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Friday, May 14, 2010

कंधा (कहानी )

उन दोनों का रिश्ता बेहद अजीब था शादी के बीस साल के बाद भी एक अबोलापन था जो दोनों के बीच पसरा रहता ...हर काम मशीन की तरह से चल रहा था ,इस रोबोटिक ज़िन्दगी में भावनाए शायद शुरू से नदारद थी .सुबह उठने से रात सोने तक सब कुछ तय था .


एसा नहीं था की वो बहुत खुश थी या वो बहुत सुकून में था पर दोनों के बीच बहुत लंबा फासला था,परिवारों ने जोड़ा था इस बेमेल रिश्ते का बंधन, वो शहर का प्रतिष्ठित डॉक्टर और ये गाँव की कम पढ़ी लिखी पर समझदार लड़की ,जो बहुत जल्दी ये समझ गई थी की उनके जीवन में उसकी कितनी जगह है, पर रिश्ता तो था न तो बीज भी पड़े पर कभी फूल नहीं बन पाए, दो बार माँ बनते बनते रह गई बच्चेदानी कमजोर थी उसकी किस्मत की तरह. वो उसका कन्धा चाहती थी रोने के लिए पर सफ़ेद कड़क शर्ट पर उसका स्पर्श कभी पहुँच नहीं पाया ,कई बार शर्ट हांथो में पकड़ कर रोई थी ,बल्कि ज्यादातर अपनी सारी बातें उनकी शर्ट से ही कर लेती,जब से उसने ऐसा करना शुरू किया उसका मन हल्का रहने लगा,रात के अंधेरों में तन से तो वो डॉक्टर साहिब के साथ होती पर मन शर्ट के साथ, उसमे आये परिवर्तन वो महसूस तो करते पर पूछ नहीं पाते,एक साथी एक कंधे की तलाश उसकी कल्पना की दुनिया में समाप्त हो गई थी कभी कभी वो जवाब भी सुन लेती. अकेले कमरे में बात करने पर कई बार लोगो को उसकी मानसिक स्थिति पर शक होता ,सो वो कमरा बंद करके रहती .वो खुश थी अपनी दुनिया में

एक दिन सुबह डॉक्टर साहब अखबार पढ़ रहे थे ,और वो प्रेस वाले से कपडे ले रही थी,कपडे गिनते ही उसकी चीख निकल गई...शर्ट प्रेस वाले की गलती से जल गई थी,एक पल में वो अपने होश खो बैठी ...उसके मुह से ना जाने क्या क्या बातें निकल रही थी ..सभी स्तब्ध थे . डॉक्टर स्साहिब ने उसको रोकने की कोशिश की ...वो बेहोश हो चुकी थी .

अवसाद का अजगर उसे पूरी तरह से निगल चुका था ,मन और तन से बेहद कमज़ोर हो चुकी थी ,इतने सालों में पहली बार डॉक्टर साहिब ने उसे गौर से देखा था ..वो अपने व्यक्तित्व की परछाई मात्र रह गई थी...डॉक्टर साहिब उससे पूछना चाहते थे पर कोई सूत्र नहीं मिल रहा था बात शुरू कहाँ से करे . ग्लानि का बोझ ज़बान को हिलने नहीं दे रहा था,उसकी इस हालत के ज़िम्मेदार वो ही तो थे

"ये तुम्हारे साथ कब से हो रहा है " बड़ी मुश्किल से उन्होंने पूछा .

उसकी अवसाद भरी आँखों में पीड़ा की लहर दौड़ गई एक सुकून का सितारा चमका और बुझ गया. और सितारे के साथ उसकी जीवन ज्योति भी .



बहुत बड़ा दिन था आज जिस कंधे के लिए वो सारी उम्र तरसी थी ,उसको वो कंधा ही नहीं मिला था बल्कि उनकी आँखों में कुछ पश्चाताप के आंसू भी .

25 comments:

  1. संवेदनशील और मार्मिक

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  2. अत्यंत सुन्दर लघुकथा.
    मार्मिक भी

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  3. कहानी पढ़ कर अभी तक इसीमें मन विचरण कर रहा है......बहुत ही संवेदनशील कहानी....नारी मन को उजागर करती हुई....बस मन भर आया...

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  4. man bhaari ho gaya padh ke...maarmik samvedna se bharpoor...

