
मेरी आँखों में देखो
भाप की बूंदे उभर आई है
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अपनी किस्मत आजमा सकती
नई नज़्म गुनगुना सकती
एक पल को ही सही
शायद मैं मुस्कुरा सकती
.....................................
आशाओं और उम्मीदों से
ज़िंदा हूँ मैं
वो समझते है
साँसों का चलना ज़िन्दगी है
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ज़िंदा हूँ मैं
ReplyDeleteवो समझते है
साँसों का चलना ज़िन्दगी है
..............बहुत खूब, लाजबाब !
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
ReplyDeleteलाजवाब रचना ......प्रत्येक पंक्तियाँ भावों कि गहराई को व्यक्त कर रही है .
ReplyDeleteहाँथ रख कर मांथे पर
ReplyDeleteताप क्यों देखते हो
मेरी आँखों में देखो
भाप की बूंदे उभर आई है
...vaah bahut sundar.
कमाल की क्षणिकाएँ हैं सब ... बहुत गहरा मतलब लिए ... वाह वाह निकलता है पढ़ने के बाद ...
ReplyDeleteआखिरी पंक्तियाँ बहुत कमाल की है और भाप की बूँदें गोया आंसू वाष्प से पुनः घनीभूत हो गाल पर ठहर गए हो.
ReplyDeleteसोनल जी कहीं से घूमता आया आपके ब्लाग पर। चार पंक्तियों का आपने बहुत सुंदर उपयोग किया है। सहज और सरल शब्दों में गहरी बात कही है। अपनी कविताओं में यह ताप बनाए रखिए। आपके परिचय में आपने कहा है कि आप एक छोटे नगर की लड़की हैं और कविताई ह्दय रखती हैं। यह जो तथाकथित छोटा नगर है इसे बचाकर रखिए। इसे मेट्रो की हवा मत लगने दीजिए। असली संवेदनाएं यहीं से आती हैं खासकर सरल शब्दों में। कविताओं का मेरा भी एक ब्लाग है गुलमोहर http://gullakapni.blogspot.com कभी देखें। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteअनुभूतियों को सुन्दरता से व्यक्त किया आपने..."
ReplyDelete"आशाओं और उम्मीदों से
ReplyDeleteज़िंदा हूँ मैं
वो समझते है
साँसों का चलना ज़िन्दगी है"
kahne ko ye chand shabd hain
lekin kitne gahre bhaav hain ismen
kaash mai sahi tarah taareef kar paati
bas.... bahut hi achha
with regards
आशाओं और उम्मीदों से
ReplyDeleteज़िंदा हूँ मैं
वो समझते है
साँसों का चलना ज़िन्दगी है
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं.
pehli kshankia ..bas out of the world hai .. :)
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