सिमटे सिमटे
सीले सीले
आधे सूखे
आधे गीले
पहली बारिश
और हम तुम
सुलगे सुलगे
दहके दहके
थोड़े संभले
थोड़े बहके
पहली बारिश
और हम तुम
चाय की प्याली
गर्म पकोड़े
मुंह में भरते
सी सी करते
पहली बारिश
और हम तुम
सावन आये
सावन जाए
जिया करेंगे
संग रहेंगे
पहली बारिश
और हम तुम
फोटो और रचना दोनों मनभावन लगे ,कुछ-- याद दिला गया ।
ReplyDelete"बेहतरीन.....पर अच्छी-खासी कविता रोमानी हुए जा रही थी जिसमे एक-दूसरे को चुपचाप देख कर भी पूरा दिन गुज़र जाता..लेकिन आपने पकोड़े,चाय दे कर अच्छा नहीं किया ....पर सोचता हूँकि बुरा भी तो नहीं किया आखिर कार हर खुशी का अंत खाने पर ही तो होता है...बहुत बढ़िया ..."
ReplyDelete@अमृतघट जी
ReplyDeleteपहली बारिश हो ..रोमानी हो पर पेट में चूहे दौड़ जाए ..पास में भजियावाला गर्मागर्म पकोड़े उतार रहा हो .... रोमांस उसके बिना तो अधूरा ही रहेगा
फोटो ने कविता के भावों को और ज्यादा रूमानी बना दिया है।
ReplyDelete................
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वाह, बारिश और पकौडों का साथ...बहुत खूब..
ReplyDeleteसुलगे सुलगे
ReplyDeleteदहके दहके
थोड़े संभले
थोड़े बहके
पहली बारिश
और हम तुम
सीमित शब्द पर
बहुत सुन्दर एहसास ... सुन्दर भाव
बहुत खूब
sihran si hui
ReplyDeleteHi..
ReplyDeletePahli barish ka ye mausam ..
Garm pakode priyatam ke sang..
Aadhe seele, aadhe geele..
Garam chai peete ho jo tum..
Sundar khakha kheencha tumne..
Barkha ki dekhi hai rimjhim ..
Tere sang main bheege hum bhi..
Aaya jo barkha ka mausam..
Sundar kavita..
Deepak..
सोनल जी,101 वीं पोस्ट,पहली बारिश,बारिश के पकौड़े और वह जिसके साथ आखिरकार आप हैं(और अगर अब तक कोई न हो तो जो आपके ख्यालों में है), सब मुबारक हों। कविता सचमुच अच्छी है और जैसा रश्मि जी ने कहा सिरहन पैदा करती है।
ReplyDeleteबारिश के सारे रंग देखने को मिले आपकी कविता में :)
ReplyDeleteअच्छी कविता, धन्यवाद.
ReplyDeleteबारिश रूठी है दिल्ली से
ReplyDeleteऔर पसीने में सीले से
दूर दूर बैठे हैं हम तुम…
आपकी कविता बारिश का सर्द झोंका बनकर आई...दिल्ली की गर्मी और अल्लाह मेघ दे की पुकार के बीच बस यही कविता एक राहत है...
आपने तो बारिश में ही आग लगा दी ।
ReplyDeletewaah waah
ReplyDeletepyari kavita
कविता इतनी अच्छी है कि बहुत से लोगों को बारिश में भी जलन हो सकती है...।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति...!!
ReplyDeleteबारिश रूठी है दिल्ली से
ReplyDeleteऔर पसीने में सीले से
दूर दूर बैठे हैं हम तुम…
बहुत सुंदर
लाजवाब .....बारिश ने आज दिल्ली को छुआ ....और इस मौसम में आपकी कविता पढ़ के तो मन झूम सा गया ....अति उत्तम रचना .
ReplyDeleteपहली बारिश की कहानी लाजवाब है ... मदमस्त कर देती है बारिश की बूँदें ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता...
ReplyDeletekya barsi hai ye kavita.... do do boondon ki dhara ne...dil ke parde bhigo diye... :) ek dum solid..mehki mehki mitti jaisi.. :)
ReplyDelete"सीले सीले
ReplyDeleteआधे सूखे
आधे गीले
पहली बारिश
और हम तुम
सुलगे सुलगे
दहके दहके
थोड़े संभले
थोड़े बहके
पहली बारिश
और हम तुम"
पोस्ट्स का सैकड़ा पूरा करने पर हार्दिक बधाई
ऐसा लगा कि गुलज़ार साब की किसी कविता को पढ़ रहे हों..."आधे गीले- आधे सूखे" अच्छी रचना. मानसून का सुन्दर स्वागत किया आपने
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद ...
ReplyDeletenice romantic poem
ReplyDeleteमन को भी भीगा दी आपकी कविता ! बहुत रूमानी!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एहसास ... सुन्दर भाव
ReplyDeleteits just brilliant, so simple so innocent... really good... keep writing...
ReplyDeleteवाह ये तो बहुत मजेदार! जानदार कविता है। बारिश का भी क्या मजा है। खूब!
ReplyDeleteone of your best pen...awesome...great work...
ReplyDeleteएक दूजे का
ReplyDeleteहाथ पकडे
पानी भरे
गड्ढे में
छपाक करते
हम और तुम
pahli barish ki sondhi si mahak liye sunda rkavita
सुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteवाह , बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह क्या कहने पहली बारिश के ! बारिश मेँ भीगने के साथ प्यार मेँ सराबोर होने का लुत्फ ही अलग है । बधाई
ReplyDeleteशब्दों में वर्षा को और उसकी अनुभूति को बेहतरीन अभिव्यक्त किया है आपने, बहुत शुभकामनाएं।
ReplyDeleteरामराम
हिंदी_ब्लागिंग
वाह! बारिश में सुलगना ,दहकना और सौंधी महक के साथ महकना सबको पहली बारिश याद दिला गई कविता ...
ReplyDeleteवाह! उम्दा!!
ReplyDeleteबहुत कुछ याद आ गया ❤
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