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  5. सोनल रस्तोगी जी!
    आपकी ‘कंधा’ नामक मनोवैज्ञानिक कहानी पढ़कर सुखद अनुभूति हुई। प्रखर अविव्यक्ति के लिए बधाई!
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    इस रचना में कहानी के अनेक तत्व विद्यमान है, यथा-शीर्षक, कथानक, पात्र, चरित्र चित्रण, संवाद आदि। इसे लधुकथा कहना उचित प्रतीत नहीं होता है। लधुकथा का स्वरूप कहानी से भिन्न होता है। लधुकथा का अंत ऐसे पर उत्कर्ष होता है जहाँ पर पाठक संदर्भित विषय पर चिंतन के लिए विवश हो जाता है। सूक्ष्मता और तात्कालिकता लधुकथा का वैशिष्ट है। ये दोनों गुण पाठक को उत्कर्ष विन्दु तक शीघ्र पहुँचाने में सहायक होते हैं।

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  6. सोनल जी आप की कहानी पढ़ कर उस स्त्री के बारे में सोच रही हूँ..कैसे उसमें धीरे धीरे ये परिवर्तन आये होंगे वह खुद भी नहीं समझ पायेगी.
    ऐसे कई जोड़े होंगे जिनमें बेमेल की शादी जो सालों दो परिवारों के नाम पर निभाई जाती होंगी.
    मन को छू देने वाली कहानी.

    -आप ने इस का अंत सुखद रखा है यह सब से अच्छा पक्ष लगा.अन्यथा उसके मनोरोगी हो जाने के बाद अगर उसके पति को यह प्रायश्चित हुआ होता तो बहुत देर हो गयी होती.
    ......................

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  7. Hi..

    Aapki kahani main patni ka dard swatah hi dikhta hai..

    Har patni apne pati ka samarpan aur pyaar chahti hai.. Apki kahani main pati Doctor hokar bhi patni main ho rahe manovegyanic parivartanon ko agar pakad nahi paya to sahaj hi unke rishte main khai ka karan samajh main aa jata hai..

    Barhal, kahani ke marmik ant ne udaas kar diya..

    DEEPAK..

    Samay ho to mere blog par bhi aayen aur mera maan badhayen..

    www.deepakjyoti.blogspot.com

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  8. @डंडा लखनवी जी
    धन्यवाद मैं शीर्षक बदल रही हूँ ,आगे भी मार्गदर्शन करते रहिएगा

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  9. संवेदनशील , मन को छू लेने वाली कहानी.

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  10. जन्मदिवस की शुभकामना के लिए आपको बहुत धन्यवाद.

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  11. बहुत ही अच्छी कहानी लगी

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  12. अति सुन्दर...
    हार्दिक बधाई।

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  13. नारी मन को उजागर करती
    संवेदनशील कहानी
    बहुत ही अच्छी लगी


    हार्दिक बधाई

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  14. बहुत मार्मिक कहानी.. पर दुखांत दिल दुखा गया.. आभार..

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  15. कहानी कड़वी सच्चाई समेटे हुए....अब आधुनिक युग है....कुछ अंतर के साथ कुछ ऐसी सच्ची घटनाओं का साक्षी..करियर के चक्कर में लड़की की उम्र ज्यादा हो गई. मां-बाप ने प्राइवेट कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत औऱ डाक्टरेट की तैयरी करती लड़की का विवाह कर दिया..महज बीए पास से....उन्हें फक्र पत्नी की उच्च शिक्षा पर, पर पत्नी महोदया को बर्दाशत नहीं हुआ..कुछ साल बाद अलग हो गईं..अब बेटे को लेकर अलग रह रही हैं..बेटी पिता के पास......पति अच्छा था, अनपढ़ औऱ गांव का नहीं था..फिर क्या हुआ..कौन दोषी..क्या कभी दिल नहीं देखना चाहिए..शिक्षा का मतलब क्या हुआ..बस पात्र बदल गए हैं..जो पहले पुरुष करते थे कहीं कहीं अब महिलाएं करती हैं.....

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  16. uffffffffff.....is kahani ko bardaasht kar pana hi badi baat ho gayi mere liye..itna dard..itni bhayawah sthiti... :( ..abhi kuch kah nahi paaunga.. :(

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  17. बहुत सुन्दर! बहुत अच्छे!

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  18. सोनल जी ... !

    कथानक की बहुत ही निकट से अनुभूति है मुझे.. किन्तु परिस्थितियां विपरीत हैं। जब भी गांव जाना होता है बचपन के सखा दिवन्गत डा० की चिरनिद्रा स्थल पर उनकी सन्ताने मुझे अवश्य पल भर को देखती है। उनके बच्चे मुझे पापा कह कर ही पुकारते हैं। उनकी बेटी को अनुकम्पा से स्वास्थ्य विभाग ने सेवा पर ले लिया है

    अस्तु ... यथार्थ से वापस कहानी पर आते हुये

    एक मार्मिक कथानक .. कथावस्तु का चयन और पात्रों की संख्या सहित सुंदर चित्रण किया आपने। कहानी अंत में जिस टीस के साथ एक झटके में बिना किसी नाटकीयता के साथ समाप्त हो जाती है और चुभन लिये हुये पाठक को सोचने पर विवश करती है। यहीं कथाकार अपने उद्देश्य को हासिल कर लेता है।

    www.trishakant.com

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  19. bahut kam shabdon mein poori kahani kah daali tumne... bahut achchi kahani.

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