कितनी बेचैन गुजरी है रात
उमस भी हद से ज्यादा थी
पसीना और आंसू एक साथ बहे
घुटन जान लेने पर आमादा थी
तुम सोये सुकून से
हर रिश्ता तोड़ जो आये थे
हम पोटली लिए बैठे रहे लम्हों की
हमारे आँचल में छोड़ आये थे
चार आँखों का नसीब तय हुआ
दो को हँसना दो को रोना था
बड़ा गुरूर था अपनी मोहब्बत का
ये हश्र एक रोज़ होना ही था
बड़ा गुरूर था अपनी मोहब्बत का
ReplyDeleteये हश्र एक रोज़ होना ही था
अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ
ReplyDeleteचार आँखों का नसीब...! क्या थोट है हुज़ूर
ReplyDeleteसोनलजी
ReplyDeleteऔरत सचमुच बहुत संवेदनशील होती है ।
आपकी रचना में इसको समझा जा सकता है ।
मेरी कामना है इन कोमल एहसासों की कविताओं का पटाक्षेप सुखद यादगार हो !
अच्छी कविता के लिए बधाई !
शस्वरं पर आपका हार्दिक स्वागत है , अवश्य आइएगा…
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
उफ़्……………सारी वेदना उतर आयी है।
ReplyDeletehi..
ReplyDeletewah..
चार आँखों का नसीब तय हुआ
दो को हँसना दो को रोना था
बड़ा गुरूर था अपनी मोहब्बत का
ये हश्र एक रोज़ होना ही था
Dard milta sada muhabat main..
fir bhi to log muhabat karte..
tootta hi rahe unka dil par...
hain muhabat ka fir bhi dam bharte...
Sundar Bhavabhivyakti...
Deepak..
ohho sonal ..padhna shuru kiya ti shuru ki chaar panktiyon se laga kahan thi kal..mausam to thanda aur mast tha...par malum hua ye to ishq ki garmi thi..well done ..keep it up :)
ReplyDeleteजो प्यार दो आँखों की नींद और दो आँखों का पानी बन जाये....वह प्यार नहीं, वहम है !
ReplyDeleteसरल भाषा, भावुक कर दिया।
ReplyDeleteमैं तो मोहब्बत को हमेशा जिन्दाबाद ही देखना चाहता हूं.
ReplyDeleteठीक है कि एक मोहब्बत का हश्र खराब हो गया लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर बार खराब ही हो
मैं इस धारणा को भी नहीं मानता कि प्यार केवल एक बार ही किया जाता है.
हम थोड़े लोग जो कुछ लिखते-पढ़ते हैं वे शायद दुनिया को बेहतर बनाने ही तो निकले हैं.
इसलिए डोंट वरी बी हैप्पी
आपको एक अच्छी रचना के लिए बधाई
आप हर बार कुछ नया लिखकर चौका देती है वही आपने फिर से किया है. शानदार है.
निदा साहब कह गए हैं
ReplyDeleteजीवन क्या है, चलता फिरता एक खिलोना है,
दो आँखों में, एक से हँसना, एक से रोना है
आज आपकी कविता ने आँखें चार होने से लेकर उन चार आँखों की किस्मत बयान कर दी...हमेशा की तरह अनूठी कविता...
मोहब्ब्त का हश्र ऐसा ही होता है कोई रोता है तो कोई हंसता है........
ReplyDeleteओह....आज ऐसा कैसा मूड ? बारिश वाली जिसमें भीगे थे हम - तुम टाइप लिखो ना....
ReplyDeleteहम पोटली लिए बैठे रहे लम्हों की
हमारे आँचल में छोड़ आये थे
बहुत संवेदनशील रचना...
अच्छी पोस्ट,बेहतरीन रचना
ReplyDeleteयह पोस्ट ब्लाग4वार्ता पर भी है
गजब के भाव और उसपर आपका अंदाजे बयां। सचमुच लाजवाब कर दिया आपने।
ReplyDelete................
पॉल बाबा का रहस्य।
आपकी प्रोफाइल कमेंट खा रही है?.
दिल के टूटने आर दर्द तो होता ही है ... फिर मुहब्बत की तो ये रोज़ रोज़ की दास्तान है ....
ReplyDeleteअच्छा लिखा है बहुत ...
बहुत खुबसूरत रचना ,
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुती ||
चार आँखों का नसीब तय हुआ
ReplyDeleteदो को हँसना दो को रोना था
kitni baten yaad aa gayi is misre se..
do naina ik kahani thoda sa badal thoda sa
paani ...
khub pasand aayi ye nazm ..:)
do aankhon me ek se hansna ek se rona hai ...
मामला निपटा ही दिया आपने। उधर की कहानी भी कोई सुनाता। सुन्दर भाव!
ReplyDeleteचार आँखों का नसीब तय हुआ
ReplyDeleteदो को हँसना दो को रोना था
क्या बिम्ब दिया.... !!