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Tuesday, May 25, 2010

उफ़ गर्मी (कहानी )

चिपचिपी गर्मी ,तपती धरती ,आग उगलता आसमान ,ना रुकने वाला पसीना .. उस पर तवे पर पड़ी रोटी को सेकना, मीरा की झुंझलाहट बढती जा रही थी ...सारे घर में इन्वेर्टर का कनेक्शन है एक रसोई में छोटा सा पॉइंट लगवा देते तो कम से कम टेबल फेन लगा कर काम तो हो जाता .


पर किसी को कहाँ पड़ी है मेरी, दिन के २४ में से १० घंटे तो रसोई में ही निकल जाते है ..इतनी उमस नहाया बिना नहाया सब एक बराबर. गला भी सूख रहा है सब टी वी के सामने बैठे है,किसी से इतना भी नहीं होता के एक ग्लास पानी ही पिला दे.

ये भी शाम को ऑफिस से लौटते है तो ऐसा दिखाते है मानो ये तो काम करके आये है और मैं बिस्तर पर पड़ी पड़ी आराम कर रही हूँ . सारा दिन A C में बैठ कर आते है.

जितनी तेज गैस की लौ थी उतनी तेजी से मीरा के मन में विचार जल रहे थे, बचपन से ही गर्मी का मौसम उसे सख्त नापसंद था, पसीने में भीगने का ख़याल ही उसका मन घबरा देता, शादी के बाद जिम्मेदारियों को संभालने में उसने कमी नहीं की पर .. तपन से भरे ये चार महीने उसकी जान निकार देते ,ख़ास कर रसोई में जाना ..शादी के दस साल बाद थोड़ी सहन करने की ताकत तो आ गई थी पर अब भी कभी कभी मन बेचैन हो उठता ,फिर कोई अच्छा नहीं लगता.

विचारों में खोई थी अचानक एहसास हुआ किसी ने आँचल खींचा, देखा तो तीन साल की प्यारी सी सुमी खड़ी थी

"मम्मा इधल आओ " तुतलाते हुए हुए मीरा को बुलाया
"बेटा मम्मा अभी काम ख़त्म कर के आती है " मीरा ने बोला
"प्लीज़ एक मिनट " सुमी ने लाड से बोला
मीरा झुकी "बोल बच्चा क्या बात है "
"देथो मेले हाँथ कितने ठन्डे है " अपने हाँथ मीरा के गाल पर लगा दिए
"आपतो गलमी लग रही होगी ना, ठंडा ठंडा कूल कूल "
सुमी के भोलेपन में मीरा  सब भूल गई

13 comments:

  1. vgachhon me sari qaaynaat basti hai ...unka khush hona mausam badal deta hai .. to wo to apni maa ko dulaart rahi thi ..kaise na bhul jaateen meeera apni sari garmi...mujhe bahut pasnad aayi kahani....bahuit sare ankhae ehsaas hain ..is kahani me

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  2. बच्ची के लाड़ की शीतल फुहार!!!

    बहुत बढ़िया प्रस्तुति.

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  3. Hi...

    Garmi to sach main sabko hi tang kar rahi hai par sahi hai, ek to garmi upar se light ki samasya....inverter chale bhi to kaise..Dil main yahi aata hai kash kahin pahad main janm liya hota...

    Kitni bhi pareshani ho..amuman mahilayen shikayat ka ek bhi mauka haath se jaane nahin detin jaise ki aapki kahani ka Meera ka ye dialogue bata raha hai..."ये भी शाम को ऑफिस से लौटते है तो ऐसा दिखाते है मानो ये तो काम करके आये है और मैं बिस्तर पर पड़ी पड़ी आराम कर रही हूँ . सारा दिन A C में बैठ कर आते है"...hahaha...

    Par saath hi kahani ka sabse madhur note ye ki bachchi ki manuhar ke aage sab kuchh nyochhavar hai...

    ye vakya ek meetha sa ahsaas de gaye..

    "देथो मेले हाँथ कितने ठन्डे है " अपने हाँथ मीरा के गाल पर लगा दिए
    "आपतो गलमी लग रही होगी ना, ठंडा ठंडा कूल कूल

    Nice..and sweet...

    Deepak...

    Please do visit..my blog and meet "WO BHOLI SI LADKI"....

    www.deepakjyoti.blogspot.com

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  4. वाह....बच्ची ने सारे तनाव को एक क्षण में खत्म कर दिया...बहुत अच्छी कहानी....

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  5. सोनल जी,
    प्यार तो प्यार है.प्यार मिलते ही सारी शिकायतें दूर हो जाती हैं.
    चाहे वो प्यार बच्चों का हो या फिर बड़ों का.बधाई !!

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  6. hmm bas yahi to hai emmotional black mailing :) jiski vajah se lagi rahti hain bechari mayen .
    behad khubsurat abhivyakti .

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  7. '''उफ ! गर्मी .... '' कितनी खूब सूरती से आप में मीरा के अंतर द्वन्द को उभारा , गर्मी और रसोई दोनों को एक दूसरे का पर्याय बन जाता है , माँ चाहे किसिसी भी हालत में हो मगर अपनी नन्ही संतान को नहीं भूलती , मगर यहाँ यहाँ सुमी ने आ कर अचानक से मीरा को अपने ठन्डे ठन्डे हाथ लगा कर मनो '' ओस की बूंदे '' स्पर्श करा दी हो , बहुत सुंदर , आप को बहुरबहुत बधाई ,
    सादर

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  8. आप के ब्लॉग पर पहले बार आने का सौभाग्य मिला , अच्छी रचनाये मिली ,
    आभार ,
    साधुवाद ,

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  9. बच्चों की बातों से तो वैसे भी सब कुछ भूल जाता है इंसान ........

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  10. hamaare saath bhi huaa hai kai baar...

    thandi hatheliyaan.....garm gaalon par..jo sukoon deti hain.......


    use comment mein nahin kahaa jaa saktaa....

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  11. कूल कहानी! क्यूट कहानी!

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