मैं सोने सी कुछ आग सी
कभी चमक उठूँ कभी दहक उठूँ
ना जाने किस पल लहक उठूँ
दरिया को संग बहा लूं मैं
बिन मेघ भी जल बरसा लूं मैं
दुनिया के तंग घरौंदे में
गौरया बन मैं चहक उठूँ
खुद के रहस्य में उलझी मैं
टूट गई ना सुलझी मैं
ना जाने कोई किस रात में
ध्रुव तारे सी चमक उठूँ
खुशबू मेरे तन का हिस्सा
हर रंग मुझी से बावस्ता
ना जाने कब किस क्यारी में
रजनीगंधा बन महक उठूँ
बहुत प्रवाहमयी और सुन्दर रचना... यूँ ही महकती रहो , लहकती रहो , चमकती रहो :):)
ReplyDeleteरजनीगंधा की महक आ रही है।
ReplyDeleteकल (19/7/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
रजनीगंधा तो मेरा प्रिय फूल है और इस नाम से बनी फिल्म जिसमें विद्या सिन्हा ने काम किया था वह भी मुझे बहुत पंसन्द है.
ReplyDeleteजो कुछ आपने कविता में लिखा है वह आपके जीवन में सच साबित हो इन्हीं शुभकामनाओं के साथ.
कविता अच्छी है और सच के करीब लगती है इसलिए यह लिख दिया..
बुरा मत मानिएगा
रजनीगंधा से भीनी महक आती है आपकी रचनाओं से।
ReplyDeletemujhe yakeen hai is khyaal per... aameen
ReplyDeleteGOOD
ReplyDeleteआस्था और आशावादिता से भरपूर स्वर इस कविता में मुखरित हुए हैं।
ReplyDeleteबहुत खूब! महकने, चहकने, लहकने का क्रम बना रहे। हमेशा।
ReplyDeleteHi..
ReplyDeleteAha..
na jaane kab kis kyari main,
rajnigandha ki mahak uthun..
Wah.. Kya baat hai..
Deepak
वाह क्या बात है। कब क्या हो जांएं पता ही नहीं। पर हर बार प्रवाह और शक्ति का प्रतीक बनी रहेंगी। कई लोगो के साथ मुझे भी रजनीगंधा फिल्म की याद आ रही थी। रजनीगंधा के फूल है मेरे घर में।
ReplyDeleteरजनीगंधा सी ही खुशबू शामिल है इस कविता में ...यूँ ही मकती रहें ..शुभकामनायें ...!
ReplyDelete* महकती
ReplyDeletebeautiful poem from the beautiful heart
ReplyDeletekeep it up!! :)
ना जाने कब किस क्यारी में
ReplyDeleteरजनीगंधा बन महक उठूँ ....यूँ ही मकती रहें ..शुभकामनायें ...!
बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
ReplyDeleteखुशबू मेरे तन का हिस्सा
ReplyDeleteहर रंग मुझी से बावस्ता
ना जाने कब किस क्यारी में
रजनीगंधा बन महक उठूँ
ye chaar lines to main kabhi churaunga..aur bataunga bhi nahi...hehehe
दुनिया के तंग घरौंदे में
ReplyDeleteगौरया बन मैं चहक उठूँ
यही वह ख्वाहिश है जहाँ इंसान के एहसास उड़ान भरने लगते हैं
बहुत सुन्दर लिखा है
रजनीगंधा सी प्यारी और निश्छल लगी ये कविता
ReplyDeleteरचना का प्रवाह ..... एक महक बन कर छा रहा है .... लाजवाब रचना है ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता.
ReplyDeleteरजनीगंधा की खुशबू यहाँ भी पहुंची...बधाई. कभी हमारे 'शब्द-शिखर' पर भी पधारें.
ReplyDeleteवाह...मन भावन कविता...प्यारे प्यारे मासूम ख्यालों से सजी हुई...बधाई..
ReplyDeleteनीरज